झारखंड मॉब लिंचिंग: अमेरिकी संस्था ने तबरेज अंसारी की हत्या की निंदा की

अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने बीते 21 जून को जारी किए गए रिपोर्ट में कहा था कि भारत में 2018 में गायों के व्यापार या गोवध की अफवाह पर अल्पसंख्यक समुदाय, खासकर, मुसलमानों के खिलाफ चरमंपथी हिंदू समूहों ने हिंसा की है.

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तबरेज़ अंसारी. (फोटो साभार: फेसबुक)

अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने बीते 21 जून को जारी किए गए रिपोर्ट में कहा था कि भारत में 2018 में गायों के व्यापार या गोवध की अफवाह पर अल्पसंख्यक समुदाय, खासकर, मुसलमानों के खिलाफ चरमंपथी हिंदू समूहों ने हिंसा की है.

तबरेज़ अंसारी. (फोटो साभार: फेसबुक)
तबरेज़ अंसारी. (फोटो साभार: फेसबुक)

वाशिंगटन: अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने झारखंड में मुस्लिम युवक की भीड़ द्वारा हत्या की बुधवार को कड़ी निंदा की और सरकार से इस तरह की हिंसा और भय के माहौल को रोकने के लिये ठोस कार्रवाई करने का अनुरोध किया.

झारखंड के सरायकेला खर्सवान जिले के धातकीडीह गांव में पिछले बुधवार को तबरेज अंसारी (24) की भीड़ ने चोरी के शक में कथित रूप से खंभे से बांधकर डंडों से पिटाई कर दी थी. एक वीडियो में उसे कथित रूप से ‘जय श्री राम’ और ‘जय हनुमान’ के नारे लगाने के लिये मजबूर किया जा रहा था. शनिवार को उसकी मौत हो गई थी.

अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के अध्यक्ष टोनी पर्किन्स ने कहा, ‘हम इस नृशंस हत्या की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं जिसमें अपराधियों ने कथित तौर पर अंसारी की घंटों पिटाई करते हुए उसे हिंदूवादी नारे लगाने के लिए मजबूर किया.’

टोनी ने कहा, ‘हम भारत सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह अंसारी की हत्या की व्यापक जांच के साथ ही इस मामले को देख रही स्थानीय पुलिस की भूमिका की भी जांच कर ठोस कदम उठाए जिससे इस तरह की हिंसा और भय के माहौल को रोका जा सके.’

उन्होंने कहा, ‘जवाबदेही का अभाव केवल उन लोगों को प्रोत्साहित करेगा जो मानते हैं कि वे धार्मिक अल्पसंख्यकों को दंडित करने के लिये उन्हें निशाना बना सकते हैं.’

बता दें कि, इससे पहले अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने अपनी आधिकारिक रिपोर्ट में कहा था कि भारत में गोहत्या के नाम पर हिंसक हिंदू चरमपंथी समूहों द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों, विशेष रूप से मुसलमानों, के खिलाफ हमला साल 2018 में भी जारी रहा.

अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा तैयार की गई अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट हर देश में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति का वर्णन करती है. साल 2018 की इस रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ भड़काऊ भाषण दिए.

रिपोर्ट में कहा गया था कि नवंबर 2018 तक ऐसे 18 भीड़ द्वारा हमले हुए और साल के दौरान आठ लोग मारे गए. रिपोर्ट के मुताबिक, ‘कुछ गैर सरकारी संगठनों के अनुसार, अधिकारियों ने अक्सर अपराधियों पर कार्रवाई होने से बचाया.’

धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट में बीते छह फरवरी को लोकसभा में भारत के गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों का हवाला दिया गया था. जिससे पता चला कि 2015 से 2017 के बीच सांप्रदायिक घटनाओं में नौ फीसदी की वृद्धि हुई. साल 2017 में सांप्रदायिक हिंसा के 822 मामले सामने आए, जिसमें 111 लोगों की मौत हुई और 2,384 लोग घायल हो गए.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘सरकार गोरक्षकों द्वारा किए गए हमले को लेकर कार्रवाई करने में विफल रही. इन हमलों में कई मौतें हुईं, हिंसा हुई और धमकी देने जैसी चीजें शामिल थीं.’

अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा था कि केंद्र और राज्य सरकारों एवं राजनीतिक दलों के सदस्यों ने भी ऐसे कदम उठाए हैं जिसकी वजह से मुस्लिम प्रथाओं और संस्थान प्रभावित हुए. रिपोर्ट में कहा गया, ‘भारत के ऐसे शहरों का नाम बदलने का प्रस्ताव जारी रहा, जिनका नाम मुस्लिमों से जुड़ा हुआ है. विशेष रूप से इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज रखा गया.’

रिपोर्ट के मुताबिक, ‘कार्यकर्ताओं ने कहा कि ये प्रस्ताव भारतीय इतिहास में मुस्लिम योगदान को मिटाने के लिए तैयार किए गए थे और इससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया है.’

रिपोर्ट में राजस्थान के अलवर में रकबर खान की हत्या और बुलंदशहर में गोहत्या की अफवाह को लेकर हुई हिंसा का उल्लेख किया गया था. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘परंपरा और सामाजिक रिवाज की वजह से महिलाओं और दलित समुदायों के लोगों को धार्मिक स्थलों में प्रवेश से मना करने की प्रथा जारी है.’

हालांकि भारत ने अमेरिका की इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने एक बयान में कहा था कि भारत को अपनी धर्म निरपेक्षता की विश्वसनीयता, सबसे बड़े लोकतंत्र तथा लंबे अर्से से चले आ रहे सहिष्णु एवं समावेशी समाज पर गर्व है.

रवीश कुमार ने कहा था कि भारत का संविधान अल्पसंख्यकों सहित अपने सभी नागरिकों को मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है. इस बात को हर कहीं मान्यता दी गई है कि भारत एक जीवंत लोकतंत्र है जहां संविधान धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार तथा लोकतांत्रिक शासन एवं देश का कानून मौलिक अधिकारों का संरक्षण एवं संवर्धन करता है.

रवीश कुमार ने कहा था कि एक विदेशी संस्था द्वारा हमारे नागरिकों के संविधान संरक्षित अधिकारों की स्थिति पर टिप्पणी करने का कोई औचित्य नहीं है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)