एस. जयशंकर: विदेश सचिव से विदेश मंत्री बनने तक का सफ़र

तकरीबन तीन दशक के लंबे कार्यकाल में एस. जयशंकर विदेश सचिव रहने के साथ ही अमेरिका, चीन, चेक गणराज्य में भारत के राजदूत और सिंगापुर में भारत के उच्चायुक्त पद पर काम कर चुके हैं.

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विदेश मंत्री एस. जयशंकर. (फोटो: पीटीआई)

तकरीबन तीन दशक के लंबे कार्यकाल में एस. जयशंकर विदेश सचिव रहने के साथ ही अमेरिका, चीन, चेक गणराज्य में भारत के राजदूत और सिंगापुर में भारत के उच्चायुक्त पद पर काम कर चुके हैं.

विदेश मंत्री एस. जयशंकर. (फोटो: पीटीआई)
विदेश मंत्री एस. जयशंकर. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: अनुभवी नौकरशाह एवं पूर्व विदेश सचिव एस. जयशंकर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली नई सरकार में विदेश मंत्रालय का महत्वपूर्ण प्रभार दिया गया है.

जयशंकर को चीन एवं अमेरिका मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है. चीन और अमेरिका के साथ बातचीत में वह भारत के प्रतिनिधि भी रह चुके हैं. एस. जयशंकर अमेरिका और चीन में भारत के राजदूत के पदों पर भी काम कर चुके हैं.

नए विदेश मंत्री के रूप में उन पर खास नजर होगी कि वह इन दोनों महत्वपूर्ण देशों के साथ पाकिस्तान के साथ निपटने में भारत के रुख को किस प्रकार से आगे बढ़ाते हैं.

जयशंकर को यह महत्वपूर्ण दायित्व उस समय दिया गया है जब करीब 16 महीने पहले ही वे विदेश सेवा से सेवानिवृत हुए हैं. उनके समक्ष विश्व स्तर खासकर जी20, शंघाई सहयोग संगठन और ब्रिक्स संगठन जैसे वैश्चिक मंचों पर भारत के वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने की उम्मीदों को अमल में लाने की जिम्मेदारी भी रहेगी.

हालांकि, उनके नेतृत्व में अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान और यूरोपीय संघ तथा पड़ोसी देशों के साथ व्यापार एवं रक्षा संबंधों को और मजबूत बनाने पर मंत्रालय का मुख्य जोर रहेगा.

जयशंकर के समक्ष एक अन्य चुनौती चीन के साथ भारत के संबंधों को और मजबूत बनाने पर होगी जो 2017 के मध्य में डोकलाम विवाद के बाद प्रभावित हुए हैं.

64 वर्षीय जयशंकर न तो राज्यसभा और न ही लोकसभा के सदस्य हैं. उनके नेतृत्व में मंत्रालय के अफ्रीकी महाद्वीप के साथ सहयोग प्रगाढ़ बनाने पर जोर देने की उम्मीद है जहां चीन तेजी से प्रभाव बढ़ा रहा है.

नरेंद्र मोदी मंत्रिपरिषद में पूर्व विदेश सचिव एस. जयशंकर को शामिल किया जाना चौंकाने वाला रहा.

देश के प्रमुख सामरिक विश्लेषकों में से एक दिवंगत के. सुब्रमण्यम के पुत्र एस. जयशंकर ऐतिहासिक भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के लिए बातचीत करने वाली भारतीय टीम के एक प्रमुख सदस्य थे.

इस समझौते के लिए 2005 में शुरुआत हुई थी और 2007 में मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली संप्रग सरकार ने इस पर हस्ताक्षर किए थे. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में जयशंकर संयुक्त सचिव (अमेरिका) भी रह चुके हैं.

जनवरी 2015 में एस. जयशंकर को विदेश सचिव नियुक्त किया गया था और सुजाता सिंह को हटाने के मोदी सरकार के फैसले के समय को लेकर विभिन्न तबकों ने तीखी प्रतिक्रिया जताई थी.

सुजाता को उनका कार्यकाल पूरा होने के छह महीने पहले ही हटा दिया गया था. ऐसा माना जाता है कि सितंबर 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में अपनी पहली अमेरिका यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी एस. जयशंकर से काफी प्रभावित हुए थे.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इसी दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात की थी और न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय मूल के लोगों को संबोधित किया था, जिसने उन्हें एक वैश्विक पहचान दी थी.

1977 बैच के भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) अधिकारी जयशंकर ने लद्दाख के देपसांग और डोकलाम गतिरोध के बाद चीन के साथ संकट को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

जयशंकर सिंगापुर में भारत के उच्चायुक्त और चेक गणराज्य में राजदूत पदों पर भी काम कर चुके हैं.

64 वर्षीय जयशंकर जनवरी 2015 से जनवरी 2018 तक विदेश सचिव रहे हैं. दो साल के अपने कार्यकाल के दौरान एस. जयशंकर ने महत्वाकांक्षी और दृढ़ भारत के नरेंद्र मोदी के विचार पर आधारित नीतियां बनाईं.

इसमें संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और इज़राइल जैसे पश्चिम एशियाई देशों तक पहुंच बनाने के अलावा जापान के साथ परमाणु समझौते का रास्ता तैयार करने के साथ डोकलाम को लेकर चीन से कूटनीतिक बातचीत और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह के साथ बेहतर संबंध बनाना शामिल था.

बताया जाता है कि संभवत: इसी वजह से विदेश सचिव के तौर पर उनका कार्यकाल एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया था.

दो साल के कार्यकाल के दौरान एस. जयशंकर ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ भी बेहतर संबंध बनाने में भी समर्थ हुए थे.

2018 में सेवानिवृत्त होने तक उनके पास बतौर नौकरशाह तीन दशक का लंबा अनुभव था और उन्होंने अपनी पहचान एक कुशल वार्ताकार के रूप में बना ली थी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, प्रगति (प्रो-एक्टिव गवर्नेंस एंड टाइमली इम्प्लीमेंटेशन) के तहत आधारभूत परियोजनाओं को लेकर होने वाली प्रधानमंत्री की समीक्षा बैठकों के दौरान एस. जयशंकर विभिन्न मंत्रालयों और विभागों से जुड़ी जानकारी देकर भी नरेंद्र मोदी पर छाप छोड़ने में कामयाब रहे थे.

पिछले साल सेवानिवृत्त होने के तीन महीने के भीतर टाटा समूह ने उन्हें वैश्विक कॉरपोरेट मामलों के लिए अपना अध्यक्ष नियुक्त किया था.

जयशंकर पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के प्रेस सेक्रेटरी भी रह चुके हैं.

सेंट स्टीफन कॉलेज से स्नातक जयशंकर ने राजनीति विज्ञान में एमए और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एमफिल और पीएचडी की उपाधि हासिल की है.

एस. जयशंकर की शादी क्योको जयशंकर से हुई है और उनके दो पुत्र और एक पुत्री हैं. इस साल जनवरी में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था, जो देश का चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)