2012 के निर्भया कांड के बाद संविधान संशोधन के द्वारा आईपीसी की धारा 376 (ई) के तहत बार-बार बलात्कार के दोषियों को उम्रक़ैद या मौत की सज़ा का प्रावधान किया गया था. इस प्रावधान के तहत 2014 में मौत की सज़ा पाने वाले शक्ति मिल्स सामूहिक बलात्कार कांड के तीन दोषियों ने इस धारा की संवैधानिकता को चुनौती दी थी.
मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने बार-बार बलात्कार के दोषी को उम्रकैद या मौत की सजा देने के लिए आईपीसी की धारा में किए गए संशोधन की संवैधानिकता की सोमवार को पुष्टि की.
जस्टिस बीपी. धर्माधिकारी और जस्टिस रेवती मोहिते डेरे ने शक्ति मिल्स सामूहिक बलात्कार कांड के तीन दोषियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया. तीनों ने आईपीसी की उस धारा की संवैधानिकता को चुनौती दी थी जिसके तहत उन्हें 2014 में मौत की सजा सुनाई गई.
बता दें कि ट्रायल कोर्ट ने विजय जाधव, मोहम्मद कासिम शेख और मोहम्मद सलीम अंसारी को जुलाई, 2013 में कॉल सेंटर में काम करने वाली एक 18 साल की लड़की और अगस्त 2013 में 22 साल की फोटो पत्रकार के साथ गैंगरेप के मामले में मौत की सजा सुनाई थी.
भारतीय दंड सहिता (आईपीसी) की धारा 376 (ई) में संशोधन के तहत बार-बार बलात्कार का अपराध करने वाले दोषी को उम्रकैद या मौत की सजा हो सकती है. दिल्ली में 2012 में 23 वर्षीय छात्रा के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के बाद यह संशोधन हुआ था.
अदालत ने कहा, ‘हमारा विचार है कि आईपीसी की धारा 376 (ई) संविधान के दायरे से बाहर नहीं है, इसलिए मौजूदा मामले में उसे खारिज नहीं किया जाएगा.’
Bombay High Court upholds the constitutional validity of IPC Section 376E. The law was challenged by the three convicts of Shakti Mills gang rape, who were sentenced to death by a Sessions Court in 2014, for the gang-rape of a Mumbai's photojournalist.
— ANI (@ANI) June 3, 2019
लाइव लॉ के अनुसार, धारा 376 (ई) कहता है कि पहले धारा 376 या धारा 376A या धारा 376AB या धारा 376D या धारा 376DA या धारा 376DB के तहत दंडनीय अपराध के दोषी पाए जा चुके और बाद में इनमें से किसी भी धारा के तहत दंडनीय अपराध के दोषी पाए जाने वालों को आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी, जिसका मतलब होगा कि उस व्यक्ति को बाकी जिंदगी जेल में बितानी होगी या फिर मौत की सजा दी जाएगी.
दोषियों की तरफ से पेश वकील युग मोहित ने दलील पेश करते हुए अदालत में कहा, ‘धारा 376 (ई) के द्वारा जिस तरह कानून बार-बार बलात्कार के अपराध के मामले को देखती है वह हत्या के अपराध से भी सख्त है. एक ऐसे मामले में किस तरह से किसी को मौत की सजा दी जा सकती है जिसमें किसी की जान ही नहीं ली गई हो.’
हालांकि, सरकार ने नए संशोधन का बचाव किया और तर्क दिया कि बलात्कार के हत्या न होने के मामले में भी बलात्कार को एक जघन्य अपराध के रूप में माना जाना चाहिए क्योंकि बलात्कार केवल किसी के शरीर पर हमला नहीं होता है बल्कि यह पीड़ित की आत्मा, उसके व्यक्तित्व को तबाह कर देता है. जबकि कई मामलों यह पीड़ित की पूरी जिंदगी को बेमतलब बना देता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)