तीन तलाक़ के मसले पर सुप्रीम कोर्ट में शुरू हुई सुनवाई

प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की एक पीठ ने कहा कि वह इस पहलू की समीक्षा करेगी कि तीन तलाक़ मुसलमानों के लिए मौलिक अधिकार है या नहीं.

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प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की एक पीठ ने कहा कि वह इस पहलू की समीक्षा करेगी कि तीन तलाक़ मुसलमानों के लिए मौलिक अधिकार है या नहीं.

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फाइल फोटो: रॉयटर्स

सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक़ की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की और कहा कि वह इस बात की समीक्षा करेगा कि मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक़ की प्रथा उनके धर्म के संबंध में मौलिक अधिकार है या नहींं, लेकिन वह बहुविवाह के मामले पर संभवत: विचार नहीं करेगा.

प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की एक पीठ ने कहा कि वह इस पहलू की समीक्षा करेगी कि तीन तलाक़ मुसलमानों के लिए प्रवर्तनीय मौलिक अधिकार है या नहीं.

पीठ में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर भी शामिल हैं. पीठ ने कहा कि वह मुसलमानों के बीच बहुविवाह के मामले पर विवेचना संभवत: नहीं करेगी क्योंकि यह पहलू तीन तलाक़ से संबंधित नहीं है.

इस पीठ में विभिन्न धार्मिक समुदायों -सिख, ईसाई, पारसी, हिंदू और मुस्लिम- से ताल्लुक रखने वाले न्यायाधीश शामिल हैं.

पीठ सात याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिनमें पांच अलग-अलग याचिकाएं मुस्लिम महिलाओं ने दायर की हैं. उन्होंने समुदाय में प्रचलित तीन तलाक़ की प्रथा को चुनौती दी है. याचिकाओं में दावा किया गया है कि तीन तलाक़ असंवैधानिक है.

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पीठ द्वारा तैयार किए गए दो प्रश्नों पर अपने-अपने तर्क तैयार करने के लिए हर पक्ष को दो दिन का समय दिया जाएगा और एक दिन उनकी दलीलों के विरोध में तर्क देने के लिए दिया जाएगा.

इसने यह भी स्पष्ट किया कि वह दलीलों को दोहराने वाले किसी भी वकील को रोक देगी. पीठ ने कहा, हर पक्ष ऐसा कोई भी तर्क पेश कर सकता है जो वह पेश करना चाहता है लेकिन किसी प्रकार का दोहराव नहीं होना चाहिए. वे केवल तीन तलाक़ की वैधता पर ध्यान केंद्रित करेंगे.

याचिकाओं में मुसलमानों के बीच निकाह हलाला और बहुविवाह जैसी अन्य प्रथाओं की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई है. संविधान पीठ स्वत: ही लिए गए मुख्य मामले को मुस्लिम महिलाओं की समानता की चाह नाम की याचिका के रूप में भी विचार के लिए ले रही है.

शीर्ष अदालत ने स्वत: ही इस सवाल का संज्ञान लिया था कि क्या महिलाएं तलाक़ अथवा उनके पतियों द्वारा दूसरी शादी के कारण लैंगिक पक्षपात का शिकार होती हैं.

इस मामले की सुनवाई इसलिए अधिक महत्वपूर्ण हो गयी है क्योंकि शीर्ष अदालत ने ग्रीष्मावकाश के दौरान इस पर विचार करने का निश्चय किया और उसने यहां तक सुझाव दिया कि वह शनिवार और रविवार को भी बैठ सकती है ताकि इस मामले में उठे संवेदनशील मुद्दों पर शीघ्रता से निर्णय किया जा सके.

इस मामले में सुनवाई और भी महत्वपूर्ण हो गयी है क्योंकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अप्रैल के अंतिम सप्ताह में ही अपने एक फैसले में तीन तलाक़ की प्रथा को एकतरफा और कानून की दृष्टि से खराब बताया था.

उच्च न्यायालय ने अक़ील जमील की याचिका खारिज करते हुये यह फैसला सुनाया था. अक़ील की पत्नी ने उसके खिलाफ आपराधिक शिकायत दायर कर आरोप लगाया था कि वह दहेज की ख़ातिर उसे प्रताडि़त करता था और जब उसकी मांग पूरी नहीं हुई तो उसने उसे तीन तलाक़ दे दिया.

उच्चतम न्यायालय ने 30 मार्च को कहा था कि तीन तलाक़, निकाह हलाला और बहुविवाह की मुस्लिम प्रथाएं ऐसे मामले हैं जो बहुत महत्वपूर्ण हैं और इसमें संवेदनाएं शामिल हैं.

अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे प्रभावशाली मुसलमान संगठनों ने इन मामलों में न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का विरोध किया है.