बिहार सरकार द्वारा कराए गए सर्वे में ये जानकारी सामने आई है. राज्य में एईएस या चमकी बुखार से अब तक 130 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है.
नई दिल्ली: बिहार में एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) या चमकी बुखार से प्रभावित बच्चों के तीन चौथाई परिवार गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) जीवन-यापन करते हैं. यह खुलासा बिहार सरकार द्वारा सामाजिक आधार पर करवाए गए एक सर्वेक्षण में हुआ.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में अभी तक 287 परिवारों के बच्चों के चमकी बुखार से प्रभावित होने की खबर सामने आई है.
सर्वे किए जाने वाले परिवारों के घरों की औसत सालाना आय लगभग 53,500 रुपये या 4,465 रुपये प्रति माह है. बता दें कि रंगराजन समिति ने 2011-12 में ग्रामीण बिहार के लिए गरीबी रेखा को प्रति व्यक्ति प्रति माह 971 रुपये बताई थी. औसतन पांच लोगों के परिवार के लिए यह राशि 4,855 प्रति माह थी.
सालाना दो फीसदी महंगाई के हिसाब से भी जोड़ें तो आठ साल बाद यह राशि 1138 रुपये प्रतिदिन या पांच लोगों के परिवार के लिए 5700 रुपये प्रतिमाह होगी.
जिन परिवारों का सर्वे किया गया उनमें से 77 फीसदी इससे भी कम कमाते हैं जबकि उनमें से अधिकतर परिवारों में 6-9 सदस्य हैं.
इस सर्वे में ऐसे भी परिवार सामने आए जिनकी सालाना आय 10 हजार रुपये कम है जबकि सर्वे के तहत आने वाले सबसे अच्छे परिवारों की सालाना आय 1.6 लाख रुपये से कम है.
सर्वे किए जाने वाले परिवारों में से लगभग 82 फीसदी (235) परिवार मजदूरी करके घर का खर्च चलाते हैं.
लगभग हर तीसरे परिवार के पास राशन कार्ड नहीं है जबकि जिस हर छह में से एक परिवार के पास राशन कार्ड है उन्हें पिछले महीने राशन नहीं मिल पाया.
287 में 200 (70 फीसदी) परिवारों ने कहा कि एईएस से बीमार होने से पहले उनके बच्चे धूप में खेल रहे हैं. वहीं, उनमें से 61 बच्चों ने रात को सोने से पहले खाना नहीं खाया था.
लगभग दो-तिहाई परिवार (191) कच्चे घरों में रहते हैं, जिनमें से केवल 102 परिवारों को ही प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिल पाया.
इन घरों में 87 फीसदी लोगों के पास पीने का साफ पानी नहीं है जबकि करीब 60 फीसदी लोगों के घरों में टॉयलेट नहीं है. बीमार लोगों के लिए सरकार की ओर से चलाए जा रहे एंबुलेंस योजना के बारे में 84 प्रतिशत परिवार को जानकारी नहीं है.
लगभग 64 फीसदी घर लीची के बगीचे वाले इलाकों के आस-पास बसे हैं. वहीं, इन घरों के लोगों ने कहा कि उनके बच्चों ने बीमार होने से पहले लीची खाई थी.
तीन चौथाई मामलों में घरों के बड़े लोगों को चमकी बुखार या एईएस के बारे में जानकारी नहीं थी और उन्हें इस बात की भी जानकारी नहीं थी कि इनका इलाज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में उपलब्ध है. इनमें से केवल एक चौथाई मामले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों भेजे गए.