ग्राउंड रिपोर्ट: अलीगढ़ के टप्पल में ढाई साल की बच्ची की नृशंस हत्या के बाद क़स्बे में तनाव का माहौल है. जहां आरोपियों के मुसलमान होने के चलते घटना को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है, वहीं स्थानीयों का कहना है कि हिंदू-मुसलमान साथ मिलकर बच्ची के लिए इंसाफ़ की लड़ाई लड़ेंगे.
अलीगढ़ के टप्पल में हुई ढाई साल की मासूम की मौत के एक सप्ताह बाद भी यह कस्बा सदमे और तनाव से उबर नहीं सका है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से करीब 90 किलोमीटर दूर यमुना एक्सप्रेसवे के किनारे स्थित लगभग बीस हज़ार की आबादी वाले इस कस्बे को इस बच्ची की हत्या ने झकझोर दिया है.
रविवार को हिंदूवादी नेता साध्वी प्राची ने पीड़ित परिवार से मिलने के लिए टप्पल पहुंचने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने उन्हें रास्ते में ही रोक दिया. तनाव के मद्देनज़र यहां भारी पुलिस बल भी तैनात किए गए हैं.
बच्ची की हत्या के आरोपी मुसलमान हैं जिसके चलते इस घटना ने सांप्रदायिक रंग भी ले लिया है. हत्या के बाद से ही यहां बच्ची को इंसाफ दिलाने के लिए कैंडल मार्च निकाले जा रहे हैं. शनिवार को भी भारी तादाद में लोगों ने प्रदर्शन किया. ऐसा ही प्रदर्शन रविवार को भी यहां हुआ.
टप्पल में घुसते ही तनाव महसूस होता है. एक बीज भंडार पर खड़े कुछ युवकों ने कहा, ‘लोग उबल रहे हैं. अगर बेटी को इंसाफ नहीं मिला तो कुछ बड़ा हो जाएगा. पुलिस ने रोक रखा है लेकिन पुलिस भी गुस्से को कब तक रोकेगी?’
इन युवकों के मोबाइल में बच्ची की हत्या के बाद सोशल मीडिया पर साझा किए गए गुस्से भरे पोस्ट भी थे. अलीगढ़ पुलिस ने इस मामले में चार आरोपियों को गिरफ़्तार कर लिया है जिनमें मुख्य आरोपी जाहिद और असलम भी शामिल है.
इसके अलावा जाहिद के भाई और पत्नी को भी गिरफ़्तार किया गया है. पुलिस ने जाहिद और असलम पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत कार्रवाई की है.
इस बच्ची का घर क़स्बे के जिस इलाक़े में है, वहां हिंदू-मुसलमान दशकों से एक साथ रहते आ रहे हैं. उनके घर आस-पास इस तरह बने हुए हैं, जैसे एक साथ बुने हुए हों. एक घर हिंदू परिवार का है तो दूसरा घर मुस्लिम का.
‘टप्पल में ऐसा कैसे हो सकता है’, ‘ढाई साल की बच्ची के साथ कोई ऐसा कैसे कर सकता है’, ‘इन दरिंदों को फांसी हों फांसी’… कस्बे में जिससे भी बात करो, ज़बान पर यही शब्द सुनाई देते हैं.
इस बच्ची के पड़ोस में रहने वाले परिवार की एक बेटी दिल्ली से गर्मियों की छुट्टियों में अपने मायके टप्पल आई हैं. वे यहीं पली-बढ़ी हैं. इस ढाई साल की बच्ची की मौत के बाद से वे अपनी आठ साल की बेटी को घर से बाहर नहीं निकलने दे रही हैं.
वे कहती हैं, ‘हमने कभी सोचा भी नहीं था कि टप्पल में कभी ऐसा केस हो सकता है. टप्पल के हिंदू-मुसलमान हमेशा से एक थे. इस घटना के बाद ये जो हिंदू-मुसलमान हो गया है, ये अच्छा नहीं लग रहा है. दरिंदों को सज़ा मिलनी ही चाहिए.’
वे कहती हैं कि इस घटना की उनकी मासूम बेटी के दिमाग पर गहरी छाप पड़ी है. उसे घर से बाहर निकलने में डर लग रहा है. बच्ची के घर के पड़ोस में डर का माहौल बन गया है.
बच्ची के एक अन्य पड़ोसी बताते हैं, ‘इस घटना के बाद से मैं सो नहीं पा रहा हूं, भूख भी नहीं लग रही. दिमाग हर समय परेशान रहता है कि ऐसा हो कैसे गया? एक बच्ची के साथ ऐसी दरिंदगी की हिम्मत किसी की कैसे हो गई? कोई ऐसा कैसे कर सकता है? अपने बच्चों के लिए हमें डर लग रहा है, जिन गलियों में हमारे बच्चे खेलते रहते थे, उन्हें वहां भेजते हुए डर लग रहा है. मन में बहुत गुस्सा है.’
वे आगे कहते हैं, ‘हम हमेशा से मुसलमानों के साथ भाईचारे से, मिल-जुलकर रहे लेकिन इस घटना के बाद मुसलमानों से मनमुटाव-सा हो गया है. बार-बार ये सवाल मन में उठता है कि आखिर वो एक बच्ची के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं?’
वहीं हर बीतते दिन के साथ बच्ची के परिवार का दुख बढ़ता ही जा रहा है. बच्ची की मां ने बताया कि उसने अभी स्कूल जाना शुरू ही किया था. वे कहती हैं, ‘मैं ही उसे स्कूल छोड़ने जाती थीं. बहुत खुश होकर स्कूल जाती थी. भागती थी स्कूल की ओर. मेरी बेटी पढ़ने में बहुत तेज़ थी, बहुत साफ बोलती थी. उसे देखकर लगता था ज़रूर कुछ बनेगी.’
वे आगे कहती हैं, ‘पेन पकड़ना सीख गई थी, अक्षरों पर पेन फिराती थी. उसे पढ़ता हुआ देखकर बहुत अच्छा लगता था. बोली सबसे मीठी लगती थी, सबके नाम लेना सीख गई थी, दादा को बाबा-बाबा करती थी. बहुत चंचल थी. हर चीज को देखकर पूछती थी ये क्या है.’
बच्ची की याद में निकाले गए मार्च में शामिल छोटी-छोटी बच्चियां, महिलाएं और युवा नारे लगा रहे थे, ‘बच्ची के हत्यारों को फांसी दो-फांसी दो.’ इस मार्च में शामिल महिलाएं आक्रोश से भरी थीं.
एक महिला कहती हैं, ‘यहां रहते-रहते बूढ़ी हो गई हूं, कभी ऐसा नहीं सोचा था. ये पहली बार हुआ है. ऐसी दुर्दशा की है कन्या की. हमें अब अपनी बेटियों के लिए डर लग रहा है.’
घटना को हिंदू-मुसलमान के नज़रिए से देखे जाने के सवाल पर इन महिलाओं ने कहा, ‘धर्म की कोई बात नहीं है. जो दरिंदा है उसे सज़ा हो, किसी बेगुनाह को नहीं. दोषी को फांसी हो, किसी निर्दोष को परेशान न किया जाए.’
एक महिला का कहना है, ‘न सारे हिंदू गलत हैं और न ही सारे मुसलमान. ये गुस्सा दरिंदों के ख़िलाफ़ है. अगर दरिंदों को फांसी नहीं हुई तो ये गुस्सा और बढ़ेगा.’
लोगों को यह भी डर है कि अगर इस मामले में उचित न्याय नहीं हुआ तो सामाजिक सद्भाव के लिए ठीक नहीं होगा. मार्च में शामिल आक्रोश से भरी एक महिला का कहना था, ‘अगर पुलिस इस बच्ची को इंसाफ नहीं दे पाई, तो यहां हिंदू-मुसलमानों के बीच एक बड़ी दरार आ जाएगी, जिससे बड़ा तनाव भी पैदा हो सकता है.’
हालांकि मार्च में शामिल हुई महिलाओं को इस बात का अफ़सोस भी था कि स्थानीय मुसलमान इंसाफ की इस लड़ाई में उनके साथ नहीं हैं. इस मार्च में मुस्लिम समुदाय से कोई शामिल नहीं था.
आरोपियों के परिवार गांव से पलायन कर गए हैं. कुछ मुसलमानों के घर भी हमें बंद मिले, हालांकि अधिकतर मुसलमान गांव में ही रह रहे हैं.
अफ़ाक 65 साल के हैं और आरोपी असलम के घर के सामने रहते हैं. वे कहते हैं, ‘हमें जब सारी ज़िंदगी यहां डर नहीं लगा, तो अब डर क्यों लगे? कुछ होगा तो वही लोग बचाएंगे जिनके साथ रहते आ रहे हैं. असलम गंदा आदमी है. उसे सज़ा मिलनी ही चाहिए. पहले भी गलत हरकतें कर चुका है.’
54 साल के ज़हीर मोहम्मद नमाज़ पढ़ने जा रहे थे, वे अपनी बात रखते हैं, ‘जिन लोगों ने बच्ची के साथ बुरा किया है उन्हें दंड ज़रूर मिलना चाहिए. वो ढाई साल की मासूम बच्ची थी, उसकी क्या गलती थी? बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं. जिसने भी ये दरिंदगी की है उसे फांसी दी जाए. सरकार को सीबीआई जांच भी करवानी पड़े तो करवाए.’
वे आगे कहते हैं, ‘उस बच्ची के लिए पूरे गांव का दिल रो रहा है. जिसने ज़ुल्म किया है, सज़ा उसे मिलनी चाहिए लेकिन पूरे समाज को शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है. हमारी आंखें शर्म से झुक रही हैं. सब कह रहे हैं कि एक मुसलमान ने ये काम किया है.’
ज़हीर को भी डर है कि बच्ची को न्याय न मिलने की सूरत में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. उनका कहना है, ‘हम सारी ज़िंदगी इस गांव में रहे, कभी हिंदू-मुसलमान का फर्क ही महसूस नहीं हुआ लेकिन इस बच्ची की मौत से फर्क पड़ रहा है. दरार पड़ रही है.
वे आगे जोड़ते हैं, ‘जैसे हमारे बुज़ुर्ग इस गांव में शांति से रहते आए हैं हम वैसे ही यहां शांति से रहना चाहते हैं, लेकिन अगर इस बच्ची को न्याय नहीं मिला, तो तनाव बढ़ेगा. हम अल्लाह से यही दुआ कर रहे हैं कि जालिमों को सज़ा मिले और गांव में शांति रहे.’
क्या कस्बे के माहौल को देखकर क्या उन्हें डर लग रहा है? वे कहते हैं, ‘हम डरकर भी कहां जाएंगे अपने बाल बच्चों को लेकर? हमारी बेटियां भी तो गांववालों की ही बेटियां हैं.’
लेकिन कस्बे के कुछ मुसलमान घर छोड़कर गए हैं, उस पर क्या कहेंगे? वे कहते हैं, ‘कुछ सीधे-साधे, डरपोक लोग अपनी इज्जत बचाकर यहां से गए भी हैं. हमने भी कई तरह की बातें सुनी हैं, लेकिन हम कहीं नहीं जा रहे हैं. जीना-मरना यहीं हैं.’
पैंतालीस साल के एक अन्य स्थानीय यामीन कहते हैं कि अभी तक किसी हिंदू ने किसी तरह की कोई धमकी नहीं दी है. वे कहते हैं, ‘हम बेटी के लिए इंसाफ चाहते हैं और इसके लिए हर तरह से सहयोग करने के लिए तैयार हैं.’
एक हिंदूवादी कार्यकर्ता पंकज पंडित कहते हैं, ‘पूरे देश को झकझोर देने वाली टप्पल की वीभत्स घटना के बाद फिलहाल हिंदू-मुस्लिम तनाव नहीं है. यहां कभी हिंदू-मुसलमानों के बीच तनाव नहीं रहा है और न ही हम तनाव चाहते हैं. हम अपनी बेटी के लिए इंसाफ चाहते हैं.’
वे कहते हैं, ‘कुछ बाहरी नेता ज़रूर यहां माहौल ख़राब करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन हम सब हिंदू-मुसलमान मिलकर जुटे हुए हैं और हालात को बिगड़ने नहीं देंगे.’ फिलहाल प्रशासन ने यहां धारा 144 लगा रखी है. पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) मणि लाल पाटीदार कहते हैं, ‘स्थिति पूरी तरह सामान्य और नियंत्रण में है.’
(पूनम कौशल स्वतंत्र पत्रकार हैं.)