क़ानून का राज होने के बाद भी भीड़ का राज क़ायम है. इस भीड़ को धर्म, जाति और परंपरा के नाम पर छूट मिली है. किसी औरत को डायन बताकर मार देती है, जाति तोड़कर शादी करने वालों की हत्या कर देती है. इसी कड़ी में अब यह शामिल हो गया है कि अपराध करने वाला या झगड़े की ज़द में आ जाने वाले मुसलमान को जय श्री राम के नाम पर मार दिया जाएगा.
बचपन में सूरज निकलने के समय गंगा नदी में नहाने के दिनों में कई लोगों को देखता था. रोज़ नहाने आने वाले लोग धार के बहाव और सुबह की ठंड से कमज़ोर पड़ते आत्मबल को सहारा देने के लिए राम का नाम लेने लगते थे. कांपता हुआ आदमी राम का नाम लेते ही डुबकी लगा देता था.
अब देख रहा हूं कमज़ोर को जान से मार देने और डराने के लिए जय श्री राम का नाम बुलवाया जा रहा है. अभी तक गाय के नाम पर कमज़ोर मुसलमानों को भीड़ ने मारा. अब जय श्री राम के नाम पर मार रही है.
दोनों ही एक ही प्रकार के राजनीतिक समाज से आते हैं. यह वही राजनीतिक समाज है जिसके चुने हुए प्रतिनिधि लोकसभा में एक सांसद को याद दिला रहे थे कि वह मुसलमान है और उसे जय श्री राम का नाम लेकर चिढ़ा रहे थे. सड़क पर होने वाली घटना संसद में प्रतिष्ठित हो रही थी.
दिल्ली में पैदल जा रहे मोहम्मद मोमिन को किसी की कार छू गई. कुछ हुआ नहीं, कार वाले ने पास बुलाकर पूछा कि सब ठीक है लेकिन जैसे ही कहा कि अल्लाह का शुक्र है उसे मारने लगे. जय श्री राम बोलने के लिए कहने लगे. गालियां दी. वापस अपनी कार लेकर आए और मोमिन को टक्कर मार दी.
राजस्थान और गुड़गांव से भी जय श्री राम बुलवाने को लेकर घटना हो चुकी है. आए दिन रोड रेज [Road Rage] की घटना होती रहती है. यह एक बीमारी है जिसके शिकार लोग कार टकराने या मामूली बहस होने पर किसी को मार देते हैं.
भारत में आए दिन कहीं न कहीं से इसकी खबर आ जाती है कार में टक्कर हुई या मामूली बात पर बहस हुई, भीड़ बनकर लोग एक दूसरे पर टूट पड़े. अब अगर इस आकस्मिक गुस्से में राजनीतिक समाज का सांप्रदायिक पूर्वाग्रह मिक्स हो जाए तो इसके नतीजे और भी ख़तरनाक हो सकते हैं.
समाज में पहले से जो गुस्सा मौजूद है अब उसे एक और चिंगारी मिल गई है. पहले गाय थी, अब जय श्री राम मिल गए हैं.
जमशेदपुर में 24 साल के शम्स तबरेज़ को लोगों ने चोरी के आरोप में पकड़ा. तबरेज़ के परिवार वालों का कहना है कि उसने चोरी नहीं की, लेकिन आप सोचिए उस सनक के बारे में और कानून व्यवस्था के बारे में. तबरेज़ को खंभे से बांध कर सात घंटे तक मारते रहे. जय श्री राम बुलवाते रहे. तबरेज़ मर गया.
कानून का राज होने के बाद भी भीड़ का राज कायम है. इस भीड़ को धर्म, जाति और परंपरा के नाम पर छूट मिली है. किसी औरत को डायन बताकर मार देती है तो जाति तोड़कर शादी करने वाले जोड़ों की हत्या कर देती है.
इसी कड़ी में अब यह शामिल हो गया है कि अपराध करने वाला या झगड़े की ज़द में आ जाने वाले मुसलमान को जय श्री राम के नाम पर मार दिया जाएगा.
हम राजनीतिक और मानसिक रूप से बीमार हो चुके हैं. जिस तरह से हम डायबिटीज़ जैसी बीमारी से एडजस्ट हो चुके हैं उसी तरह इस राजनीतिक और मानसिक बीमारी से भी हो गए हैं.
आख़िर कोई कितना लिखे. कितना बोले. हत्यारों को पता है कि बोलने वाले एक दिन थक जाएंगे. उनके पास इसकी निंदा के एक ही तर्क होंगे. हत्यारों के पास हथियार बदल जाते हैं. पहले गाय थी और अब जय श्री राम मिल गए हैं.
जब क्रोध की यह आम बीमारी सांप्रदायिक रूप ले लो ख़बरदार होने का वक्त है. फिर कोई इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह चपेट में न आ जाए.
यूपी के गाज़ियाबाद के खोड़ा में एक 50 साल के संघ के स्वयंसेवक की हत्या हो गई है. उन्होंने पड़ोसी के लड़के हो इतना ही मना किया था कि उनकी बेटी से न मिला करे. उनके साथ मारपीट हो गई और वे मर गए.
यहां राम का नाम नहीं लिया गया मगर यहां तो गुस्से का शिकार वह हुआ जो राम का नाम लेता होगा. ऐसी अनेक घटनाएं हैं जो धर्म और धर्म के बग़ैर मौक़े पर लोगों की जान ले रही हैं.
पहले कोई बीमारी जब राजनीतिक बीमारी बन जाए, तो वह किसी टीके से खत्म नहीं होती है. जमशेदपुर, गुरुग्राम, दिल्ली और राजस्थान की घटना बता रही हैं कि यह नागरिकता की अवधारणा से विश्वासघात है.
मैं लिख सकता था कि यह राम के साथ विश्वासघात है मगर नहीं लिख रहा क्योंकि राम के नाम पर हत्या करने या किसी को मारने वाले इन बातों से फर्क नहीं पड़ता. वो राम का नाम लेंगे क्योंकि तभी राजनीतिक समाज उनका साथ देगा और सत्ता उन्हें बचाएगी.
(यह लेख मूल रूप से रवीश कुमार के फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है.)