शंघाई सहयोग संगठन के मुख्य न्यायाधीशों और जजों को संबोधित करते हुए जस्टिस गोगोई ने कहा कि लोकप्रियतावादी ताकतें जजों को इस तौर पर पेश कर रही हैं जैसे कि गैर निर्वाचित जज चुनी हुई बहुमत की सरकार के फैसले को पलट रहे हैं.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने बीते मंगलवार को कहा कि लोकप्रियतावाद (पॉप्युलिज्म) का उदय न्यायालय की स्वतंत्रता के लिए चुनौती है और न्यायपालिका को ऐसी ताकतों के खिलाफ होना चाहिए और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के मुख्य न्यायाधीशों और जजों को संबोधित करते हुए जस्टिस गोगोई ने कहा कि लोकप्रियतावादी ताकतें जजों को इस तौर पर पेश कर रही हैं जैसे कि गैर निर्वाचित जज चुनी हुई बहुमत की सरकार के फैसले को पलट रहे हैं.
उन्होने कहा, ‘हालांकि, हमें ये समझने की जरूरत है कि ऐसी परिस्थितियों ने दुनिया भर के न्यायायिक संस्थानों पर भयानक दबाव डाला है और ये चौंकाने वाली बात नहीं है कि कुछ जगहों पर न्यायपालिका ने पॉप्युलिस्ट ताकतों के सामने घुटने टेक दिए.’
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘ये भी एक क्षेत्र है जहां न्यायपालिका को खुद को तैयार रखने की जरूरत है, न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला कर रहे इन ताकतों के खिलाफ खुद को मजबूत बनाने की जरूरत है.’
जस्टिस गोगोई का ये बयान उस प्रचलित मानसिकता के खिलाफ आया है, जहां लोग ये मानते हैं कि चुने हुए प्रतिनिधियों के फैसले को कैसे किसी स्वतंत्र संस्थान का व्यक्ति पलट देता है, जबकि वो जनता द्वारा निर्वाचित नहीं है.
हालांकि उन्होंने अपना ये बयान वैश्विक संदर्भ में दिया है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि मुख्य न्यायाधीश का बयान भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार की उन कोशिशों पर प्रतिक्रिया है, जहां सरकार जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका की भूमिका चाहती है.
जस्टिस गोगोई ने कहा, ‘जजों की गैर राजनीतिक नियुक्ति ही न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित कर सकती है.’ मालूम हो कि हाल ही में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि जजों की नियुक्ति में न तो वे और न ही मंत्रालय ‘पोस्ट ऑफिस’ है, इन नियुक्तियों में कार्यपालिका की भूमिका है.
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि गैर राजनीतिक नियुक्ति, कार्यकाल की सुरक्षा और हटाने की कड़ी प्रक्रिया, जजों की प्रतिष्ठा, आंतरिक जवाबदेही प्रक्रिया जैसी चीजों को सही तरीके से लागू करने पर न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित की जा सकती है.
साल 2015 में जब सुप्रीम कोर्ट ने कोलेजियम की जगह राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) बनाने के केंद्र सरकार के फैसले को पलट दिया था तो कई लोग ये कह रहे थे ‘गैर निर्वाचित जज जनता द्वारा चुने गए बहुमत के फैसले को पलट रहे हैं.’ राजनीतिक बिरादरी में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर काफी विरोध हुआ था.