‘इंडियाज इंदिरा: अ सेंटेनियल ट्रिब्यूट’ नाम की किताब का विमोचन करते हुए राष्ट्रपति ने देश की पहली महिला प्रधानमंत्री से जुड़े अनुभव साझा किए.
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इंदिरा गांधी को लोकतांत्रिक देश की अब तक की सबसे स्वीकार्य प्रधानमंत्री बताते हुए उनकी निर्णायक क्षमता को याद किया.
मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी नेतृत्व को सांगठनिक मामलों में तेजी से निर्णय लेने का परोक्ष संदेश देते हुए पूर्व प्रधानमंत्री के काम करने के निर्णायक तरीके को याद किया जिस कारण 1978 में कांग्रेस में दूसरा विभाजन होने के कुछ महीने बाद ही राज्य चुनावों में पार्टी ने शानदार जीत दर्ज की.
राष्ट्रपति ने कहा कि इंदिरा गांधी 20वीं सदी की महत्वपूर्ण हस्ती थीं और भारत के लोगों के लिए अभी भी सर्वाधिक स्वीकार्य शासक या प्रधानमंत्री हैं.
मुखर्जी ने अतीत को याद करते हुए कहा, ‘1977 में कांग्रेस हार गई थी. मैं उस समय कनिष्ठ मंत्री था. उन्होंने मुझसे कहा था कि प्रणब, हार से हतोत्साहित मत हो. यह काम करने का वक़्त है और उन्होंने काम किया.’
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मंच पर मौजूद थे. मुखर्जी ने इस अवसर पर इंदिरा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके जीवन और कार्यों पर एक पुस्तक का विमोचन किया.
उन्होंने अंसारी द्वारा विमोचित ‘इंडियाज इंदिरा: अ सेंटेनियल ट्रिब्यूट’ की पहली प्रति ग्रहण की. कांग्रेस इंदिरा गांधी की शताब्दी जयंती मना रही है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा द्वारा संपादित इस पुस्तक में इंदिरा गांधी के कार्यों और उनके जीवन की घटनाओं का संकलन है. इसकी प्रस्तावना सोनिया गांधी ने लिखी है जो ख़राब स्वास्थ्य के कारण इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सकींं.
राहुल गांधी ने सोनिया गांधी की ओर से उनका भाषण पढ़ा. भाषण में कहा गया, ‘मैंने इंदिरा गांधी में देशभक्ति का जो जज़्बा देखा वह श्रेष्ठ था जो उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम से आत्मसात किया था.’
सोनिया ने कहा कि इंदिरा गांधी एक मित्र और सलाहकार थीं और अपनी इच्छाएं मेरे ऊपर नहीं थोपें, इसको लेकर वह बेहद सतर्क थीं.
राहुल ने कांग्रेस अध्यक्ष की ओर से कहा, ‘इंदिरा गांधी पद, जाति और संप्रदाय जैसे भेदभाव को नापसंद करती थीं. उनके पास दंभ या आडंबर के लिए कोई वक़्त नहीं था. वह पाखंड अथवा धोख़ेबाजी को तत्काल पहचान जाती थीं. उन्हें भारतीय होने का गर्व था, साथ ही वह वृहद और सहिष्णु विचारों वाली एक वैश्विक नागरिक थीं.
कांग्रेस में 1978 में दूसरे विभाजन को याद करते हुए राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा, ‘इंदिरा गांधी को दो जनवरी 1978 को पार्टी अध्यक्ष चुना गया और 20 जनवरी तक कुछ दिनों के अंदर उन्होंने कार्य समिति के गठन को पूरा कर लिया, संसदीय बोर्ड, पीसीसी और एआईसीसी का गठन किया और पार्टी को महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, असम और नेफा विधानसभा चुनावों का सामना करने के लिए तैयार किया.’
उन्होंने कहा कि इसके तुरंत बाद उनके नेतृत्व में पार्टी ने आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में दो तिहाई बहुमत से जीत दर्ज की और महाराष्ट्र में अपनी पार्टी को सबसे बड़ी पार्टी बनाया जहां पार्टी ने कांग्रेस से अलग हो चुके धड़े के साथ मिलकर सरकार बनाई.
राष्ट्रपति ने कहा कि राजनीति के अपने सबसे ख़राब वक़्त में इंदिराजी अपने आप को ज्यादा कामों में लगाए रखतीं थीं. इस दौरान उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा देश हित में लिए गए अनेक कठोर निर्णयों को भी याद किया. मुखर्जी ने स्वर्ण मंदिर को आतंकवादियों से मुक्त कराने के लिए उनके निर्णय का ख़ास तौर पर ज़िक्र किया.
उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने अपने भाषण में कहा, ‘वह देश, विदेश और विश्व में बदलाव और उथल-पुथल के दौर में रहीं और नियति ने उन पर प्रधान नायक की भूमिका अदा करने की जिम्मेदारी अर्पित कर दी.’
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, ‘इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री भर नहीं थीं बल्कि विकासशील देशों की स्वीकृत नेता भी थीं. वह वैश्विक शांति में विश्वास करतीं थीं और उनकी बात को बेहद आदर के साथ सुना जाता था.’
इस कार्यक्रम में कांग्रेस के कई पूर्व केंद्रीय मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों सहित वरिष्ठ नेता मौजूद थे. अतिथियों में गुलाम नबी आज़ाद, अंबिका सोनी, जनार्दन द्विवेदी, पी. चिदंबरम, शीला दीक्षित आदि मौजूद थे.