बलात्कार पीड़िता मेडिकल बोर्ड की सहमति के बिना करा सकती हैं गर्भपात: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कानून, 1971 की धारा तीन के प्रावधानों के तहत गर्भपात कराया जा सकता है. पीड़िता को बेवजह अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए.

मद्रास हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कानून, 1971 की धारा तीन के प्रावधानों के तहत गर्भपात कराया जा सकता है. पीड़िता को बेवजह अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए.

मद्रास हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)
मद्रास हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि बलात्कार की पीड़िता को गर्भपात कराने के लिए मेडिकल बोर्ड या न्यायपालिका का रुख करने की जरूरत नहीं है बशर्ते भ्रूण 20 हफ्ते का नहीं हुआ हो.

जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने एक पीड़िता की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पीड़िता द्वारा अनचाहे गर्भ का सामना करने के सभी मामलों में अगर गर्भावस्था की अवधि 20 हफ्ते से ज्यादा नहीं हुई हो तो उसे मेडिकल बोर्ड के पास भेजे जाने की जरूरत नहीं है.

उन्होंने अपने आदेश में कहा, ‘मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कानून, 1971 की धारा तीन के प्रावधानों के तहत गर्भपात कराया जा सकता है. पीड़िता को बेवजह अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए.’

पीटीआई के अनुसार, पीड़िता के साथ कथित तौर पर नवीथ अहमद नाम के एक शख्त ने जबरन बलात्कार किया था. इस पर पीड़िता ने याचिका दाखिल करते हुए मामले को स्थानीय पुलिस के पास से क्राइम ब्रांच सीआईडी के पास स्थानांतरित करने की मांग की थी.

पीड़िता ने आरोप लगाया था कि हमलावर ने उसका वीडियो बनाया और चुप रहने की धमकी दी. इसका हवाला देते हुए पीड़िता ने राज्य की सरकारी इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गायनकोलॉजी से मेडिकली अपना गर्भपात की अनुमति मांगी थी.

आरोपी बलात्कारी के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज कराने के बाद पीड़िता ने पुलिस को ज्ञापन देकर अपना गर्भपात की व्यवस्था करने की मांग की थी.

हालांकि, पुलिस के कदम न उठाने के बाद वह खुद जाकर इंस्टीट्यूट में भर्ती हो गई थी. शुरू में डॉक्टर उसका गर्भपात को तैयार हो गए थे लेकिन पुलिस जांच और फोरेंसिक परीक्षण को देखते हुए इंस्टीट्यूट ने ऐसा नहीं किया.

कोई विकल्प न मिलने पर पीड़िता ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी. हाईकोर्ट ने उसे सरकारी अस्पताल कस्तूरबा गांधी हॉस्पिटल फॉर वूमेन एंड चिल्ड्रेन भेज दिया. वहां पता चला कि लड़की 8 से 10 हफ्ते की गर्भवती है.

इस पर, सरकारी अस्पताल और इंस्टीट्यूट ने वहां के राजीव गांधी गवर्नमेंट जनरल हॉस्पिटल के डीन को पत्र लिखा. पत्र में उन्होंने लिखा कि केवल वहां का मेडिकल बोर्ड ही गर्भ गिरा सकता है.

इसके बाद अदालत ने पीड़िता को राजीव गांधी गवर्नमेंट जनरल हॉस्पिटल ले जाने का आदेश दिया. अदालत ने पीड़िता का गर्भपात, डीएनए टेस्ट का सैंपल लेने और उसे फोरेंसिक लैब को सौंपने का भी आदेश दिया.

इसके अनुसार, मेडिकल बोर्ड ने याचिकाकर्ता की जांच की और उसका गर्भ गिरा दिया. उसने इसकी रिपोर्ट 18 जून को सौंप दी.

इसके बाद पीड़िता की वकील सुधा रामलिंगम ने अदालत में कहा कि 20 सप्ताह से कम गर्भ वाले ऐसे सभी मामले जिनमें मेडिकली गर्भपात की आवश्यकता होती है, उनमें पीड़िता को हर बार अदालत का दरवाजा खटखटाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए.

जज ने कहा, ‘अगर महिला की जिंदगी दांव पर लगी हो तो 20 सप्ताह से अधिक गर्भ वाले मामलो में भी चिकित्सीय गर्भपात (एमपीटी) अधिनियम के अनुसार गर्भ गिराया जा सकता है.’

अदालत ने कहा कि 20 सप्ताह से अधिक गर्भ के अन्य सभी मामलों में पीड़िता को गर्भपात के लिए हाईकोर्ट आना होगा और इसके बाद मेडिकल बोर्ड मामले की जांच करेगा. गर्भपात वाले सभी आपराधिक मामलों में डीएनए के लिए सैंपल लिए जाएंगे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)