उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह ज़िले गोरखपुर के बांसगांव और पड़ोसी ज़िले महराजगंज के मधवलिया गोसदन में बड़ी संख्या में गोवंशीय पशुओं की मौत हुई है.
गोरखपुर: सरकार संरक्षित गोशालाओं में बड़ी संख्या में गोवंशीय पशुओं की मौत ने गायों को लेकर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की संवेदनशीलता पर सवाल खड़ा कर दिया है.
गायों के लिए एम्बुलेंस, हर जिले में 1000 की क्षमता वाले गो-आश्रय स्थल और शराब, टोल टैक्स पर गो-कल्याण सेस लगाने जैसी योजनाओं की घोषणाओं व अमल के बाद भी सरकार संरक्षित गोशालाएं बदइंतजामी की शिकार है.
अभी हाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जिले गोरखपुर के बांसगांव और पड़ोसी जिले महराजगंज के मधवलिया गोसदन में बड़ी संख्या में गोवंशीय पशुओं की मौत हुई है.
गोवंशीय पशुओं की मौत का कारण गोशालाओं में क्षमता से अधिक पशुओं को रखना, चारे-पानी, इलाज आदि की व्यवस्था न होना और गोशालाओं में देखरेख के लिए कर्मचारियों की कमी, बजट का अभाव आदि कारण सामने आ रहे हैं.
मार्च महीने के आखिरी सप्ताह में गोरखपुर जिले के बांसगांव स्थित गोवंश आश्रय गृह में 10 गोवंशीय पशुओं की मौत हुई थी. इस घटना से नाराज बांसगांव विकास मंच ने गोशाला संचालित करने वाले जिला पंचायत के जिला कर समाहर्ता अधिकारी संतोष कुमार सिंह के खिलाफ पशु क्रूरता अधिनियम के अंतर्गत केस दर्ज कराया था.
संगठन ने आरोप लगाया था कि गोवंश आश्रय गृह में रखे गए पशुओं के खाने-पीने का समुचित प्रबंध न होने से उनकी मौत हो रही है.
बासगांव नगर पंचायत के वार्ड संख्या दो बड़ाबन में स्थित इस गोवंश आश्रय गृह में उस वक्त 100 गोवंशीय पशुओं को रखा गया था. हर एक पशु के चारे-पानी के लिए प्रतिदिन सिर्फ 30 रुपये की धनराशि व्यय करने की व्यवस्था थी.
इस घटना के बाद महराजगंज जिले के मधवलिया गोसदन में इस महीने के छह दिन में 57 गोवंशीय पशुओं की मौत की खबर आई है. मधवलिया गोसदन में एक जून को 6, दो जून को 17, तीन जून को 15, पांच जून को 14 और छह जून को 5 गोवंशीय पशुओं की मौत हो गई.
इस गोसदन में वर्ष 2017-18 में भी 150 से अधिक गोवंशीय पशुओं की मौत हुई थी.
मधवलिया गोसदन, गोरखपुर व आसपास के जिलों का सबसे बड़ा गोसदन है, जिसके पास 500 एकड़ भूमि है. इस वक्त यहां पर दो हजार पशुओं की रखने की व्यवस्था है, लेकिन गोरखपुर सहित कई जिलों से आवारा पशुओं को पकड़कर यहां भेज दिए जाने के कारण इसकी व्यवस्था चरमरा गई है.
इस समय यहां पर ढाई हजार से अधिक गोवंशीय पशु हैं, जिनके रखरखाव के लिए दो सुपरवाइजर और 20 कर्मचारी तैनात हैं.
चार महीने से गोसदन में प्रबंधक का पद खाली है और यहां कार्य कर रहे सभी 22 कर्मचारियों, जिन्हें गोसेवक कहा जाता है, उन्हें वेतन नहीं मिला है.
छह दिन में 57 गोवंशीय पशुओं की मौत पर निचलौल के एसडीएम देवेंद्र कुमार का कहना है कि पिछले कुछ दिनों में गोसदन में गायों की मौत हुई है. मरने वाली अधिकतर गायें बूढ़ी और कमजोर थीं. नगर निगम गोरखपुर से लाए गए सांड प्लास्टिक खाने की वजह से बीमार थे.
यही तर्क जनवरी 2018 में गोवंशीय पशुओं की मौत पर दिया गया था. उस समय यह भी कहा गया था कि ठंड के कारण भी गोवंशीय पशुओं की मौत हुई है. इस गोसदन में नवंबर 2016 से नवंबर 2017 तक 126 गोवंशीय पशुओं की मौत हुई थी.
दिसंबर 2017 में 8 और जनवरी 2018 में 23 गोवंशीय पशुओं की मौत हुई थी. गोवंशीय पशुओं की मौतों मई, जून और जुलाई महीने में सर्वाधिक हैं, जिससे पता चलता है कि ठंड मौत का कारण नहीं है बल्कि गोसदन की बदइंतजामी इसका कारण है.
गोसदन के एक कर्मचारी ने बताया कि गायों, बछड़ों और सांड़ों को डेढ़ माह से हरा चारा नहीं मिला. करीब आठ एकड़ में हरे चारे की बुआई हुई थी लेकिन पशुओं की संख्या अधिक होने के नाते चारा जल्द ही खत्म हो गया. भूसा भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है.
मीडिया में गोवंशीय पशुओं की मौत की खबर आने के बाद छह जून को जिले के अफसरों ने गोसदन का दौरा किया. अफसरों का जोर इस बात पर था कि पशुओं की मौत की खबर मीडिया को कैसे मिल रही है.
गोसदन के कर्मचारियों को हिदायत दी गई कि किसी भी सूरत में यहां की खबरें मीडिया तक नहीं पहुंचे. इसके बाद यहां कार्य करने वाले गोसेवक चुप्पी साध गए हैं.
जिला गोसदन मधवलिया के प्रबंधक जितेंद्र पाल सिंह को 28 जनवरी 2019 को हटा दिया गया था. उनके स्थान पर अब तक नए प्रबंधक की नियुक्ति नहीं हुई है.
नए प्रबंधक की नियुक्ति होने तक गोसदन का प्रभार एसडीएम के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय कमेटी को दी गई है, लेकिन यह समिति भी व्यवस्था सुधारने में विफल रही है.
जिला गोसदन मधवलिया के ढाई हजार गोवंशीय पशुओं की निगरानी व उनके चारे-पानी के प्रबंध के लिए दो सुपरवाइजर समेत 22 गोसेवकों को रखा गया है, जिन्हें जनवरी माह के बाद से मानदेय नहीं मिला है.
गोसेवकों को 100 रुपये और सुपरवाइजर को 125 रुपये रोज दिहाड़ी देने की व्यवस्था है. कुछ समय पहले इसे बढ़ाकर 200 और 250 करने की बात हुई, जो अभी लागू नहीं हो पाया है.
एक ऐसा गोसदन जिसके पास 500 एकड़ से अधिक भूमि हो, जिसका बड़ा हिस्सा किराये पर खेती के लिए दिया जाता हो और उससे ठीक-ठाक आमदनी होती है, जिसका संचालन जिला स्तरीय प्रबंधन समिति करती हो और जिसके अध्यक्ष डीएम होते हों, वहां पर बदइंतजामी के चलते पिछले तीन वर्षों से लगातार गोवंशीय पशुओं की मौत हैरान करने वाली है.
मधवलिया गोसदन की स्थापना चार जनवरी 1957 के एक शासनादेश के जरिये हुई थी. 18 अप्रैल 1969 में वन विभाग द्वारा इसके लिए पशुपालन विभाग को 711 एकड़ भूमि आवंटित की गई. इसके बाद 24 जून 1970 को पशुपालन विभाग को 500 एकड़ भूमि हस्तांतरित कर दी गई. शेष 211 एकड़ भूमि मुआयना के बाद देने की बात कही गई लेकिन वह भूमि आज तक नहीं मिली.
इसी 500 एकड़ में गोसदन की स्थापना हुई. वर्ष 1997 में मंडलायुक्त राजीव गुप्ता के कार्यकाल में इसका जीर्णोद्धार हुआ. वर्तमान में गोसदन की 500 एकड़ भूमि में 170 एकड़ में खेती है. वन विभाग ने हाल में 100 एकड़ भूमि को तार लगाकर अपने कब्जे में ले लिया है. शेष भूमि पर चारागाह, पशु बाड़े व कार्यालय है.
गोसदन का संचालन प्रबंध समिति करती है, जिसके पदेन अध्यक्ष जिलाधिकारी होते हैं. गोसदन की आय के लिए इसके 170 एकड़ भूमि स्थानीय किसानों को लीज पर दी गई है. किसानों को प्रति एकड़ के हिसाब से प्रति वर्ष पांच हजार रुपये और भूसा व पुआल देना होता है.
गोसदन में पहले से 14 कर्मचारी काम कर रहे थे. इनकी संख्या बढाकर 22 की गई है. पशु बाड़े की भी संख्या बढ़ाई गई है. पिछले एक वर्ष में गोसदन की व्यवस्था को ठीक करने में 18 लाख रुपये खर्च किए गए हैं. इसमें सांसद निधि से पांच किलोवाट का सोलर प्लांट भी लगाया गया है. इसके अलावा गोसदन की आय से बाड़े का विस्तारीकरण, मरम्मत और रबड़ के गद्दे भी खरीदे गए हैं.
फिर भी बुनियादी इंतजाम अभी तक नहीं हुए. गोसदन के ट्रैक्टर और अन्य यंत्र बहुत पुराने हो गए हैं और उनसे काम लेना मुश्किल है.
सबसे बड़ी समस्या यह है कि यहां जब-तब गोरखपुर नगर निगम और दूसरे जिलों से पकड़े गए छुट्टा पशु भेज दिए जाते हैं. इससे यहां हमेशा क्षमता से अधिक गोवंशीय पशु रहते हैं, जिनकी देखभाल काफी मुश्किल होती है.
गोसदन की भूमि का समुचित प्रबंधन न होना भी एक बड़ी समस्या है. गोसदन से पूर्व में जुड़े रहे एक कर्मचारी ने बताया कि गोसदन का एक हिस्सा लो-लैंड है. इसी से होकर एक बरसाती नाला भी बहता है, जिसके कारण बरसात में गोसदन का बड़ा हिस्सा दलदली भूमि में बदल जाता है. इसमें फंसकर भी पशुओं की मौत होती है. इस समस्या का अभी तक निराकरण नहीं हुआ है.
दो वर्ष पहले इस गोसदन की जरूरी आवश्यकताओं की पहचान करते हुए राज्य सरकार से 15 सूत्री मांग की गई थी. इसमें गोसदन परिसर में ही पशु चिकित्सालय की स्थापना, गोसदन को राजकीय गोसदन का दर्जा देकर कर्मचारियों को नियमित वेतन, रेकरिंग ग्रांट, पशुओं के चारे के लिए बहुवर्षीय घास का रोपण, गोसदन परिसर की चहारदीवारी का निर्माण, ट्रैक्टर, ट्राली, भूसा मशीन आदि की की मांग प्रमुख थी.
दिन-रात गाय का नाम जपने वाली प्रदेश की योगी सरकार मधवलिया गोसदन की इन जरूरी मांगों को अभी तक पूरा नहीं कर सकी है. गायों का मरना जारी है और शासन-प्रशासन मौतों को रोकने के बजाय इन सूचनाओं को मीडिया तक पहुंचने से रोकने में सारा जोर लगा रहा है.
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)