राजस्थान में इस साल अप्रैल तक बलात्कार के 1509 मामले सामने आए, इनमें से 349 मामलों में चालान हुआ लेकिन मुआवज़ा सिर्फ़ 50 युवतियों को ही मिला.
जयपुर: राजस्थान के सीकर शहर में नई बन रही नगर परिषद बिल्डिंग के पीछे बने एक पक्के रैन बसेरे की सीढ़ियां चढ़ रहा था कि बदबू ने ऐसा स्वागत किया, जिसमें एक मिनट ठहरना दूभर हो जाए.
ऊपर एक महिला से मुलाकात हुई. बातचीत के दौरान वह एक पुराना संदूक निकाल लाईं और साल 2012 से अब तक के तमाम कागज खोल-खोलकर दिखाने लगी.
इस संदूक में उनकी बेटी के साथ हुए बलात्कार मामले से जुड़े सारे कागजातों के अलावा एक मां की टूटी हुईं उम्मीदें और दुख भरे थे. पोटलियों की गांठें जैसे-जैसे खुल रही थीं उसने आंसू भी उतनी तेजी से निकलने लगे थे.
वे बोलीं, ‘सरकार ने उस वक्त नौकरी, मकान और रुपये देने के लिए कहा था. 5 लाख रुपये मिले थे लेकिन सब इलाज के दौरान ही खर्च हो गए. आज तक न मकान मिला है और न ही नौकरी. सरकार इलाज करा कर सब भूल गई.’
वे कहती हैं, ‘सात साल से रैन-बसेरे में रहने के लिए जगह दी हुई है. यहां न तो शौच जाने की व्यवस्था है और न ही पीने के लिए पानी. मेरी बेटी को कोई भी स्कूल एडमिशन नहीं दे रहा. गुजारे के लिए दो हजार रुपये महीने पर दो घरों में झाडू-पोंछा करने जाती हूं. इसके अलावा 750 रुपये सरकारी पेंशन भी मिलती है.’
वह आगे कहती हैं, ‘सरकार ने उस वक्त राशन कार्ड भी बनाकर दिया जिस पर स्थायी पते की जगह पर रैन बसेरे का पता लिखा हुआ है. राशन की दुकान पर हमें यह कहकर भगा दिया जाता है कि पहले कलक्टर से लिखवा कर लाओ. कलक्टर ऑफिस में हमें घुसने नहीं दिया जाता.’
वो बताती हैं, ‘अब मैं न तो बिहार की रही और न ही राजस्थान की. रोजाना हम धीमी मौत मर रहे हैं. इस बार सर्दियों में जब हम बिहार चले गए तो नगर परिषद के लोगों ने मेरे कमरे का ताला तोड़कर सारा सामान दूसरे कमरे में रख दिया और मेरे कमरे में रैन-बरेसा खोल दिया.’
क्या है मामला
अगस्त 2012 में नाबालिग दामिनी (2012 में दिल्ली के निर्भया गैंगरेप के बाद राजस्थान की मीडिया द्वारा दिया गया नाम) को रात में कुछ बदमाश उठाकर ले गए और उसके साथ सामूहिक बलात्कार कर शहर से 20 किमी दूर एक गांव में फेंक गए.
इस दर्दनाक हादसे के बाद दामिनी का चार साल इलाज चला और तकरीबन 22 ऑपरेशन करने पड़े.
राजस्थान की मीडिया ने सरकार की आलोचना के साथ लगातार खबरें प्रकाशित कीं. सरकार जागी और ‘सीकर की दामिनी’ का जयपुर के जेके लोन और एसएमएस से लेकर दिल्ली के एम्स तक में इलाज कराया गया.
बलात्कार के आरोपियों को उम्रकैद की सजा भी हुई. दामिनी का लगातार 4 साल इलाज चला, उसके शरीर ने 22 ऑपरेशन झेले हैं. दामिनी को नौ से ज्यादा बार री-कंस्ट्रक्टिव सर्जरी से गुजरना पड़ा है, इसमें रेक्टम की सर्जरी भी हो चुकी है.
तब दामिनी का इलाज करने वाले डॉक्टर एलडी अग्रवाल कहते हैं, ‘जब केस हमारे पास आया तो बच्ची की हालत बहुत ही दर्दनाक थी. जेके लोन में भर्ती रहने तक 18 बार दामिनी को अंडर एनेस्थेसिया रखा गया था. बच्ची का रेक्टम (आंत का आखिरी हिस्सा) और वेजाइलन ओपनिंग बलात्कार की वजह से बुरी तरह जख्मी थे. हमने कई ऑपरेशन कर सबसे पहले उन्हें ठीक करने की कोशिश की. पेट से होकर मल की जगह बनाई. केस इतना भयावह था कि 7 साल बाद भी उसकी याद से मैं सिहर जाता हूं.’
सर्जरी और 22 ऑपरेशन झेलने के बाद आज भी दामिनी को बुखार आम बीमारी है. अभी भी दामिनी पीलिया का इलाज ले रही है. इलाज के दौरान दामिनी को सबसे बड़ा खतरा संक्रमण का था.
संक्रमण के खतरे के चलते कई दिनों तक उसके परिजनों को भी दामिनी से मिलने नहीं दिया गया था. उस वक्त इलाज करने वाले डॉक्टर एलडी अग्रवाल ने तब कहा था कि दिल्ली के निर्भया केस में बड़ी आंत के बाहर आने को छोड़ दिया जाए तो दामिनी की चोटें उससे भी गहरी और सघन हैं.
मूलतः बिहार की रहने वाली दामिनी का परिवार मजदूरी के लिए 2012 में ही रोजगार के लिए राजस्थान के सीकर शहर आया था, लेकिन कुछ महीने बाद ही उसके साथ ये दर्दनाक हादसा हो गया. 2016 में दामिनी सरकारी खर्चे पर दिल्ली एम्स से अपना इलाज कराकर लौटी है लेकिन अब सरकार, प्रशासन सब उसे भूल चुके हैं.
सामाजिक भेदभाव का शिकार होने को मजबूर
इस घटना के करीब सात साल बाद प्रशासन ने इस परिवार को भुला ही दिया है. जिस रैन बसेरे में दामिनी और उसकी मां को रहने के लिए जगह दी हैं वहां रहने वाले अन्य परिवार इन्हें पीने के लिए पानी तक नहीं देते. घर की पीछे शौच की गंदगी का ढेर लगा है जिसकी बदबू से इनका जीना मुहाल है.
पुनर्वास के नाम पर सरकार ने इन्हें सरकारी रैन बसेरे में सिर्फ रहने की जगह दी है. इसके अलावा न तो जीवनयापन के लिए स्थायी रोजगार की व्यवस्था की है और न ही दामिनी की पढ़ाई के लिए किसी स्कूल की. रैन-बसेरे में ही रहने वाले अन्य लोग अक्सर पूरे परिवार को उलाहना देते रहते हैं.
दामिनी कहती हैं, ‘इस हादसे ने मुझसे मेरी पहचान ही छीन ली. परिवार के भी लोग मेरे असली नाम की जगह मुझे दामिनी पुकारते हैं. सात साल बाद भी मुझे बैठने-उठने में परेशानी होती है. कुछ महीने पहले एक स्कूल में गई थी लेकिन मुझे वहां से यह कहकर भगा दिया गया कि आप कहीं और एडमिशन लीजिए.’
वे कहती हैं, ‘मैं पढ़ना तो चाहती हूं ताकि अपने पैरों पर खड़ी हो सकूं, लेकिन न तो मेरे पास इतना पैसा है और न ही सामर्थ्य कि कुछ काम कर सकूं. लोग कहते हैं कि तब सरकार ने नौकरी देने का वादा किया था, अब मैं बालिग भी हो गई हूं. अगर सरकार अपना वादा निभाए तो मेरी जिंदगी संवर जाएगी.’
इस संबंध में जब सीकर कलक्टर सीआर मीणा से बात की गई तो उन्होंने पुराने स्टाफ को बुलाकर सारी जानकारी मांगी. प्रशासन का दावा है कि दामिनी को पांच लाख रुपये की मुआवजा राशि दे दी गई है.
कलक्टर ने कहा, ‘मैं पूरी फाइल मंगाकर डिटेल्स पता करता हूं. इस सेशन से बच्ची का एडमिशन करा दिया जाएगा और जो भी जरूरी चीजें होंगी मैं उपलब्ध कराऊंगा.’
इस साल अप्रैल तक सिर्फ 50 पीड़िताओं को को मिला मुआवजा
बलात्कार के बाद पुनर्वास नहीं होने के मामले में दामिनी अकेली उदाहरण नहीं हैं. राजस्थान में हजारों महिलाएं हैं जिन्हें इस तरह की पीड़ा झेलने के बाद उनके हाल पर छोड़ दिया गया है.
राजस्थान पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में साल 2014 से अप्रैल 2019 तक बलात्कार के 20,208 केस दर्ज हुए हैं. इनमें से पुलिस ने 9,481 केस में कोर्ट में चालान पेश किया. 2014 से फरवरी 2019 तक सरकार ने सिर्फ 2064 पीड़ित महिलाओं को ही मुआवजा दिया है.
इस साल जनवरी से अप्रैल तक बलात्कार के 1509 केस दर्ज हुए हैं. इसमें से 56.86 प्रतिशत केसों की तफ्तीश अभी जारी है. वहीं, 349 केसों में चालान पेश किए गए हैं.
राजस्थान स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी के आंकड़ों के अनुसार, इस साल फरवरी तक सिर्फ 50 ऐसी महिलाओं को ही मुआवजा दिया गया है. इसी तरह 2018 में राजस्थान में बलात्कार के 4335 केस दर्ज हुए, 2157 में चालान पेश हुआ लेकिन सिर्फ 580 पीड़ित महिलाओं को ही मुआवजा मिला.
2017 में 3305 रेप केस में से 1620 में चालान हुए और 811 पीड़ित महिलाओं को ही मुआवजा मिल सका. 2016 में दुष्कर्म के दर्ज हुए 3656 केस में से 1796 में चालान पेश किया गया लेकिन मुआवजा सिर्फ 310 पीड़िताओं को मिला.
2015 में 3644 रेप केस हुए, 1729 में चालान पेश हुए और सिर्फ 208 पीड़ित महिलाओं को मुआवज़ा दिया जा सका. इसी तरह 2014 में बलात्कार के 3759 मामलों में से 1830 मामलों में ही चालान पेश हुआ और सिर्फ 105 महिलाओं को सरकार मुआवज़ा दे सकी.
कम संख्या में चालान पेश होने के पीछे पुलिस का तर्क है कि बलात्कार के 40-45 प्रतिशत केस झूठे निकलते हैं, इसीलिए चालानों की संख्या कम दिखती है.
बलात्कार पीड़िताओं के पुनर्वास में हो रही देरी और लापरवाही पर ऑल इंडिया दलित महिला अधिकार मंच की सुमन देवठिया कहती हैं, ‘राजस्थान में ऐसे हजारों केस हैं, जिनमें पीड़िताओं का पुनर्वास ही नहीं होता. मीडिया में थोड़ी खबरें आने से केस की जांच तो जैसे-तैसे हो जाती है लेकिन इसके बाद इन पीड़िताओं की सुध लेने वाला कोई नहीं होता.’
देवठिया कहती हैं, ‘कितनी ही महिलाएं पैसे और देखभाल के अभाव में बलात्कार के बाद दम तोड़ देती हैं. इसका कोई आंकड़ा किसी के पास नहीं है. कुल-मिलाकर सरकार कोई भी रहे महिला उत्पीड़न के बाद पुनर्वास के नाम प्रशासन कोई मदद नहीं करता. मीडिया भी कुछ दिन खबरें देता और फिर सब भूल जाते हैं.’
छह साल की बच्ची से बलात्कार, तीन महीने बाद भी मुआवजा नहीं
अलवर जिले की तिजारा तहसील की रहने वाली छह साल की एक बच्ची के साथ बीते नौ मार्च को बलात्कार हुआ. बच्ची की हालत इतनी नाजुक है कि उसके अब तक दो बड़े ऑपरेशन हो चुके हैं और शौच के लिए डॉक्टरों ने शरीर में अलग से रास्ता बनाया है. बच्ची न तो कुछ बोल पाती है और न ही ठीक से चल पा रही है.
पीड़िता के दादा ने बताया, ‘हमें इलाज के लिए पैसों की जरूरत है लेकिन तीन महीने बाद भी मुआवजे का एक पैसा नहीं मिला. अधिकारियों के पास जाते हैं तो एक-दो दिन में आ जाने के कहकर टरका देते हैं. हमने बच्ची को इसी साल स्कूल भेजना शुरू किया था लेकिन अब सब बर्बाद हो गया. इस साल भी ये स्कूल नहीं जा पाएगी क्योंकि उसकी चलने-फिरने की हालत नहीं है.’
क्या कहता है कानून
राजस्थान पीड़ित प्रतिकार स्कीम के तहत बलात्कार होने पर निर्धारित राशि पांच लाख है जो पीड़ित को मिलनी होती है. वहीं, अगर पीड़ित एससी-एसटी वर्ग के संबंध रखती है तो एससी-एसटी एक्ट की धारा 12 (4) के अनुसार रेप केस में 5 लाख और गैंगरेप केस में 8.5 लाख रुपये मुआवजा मिलना होता है. इसमें से आधी राशि केस दर्ज होने और मेडिकल होने के बाद दिया जाना अनिवार्य है.
इसके अलावा पीड़िता पूरी तरह पुनर्वास का भी प्रावधान इस कानून में है. इसके तहत स्वास्थ्य, शिक्षा, अगर घर नहीं है तो घर देना और जरूरी होने पर सरकारी नौकरी का भी प्रावधान है. लेकिन साफ है कि सरकारी लापरवाही से राजस्थान में पीड़ितों को न तो समय पर मुआवजा मिल रहा है और न ही उनका पूरी तरह से पुनर्वास हो रहा है.
मीडिया आक्रामक हो, तब होती है कार्रवाई
लोकसभा चुनावों के वक्त अलवर जिले के थानागाजी में हुए एक दलित महिला के साथ गैंगरेप और उसके बाद वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड करने की वारदात हुई. आरोप है कि पुलिस ने चुनावी व्यस्तता की बात कहकर पीड़ित परिवार को टरका दिया.
इसके बाद जब खबर अखबार में प्रकाशित हुई तो सरकार ने तेजी दिखाई. तुरंत एफआईआर दर्ज हुई. 16 दिन में चालान पेश कर आरोपियों को जेल भेज दिया गया.
पीड़िता को राजस्थान पुलिस में कॉन्स्टेबल की नौकरी भी दी गई. साथ ही राजस्थान सरकार ने नियम भी बनाया कि अगर थाने में रिपोर्ट दर्ज नहीं होती है तो सीधे एसपी ऑफिस में रिपोर्ट दर्ज कराई जा सकती है.
यह सब तभी संभव हुआ जब राजस्थान सहित पूरे देशभर की मीडिया ने सरकार की कड़ी आलोचना के साथ इस मामले की रिपोर्टिंग की.
यह भी कड़वा सच है कि 2012 में जब राजस्थान में गहलोत सरकार थी तब दामिनी के साथ बलात्कार हुआ. उसके बाद पांच साल बीजेपी सरकार रहकर गई, लेकिन पीड़िता का पुनर्वास नहीं कर सकी.
हालांकि लोकसभा चुनावों के वक्त राजस्थान भाजपा ने एक अच्छे विपक्ष की भूमिका निभाते हुए सड़क पर आकर पीड़िता के लिए न्याय मांगा और दबाव में सरकार ने तुरंत कार्रवाई भी की.
बलात्कार पीड़ितों के पुनर्वास को लेकर कांग्रेस की प्रदेश उपाध्यक्ष और प्रवक्ता अर्चना शर्मा का कहना है, ‘सरकार तो सभी तरह की पीड़िताओं के पुनर्वास को लेकर गंभीर है. अगर नीचे के स्तर पर कहीं समस्या है तो उसे जरूर सुधारा जाएगा.’
हालांकि नेताओं के बयान सिर्फ बयान ही होते हैं. अगर सच में कुछ सुधारा गया होता तो दामिनी का परिवार आज इतनी दयनीय स्थिति में रहने का मजबूर नहीं होता.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)