बीते अप्रैल माह में श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में तीन गिरजाघरों और तीन होटलों का निशाना बनाते हुए किए गए धमाकों के 258 लोगों की मौत हो गई थी. इस सिलसिले में 10 महिलाओं सहित 100 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया है.
कोलंबो: श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने शनिवार को देश में लगे आपातकाल की समयावधि और बढ़ा दी.
द्वीप राष्ट्र में अप्रैल में ईस्टर रविवार को हुए धमाकों के बाद सुरक्षा कारणों के चलते आपातकाल घोषित किया गया था. इन धमाकों में 258 लोगों की जान चली गई.
मैत्रीपाला सिरिसेना ने कहा कि उनका मानना है कि देश में ‘सार्वजनिक आपातकाल’ था और वह आपातकाल की स्थिति को बढ़ाते हुए सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के प्रावधानों को लागू कर रहे हैं. संदिग्धों को पकड़ने और हिरासत में लेने के लिए पुलिस और सुरक्षा बलों को व्यापक अधिकार देने वाला यह सख्त कानून शनिवार को समाप्त होने वाला था.
कोलंबो में तीन गिरजाघरों और तीन होटलों का निशाना बनाते हुए किए गए धमाकों के सिलसिले में 10 महिलाओं सहित 100 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार, आपातकाल बढ़ाने के फ़ैसले के पीछे पुलिस द्वारा कई शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक जांच की घोषणा बताई जा रही है. इन आरोपों में बम विस्फोट के मामले में लापरवाही और चूक शामिल है.
मई के अंत में, सिरिसेना ने ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, अमेरिका और यूरोपीय राज्यों के राजनयिकों को बताया था कि सुरक्षा स्थिति ‘99 प्रतिशत सामान्य हो गई है’ और वह 22 जून तक आपातकाल हटा लेंगे.
सिरीसेना के अचानक यह फैसला लेने पर सरकार की ओर से तत्काल कोई बयान जारी नहीं किया गया लेकिन राजधानी में सुरक्षा कड़ी बनी हुई है. आपातकाल एक महीने के लिए ही घोषित किया जा सकता है और 10 दिन के भीतर संसद को इसकी पुष्टि करनी होती है.
मई के आख़िरी हफ़्ते में सिरिसेना ने ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, अमेरिका और यूरोपीय राज्यों से राजनयिकों को बताया था कि सुरक्षा की स्थिति 99% तक सामान्य हो गयी है और 22 जून तक वो आपातकाल क़ानूनों को ख़त्म करने की अनुमति दे देंगें. उन्होंने इस बात की पुष्टि भी की थी किहमले में शामिल लोग या तो सुरक्षा बलों द्वारा मार दिए जा चुके हैं या जेल में हैं.
दैनिक जागरण की ख़बर के मुताबिक़ उल्लेखनीय है कि इन आतंकी हमलों को लेकर भारत ने भी श्रीलंका को आगाह करते हुए इनपुट दिया था लेकिन श्रीलंकाई अधिकारियों द्वारा इन सूचनाओं पर ध्यान नहीं दिया गया.
इसके लिए सिरिसेना आलोचकों के निशाने पर भी रहे हैं. यहां तक कि देश की एक संसदीय समिति ने भी कहा था कि राष्ट्रपति राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रोटोकाल्स को समुचित तरीके से पालन करने में विफल साबित हुए हैं.