क्रिकेट वर्ल्डकप: जिस टूर्नामेंट में सिर्फ़ 10 देश शामिल हों, उसे विश्वकप कहना कितना सही है?

इंग्लैंड में खेले जा रहे 12वें विश्वकप में केवल दस देश खेल रहे हैं, जिनमें से पांच तो दक्षिण एशियाई देश हैं. इसलिए इस टूर्नामेंट के ‘विश्वकप’ कहलाए जाने पर प्रश्न उठाए जा रहे हैं

//
साल 2019 के क्रिकेट विश्वकप में शामिल सभी टीमों के कप्तान. (फोटो साभार: आईसीसी)

इंग्लैंड में खेले जा रहे 12वें विश्वकप में केवल दस देश खेल रहे हैं, जिनमें से पांच तो दक्षिण एशियाई देश हैं. इसलिए इस टूर्नामेंट के ‘विश्वकप’ कहलाए जाने पर प्रश्न उठाए जा रहे हैं.

साल 2019 के क्रिकेट विश्वकप में शामिल सभी टीमों के कप्तान. (फोटो साभार: आईसीसी)
साल 2019 के क्रिकेट विश्वकप में शामिल सभी टीमों के कप्तान. (फोटो साभार: आईसीसी)

क्रिकेट के 12वें विश्वकप का आगाज इंग्लैंड में हो चुका है. 30 मई से 14 जुलाई तक खेले जाने वाले इस टूर्नामेंट में इस बार दस टीमें हिस्सा ले रही हैं. कुल 48 मैच खेले जाने हैं.

इस टूर्नामेंट के चार दशक से अधिक समय से जारी होने के बावजूद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) अब तक इसके लिए एक निश्चित फॉर्मेट तय नहीं कर पाया है.

हर दूसरे टूर्नामेंट में टीमों की संख्या, मैचों की संख्या और यहां तक कि लीग चरण के बाद होने वाले एलिमिनेशन राउंड का खाका तक बदलता रहता है.

आईसीसी यह कवायद कभी मैचों की संख्या कम करने के लिए, कभी आईसीसी के अधिक से अधिक एसोसिएट सदस्य देशों की विश्वकप में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए और कभी टूर्नामेंट को अधिक रोचक बनाने जैसे कारणों के चलते करता है.

इस विश्वकप में भी उसने पिछले विश्वकप के फॉर्मेट को बदला है. जो कि 12 विश्वकप में कुल मिलाकर नौवीं बार बदलाव है.

इस बार का विश्वकप 1992 के विश्वकप की तर्ज पर राउंड रॉबिन लीग के फॉर्मेट पर खेला जा रहा है. मतलब कि सभी टीमें एक ही ग्रुप में हैं और एक-दूसरे के खिलाफ कम से कम एक-एक मैच खेलेंगी.

अंकतालिका की शीर्ष चार टीमें सेमीफाइनल के लिए क्वालिफाई करेंगी. इसलिए टीमों की संख्या भी घटाकर 12 से 10 कर दी गई है ताकि टूर्नामेंट की अवधि और मैचों की संख्या सीमित रखी जा सके.

1992 के विश्वकप के फॉर्मेट पर लौटने का आईसीसी का कारण यह रहा कि पिछले जो भी फॉर्मेट उसने आजमाए वहां पहला तो सभी टीमों के बीच आपसी मुकाबले नहीं हो पाते थे जिससे कि उन प्रशंसकों को निराशा होती थी जो कि खेल के इस महाकुंभ में अपनी दो पसंदीदा टीमों को आपस में भिड़ते देखना चाहते थे. और दूसरा- एक-दो मुकाबले अगर उलटफेर में कोई टीम हार जाए तो उसके लिए वापसी करने की कोई गुंजाइश नहीं होती थी.

इसका सबसे माकूल उदाहरण 2007 का विश्वकप था जहां 16 टीमों को चार ग्रुप में विभाजित किया गया था. भारत और पाकिस्तान जैसी मजबूत टीमें बांग्लादेश और आयरलैंड के खिलाफ उलटफेर का शिकार होकर बाहर हो गई थीं.

इसलिए उस फॉर्मेट पर वापस लौटने की कवायद की गई जिसके चलते 1992 के विश्वकप की गिनती सबसे रोमांचक विश्वकप में से एक के तौर पर होती है. (बस बारिश के कारण खेल रुकने की स्थिति में तब आजमाए गए ‘मोस्ट प्रोडक्टिव ओवर मैथड’ के फॉर्मूले को छोड़ दिया जाना चाहिए.)

राउंड रॉबिन लीग फॉर्मेट की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसमें अधिक टीमों के खेले जाने की गुंजाइश नहीं होती. 1992 के विश्वकप में इस फॉर्मेट के तहत 9 टीमें खेली थीं और कुल 39 मैच खेले गए. इस बार 10 टीमें हैं और मैचों की संख्या 48 है.

यानी कि एक टीम के बढ़ने से टूर्नामेंट में 9 मैच अधिक खेले जाएंगे. यही कारण रहा कि 1992 के बाद इस बार क्रिकेट विश्वकप में सबसे कम टीमें हिस्सा ले रही हैं. पिछले दो विश्वकप में 14-14 टीमें खेली थीं.

इस बार संख्या घटाकर 10 की गई है तो सिर्फ राउंड रॉबिन फॉर्मेट के कारण. क्योंकि 4 टीमों के बढ़ने पर 46 मैचों की बढ़ोतरी हो जाती.

आईसीसी की इसी कवायद के चलते विश्वकप की प्रासंगिकता ही सवालों के घेरे में आ गई है. खेल के प्रशंसक ही पूछ रहे हैं कि यह कैसा विश्वकप जहां केवल विश्व के दस देश शामिल हैं जिनमें पांच तो दक्षिण एशियाई देश हैं?

गौरतलब है कि भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और अफगानिस्तान दक्षिण एशियाई देश हैं. इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इंग्लैंड और वेस्टइंडीज की टीमें टूर्नामेंट में खेल रही हैं. (वेस्टइंडीज कई देशों का एक संघ है. इस टीम में कई कैरेबियन देशों के खिलाड़ी खेलते हैं.)

अगर फुटबॉल की बात करें तो बीते वर्ष हुए विश्वकप में विश्व भर की कुल 32 टीमें आपस में भिड़ी थीं. वहीं, भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी की बात करें तो 2018 में हुए विश्वकप में विश्व भर की 16 टीमों ने शिरकत की थी.

(फोटो साभार: आईसीसी)
(फोटो साभार: आईसीसी)

क्रिकेट विश्वकप में भी 2007 में 16 टीमें भाग ले चुकी हैं. जो इस टूर्नामेंट की अब तक की अधिकतम भागीदारी रही है. 1999 के बाद से विश्वकप में कभी 14 से कम टीमें नहीं खेली थीं.

वहीं, इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि आईसीसी का कोई भी एसोसिएट सदस्य देश इस विश्वकप का हिस्सा नहीं है. सभी आईसीसी के टेस्ट खेलने वाले पूर्ण सदस्य हिस्सा ले रहे हैं.

यहां तक कि आयरलैंड और जिम्बाब्वे जैसे पूर्ण सदस्य देशों को भी जगह नहीं दी गई है. यह भी अपने–आप में पहली बार हुआ है कि कोई पूर्ण सदस्य देश विश्वकप से बाहर बैठा है.

अब तक हर विश्वकप में आईसीसी कम से कम एक एसोसिएट सदस्य देश को खिलाता आया था. इसके लिए बकायदा एसोसिएट सदस्य देशों के बीच लिस्ट ‘ए’ टूर्नामेंट कराए जाते थे और विजेता को विश्वकप का टिकट मिलता था.

उसके बाद उन टूर्नामेंट के विजेता-उपविजेता या फिर टूर्नामेंट में एसोसिएट सदस्य देशों की रैंकिंग उन्हें विश्वकप का टिकट दिलाती थी.

जिम्बाब्वे, आयरलैंड और बांग्लादेश जैसे टेस्ट खेलने वाले आईसीसी के पूर्ण सदस्य देश इसी प्रक्रिया के जरिये विश्व क्रिकेट में अपनी पहचान बना सके थे.

2007 के विश्वकप में पहली बार विश्व कप खेल रहे आयरलैंड द्वारा पाकिस्तान को टूर्नामेंट से बाहर करना कौन भुला सकता है? 2003 के विश्वकप में कनाडा के जॉन डेविडसन का विश्वकप में तब तक का सबसे तेज शतक सबकी स्मृति में है.

चूंकि विश्वकप पर पूरे विश्व क्रिकेट जगत और प्रशंसकों की नजर रहती है इसलिए ऐसे प्रदर्शन इन टीमों और खिलाड़ियों को रातों–रात पहचान दिला देते हैं. इसलिए एसोसिएट देशों की गैरमौजूदगी इस टूर्नामेंट में खलती तो है.

आईसीसी के कुल 105 सदस्य देश हैं. 12 पूर्ण सदस्य और 93 एसोसिएट सदस्य. इन 93 में से 8 देशों को एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने का दर्जा प्राप्त है. जबकि सभी 93 देश टी20 अंतर्राष्ट्रीय खेलने का दर्जा रखते हैं.

इस लिहाज से देखें तो अंतरराष्ट्रीय एकदिवसीय खेलने का दर्जा रखने वाली कम से कम 20 टीमें तो इस विश्वकप में खेल ही सकती थीं. लेकिन एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय का दर्जा प्राप्त एसोसिएट सदस्य तो दूर, टेस्ट खेलने वाले पूर्ण सदस्यों तक को बाहर बैठा दिया गया.

बावजूद इसके यह कहना कि यह टूर्नामेंट ‘विश्वकप’ कहलाने की कसौटी पर खरा नहीं उतरता क्योंकि यहां विश्व का प्रतिनिधित्व सीमित है तो यह गलत होगा.

इस टूर्नामेंट को ‘30 मई से 14 जुलाई (विश्व कप की अवधि)’ और इस दौरान खेले जाने वाले 48 मैचों के दायरे से बाहर भी देखने की जरूरत है.

जो दस टीमें इस विश्वकप में खेल रही हैं, उनमें से आईसीसी एकदिवसीय चैंपियनशिप रैंकिंग की शीर्ष सात टीमों (भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश) और विश्वकप के मेजबान देश (इंग्लैंड) को सीधा प्रवेश मिला था. जबकि अन्य दो स्थानों के लिए 2018 में विश्वकप क्वालिफायर का आयोजन किया गया था.

उसमें भी दस टीमें आपस में भिड़ी थीं जिनमें अफगानिस्तान, वेस्टइंडीज, जिम्बाब्वे और आयरलैंड जैसे आईसीसी के पूर्ण सदस्य देश भी शामिल थे. अन्य छह टीमें नीदरलैंड, स्कॉटलैंड, पापुआ न्यू गिनी, हांगकांग, नेपाल और यूएई की थीं.

टूर्नामेंट अफगानिस्तान ने फाइनल में वेस्टइंडीज को हराकर जीता था. फाइनल में पहुंचने वाली दोनों टीम से विश्वकप के अंतिम दो स्थान भरे गए. जिम्बाब्वे और आयरलैंड जैसे टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले पूर्ण सदस्य विश्वकप में जगह नहीं बना सके. इस तरह विश्वकप जीतने का मौका पाने वाले देशों की संख्या 18 हो जाती है.

मतलब कि एसोसिएट देशों को भी पूरा मौका मिला था खुद को साबित करके विश्वकप में खेलने का. केवल उपरोक्त छह एसोसिएट सदस्य देशों को ही नहीं, आईसीसी के सभी 93 एसोसिएट सदस्य वर्ष 2012 से 2018 तक चली ‘विश्व क्रिकेट लीग’ में हुए विभिन्न टूर्नामेंट के जरिये छह सालों से विश्वकप क्वालिफायर तक पहुंचने की कवायद में जुटे थे, जहां से उन्हें विश्वकप के मुख्य मुकाबलों में खेलने का टिकट हासिल हो.

(फोटो साभार: आईसीसी)
(फोटो साभार: आईसीसी)

‘विश्व क्रिकेट लीग’ का फॉर्मेट कुछ ऐसा था कि आईसीसी से जुड़े विश्व के सभी देशों को उनके क्षेत्रीय/घरेलू और पुराने प्रदर्शन के आधार पर रैंक देकर आठ डिवीजन में विभाजित करते हुए मुकाबले करवाये गए.

अपने–अपने डिवीजन के टूर्नामेंट जीतने वाले देशों को अगले डिविजन में प्रमोट किया गया जबकि अपने–अपने डिवीजन के टूर्नामेंट में सबसे नीचे रहने वाले देशों को पिछले डिवीजन में डिमोट किया गया.

इस तरह विश्वभर की टीमें आठों डिवीजनों के बीच चले मुकाबलों से डिवीजन दो तक पहुंची. जो देश 2015 के डिवीजन दो के टूर्नामेंट में शीर्ष चार में रहे, उन्हें ‘विश्व क्रिकेट लीग चैंपियनशिप’ में खेलने का मौका मिला. चैंपियनशिप को फर्स्ट डिवीजन करार दिया गया. मौका पाने वाले देश नीदरलेंड, नामीबिया, केन्या और नेपाल थे.

वर्ल्ड क्रिकेट लीग चैंपियनशिप 2015 से 2017 के बीच चली. इसमें आठ देश शामिल हुए. चार डिवीजन दो से थे, तो बाकी चार देश वे थे जो 2014 के ‘विश्वकप क्रिकेट क्वालिफायर’ में शीर्ष चार स्थान पर रहे थे. वे देश स्कॉटलैंड, यूएई, हांगकांग और पापुआ न्यू गिनी थे.

‘वर्ल्ड क्रिकेट लीग चैंपियनशिप’ नीदरलैंड ने स्कॉटलैंड को हराकर जीती. हांगकांग और पापुआ न्यू गिनी तीसरे और चौथे स्थान पर रहे. इन चारों को 2018 के ‘विश्वकप क्वालिफायर’ में प्रवेश मिला.

नीचे की चारों टीमें (केन्या, यूएई, नेपाल, नामीबिया) डिवीजन दो में डिमोट कर दी गईं. डिविजन दो का टूर्नामेंट 2018 में फिर खेला गया. जहां इन चारों टीमों को फिर एक मौका मिला कि वे ‘विश्वकप क्वालिफायर’ में जगह बना सकें.

टूर्नामेंट छह टीमों के बीच था. दो अन्य टीमें कनाडा और ओमान डिवीजन तीन से प्रमोट होकर आई थीं. यह टूर्नामेंट यूएई ने नेपाल को हराकर जीता. और फाइनल की इन दोनों टीमों ने ‘विश्वकप क्वालिफायर’ के लिए प्रवेश किया. जिसे अफगानिस्तान ने वेस्टइंडीज को हराकर जीता था और फाइनल खेलने वाली इन दोनों टीमों को विश्वकप में एंट्री मिली.

इस तरह सात सालों की विश्वकप की इस कवायद में सैकड़ाभर देशों को अपना भाग्य आजमाने का मौका मिला था. अफसोस कि आईसीसी का कोई भी एसोसिएट सदस्य देश विश्व क्रिकेट के इस सबसे बड़े मुकाबले जिसे टूर्नामेंट्स का टूर्नामेंट कहा जा सकता है, में अपनी जगह नहीं बना सका.

यानी कि इंग्लैंड में खेला जा रहा क्रिकेट विश्वकप केवल दस देशों के बीच विश्व की श्रेष्ठ क्रिकेट टीम बनने की महीने भर की एक होड़ नहीं है, जिसके चलते इसके ‘विश्वकप’ कहलाने पर प्रश्न उठाया जा रहा है.

यह तो सालों की कवायद और विश्वभर के अनेकों क्रिकेट टूर्नामेंट से निकले निष्कर्षों का फाइनल मुकाबला है. जिसकी तैयारी के तहत विश्व में क्रिकेट खेलने वाले सैकड़ा भर से अधिक देशों को पर्याप्त मौका मिला था कि वे अपने प्रदर्शन से क्रिकेट जगत के स्थापित देशों को विश्व कप के मुख्य मुकाबलों से बाहर करके टूर्नामेंट में अपनी जगह बना सकें. लेकिन अफसोस कि वे ऐसा नहीं कर सके.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)