भारत में हम टोबा टेक सिंह को महान कहानीकार सआदत हसन मंटो के मार्फ़त जानते हैं. ‘टोबा टेक सिंह’ विभाजन पर मंटो की सबसे प्रसिद्ध और त्रासद कहानियों में से एक है.
इस कहानी में पागलखाने के हिंदू और सिख मरीज़ों को लाहौर से भारत भेजे जाने के विषय को उठाया गया है.
इस कहानी ने समझदारी की परिभाषा और ‘पागल’ और अक़्लमंद दुनिया के बीच की सीमा के लगातार और झीने होते जाने को लेकर कुछ बेहद महत्वपूर्ण सवाल उठाए थे. आज मंटो के जन्मदिन (11 मई) पर हम टोबा टेक सिंह के बारे में आपको बता रहे हैं.
टोबा टेक सिंह पाकिस्तान में जगह का नाम है. कहानी का मुख्य पात्र इसी जगह का है. बिशन सिंह, टोबा टेक सिंह में ही रहना चाहता था, लेकिन एक दिन वह अचानक पाता है कि उसे बस इसलिए भारत भेजा जा रहा है, क्योंकि वह सिख है.
इस आघात को सह पाना उसके लिए बेहद मुश्किल साबित होता है और भारत और पाकिस्तान के बीच नो-मैंस लैंड में ही उसकी मौत हो जाती है. किसी भी ‘समझदार’ व्यक्ति के लिए यह कहानी परेशान करने वाली है.
हालांकि यह कहानी और इसके पात्र काल्पनिक थे, मगर इस जगह का अस्तित्व आज भी कायम है.
टोबा टेक सिंह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक शहर और तहसील (ज़िला) है. टोबा टेक सिंह का इतिहास टेक सिंह नाम के एक व्यक्ति से जुड़ा हुआ बताया जाता है, जिसका काम इस क्षेत्र में आने वाले यात्रियों की मदद करना था.
चूंकि यह जगह कई रास्तों के संगम पर स्थित था, इसलिए यहां यात्रियों और राहगुजरों का आना-जाना लगा रहता था. टेक सिंह इन्हें पास के एक तालाब से गरहा मटके में पानी लाकर पिलाया करता था.
यह गरहा मटका उर्दू में टोबा कहलाता है. इस वजह से समय के साथ यह इस स्थान की पहचान बन गया और इसका नाम टोबा टेक सिंह पड़ गया.
यह जगह भी विभाजन की क्रूरता से अछूता नहीं रहा. विभाजन के खरोंच इस जगह पर भी लगे. एक महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन होने के नाते टोबा टेक सिंह न केवल हिंसा का साक्षी बना, बल्कि इसने शवों से लदी हुई ट्रेनें भी देखी हैं.
आज़ादी के बाद इस जगह का नाम बदलने की कई कोशिशें हुई हैं. यहां रहने वाले अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता उमैर अहमद बताते हैं, ‘कट्टरपंथियों ने कई बार इस जगह का नाम बदलने की कोशिश की है. उन्होंने इस जगह का नाम ‘दर-उल-इस्लाम’ करने का प्रस्ताव रखा, लेकिन टोबा के लोगों ने इसका विरोध किया और इस जगह की विरासत को किसी तरह बचाया.’
यहां के रहने वाले भी इस जगह की विरासत को जिंदा रखने की कोशिश कर रहे हैं. इस जगह की आत्मा सांप्रदायिक सद्भाव, एकता और शांति में बसती है. अहमद कई शांति और मानवाधिकार संगठनों से जुड़े हैं. आग़ाज़-ए-दोस्ती, नामक भारत-पाक पहल इनमें में से एक है.
टोबा टेक सिंह के कोऑर्डिनेटर के तौर पर वे हर साल शहर में एक शांति कैलेंडर भी जारी करते हैं. इस कैलेंडर को भारत और पाकिस्तान के स्कूलों के छात्र मिलकर बनाते हैं.
अहमद टोबा टेक सिंह के स्कूलों में पेंटिंग प्रतियोगिताओं का आयोजन करते हैं और एक आयोजन में यह कैलेंडर जारी करते हैं.
यह आयोजन न केवल शांति को बढ़ावा देता है, बल्कि विभिन्न धर्मों के बीच सद्भाव को भी प्रोत्साहित करने की कोशिश करता है.
इस मकसद से इस आयोजन में विभिन्न धर्मों से जुड़े वक्ताओं को बोलने के लिए आमंत्रित किया पाता है.
टोबा टेक सिंह का सुंदर इतिहास, यहां के निवासियों के लिए गर्व का विषय है. यहां के लोगों ने न सिर्फ इस इतिहास को विरासत में हासिल किया है, बल्कि इसे बचाने के लिए वे संघर्ष भी कर रहे हैं.
उनका संघर्ष उम्मीद की किरण की तरह है. हम इतिहास को बदल नहीं सकते. बंटवारे का जख़्म कई रूपों में जिंदा है, मगर निश्चित तौर पर हम इस इतिहास की भरपाई अमन और भाईचारे के बीज बोकर कर सकते हैं.
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