दिल्ली हाईकोर्ट ने लोकसभा सचिवालय द्वारा जानकारी नहीं देने के लिए संसद के विशेषाधिकार की दलील को सिरे से ख़ारिज कर दिया और याचिकाकर्ता के सूचना का अधिकार को बरक़रार रखा.
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि लोकसभा महासचिव के कार्यकाल विस्तार पर सूचना को आरटीआई कानून के तहत उजागर करने से छूट नहीं मिली है क्योंकि सदन के प्रशासनिक खंड के प्रमुख स्पीकर द्वारा इसे मंजूरी दी जाती है.
जस्टिस एजे भंबानी ने लोकसभा सचिवालय को आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल को 2011 में लोकसभा के तत्कालीन महासचिव के कार्यकाल विस्तार संबंधी सूचना पर जानकारी देने को कहा है.
आरटीआई याचिकाकर्ता को पूर्व में इस आधार पर सूचना देने से मना कर दिया गया था कि यह संसद के विशेषाधिकार का हनन होगा और जानकारी को सूचना का अधिकार कानून की धारा आठ (1)सी के तहत छूट मिली हुई है.
उन्होंने सदन के महासचिव टीके विश्वनाथन को एक साल का सेवा विस्तार प्रदान करने के खिलाफ तत्कालीन विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज द्वारा लोकसभा की तत्कालीन अध्यक्ष मीरा कुमार को लिखे गए पत्र के बाद उठाए गए कदमों को लेकर संबंधित संवाद या फाइल नोटिंग के संबंध में सूचना मांगी थी.
लोकसभा सचिवालय के केंद्रीय जन सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) ने सूचना प्रदान करने से इनकार कर दिया था. केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने भी अग्रवाल की अपील ठुकरा दी थी और सीपीआईओ के आदेश को बरकरार रखा था. इसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय में अपील की थी.
जस्टिस भंबानी ने कहा, ‘ऐसी स्थिति में मेरा विचार है कि तत्कालीन विपक्ष की नेता द्वारा लोकसभा की तत्कालीन अध्यक्ष को लिखे गए पत्र के बाद उठाए गए कदमों को लेकर संबंधित संवाद या फाइल नोटिंग जैसी जानकारी को देने से छूट प्राप्त नहीं है. ऐसी जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए.’
हाईकोर्ट ने कहा कि महासचिव के कार्यकाल का विस्तार अध्यक्ष द्वारा सदन की प्रशासनिक शाखा के प्रमुख के रूप में किया जाता है, न कि सदन या सदन की किसी समिति की ओर से किसी सामूहिक कार्रवाई या निर्णय द्वारा.
कोर्ट ने कहा कि कार्यकाल के विस्तार के मामले पर सदन द्वारा बहस या चर्चा नहीं की गई क्योंकि यह विधायी कार्य या सदन या सदन की किसी भी समिति के किसी अन्य संसदीय कार्य का हिस्सा नहीं था और पदाधिकारियों के बीच यह संवाद संसद में किसी भी कार्यवाही में उनकी भूमिका के संबंध में नहीं था.
उन्होंने कहा, ‘इस तरह के संवाद की जानकारी का खुलासा करने से विपक्ष के नेता, अध्यक्ष/अध्यक्ष की भागीदारी में कोई बाधा या हस्तक्षेप नहीं उत्पन्न होता है और इसकी वजह से किसी भी तरीके से विधायी प्रक्रिया की अखंडता को बिगाड़ने, बाधित करने जैसी दिक्कतें नहीं आएंगी.’
हाईकोर्ट ने सीआईसी के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि सीआईसी ने यह तय करने में गलती की है कि क्या याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई सूचना को आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) (सी) के तहत छूट प्राप्त है या नहीं.
अदालत ने कहा कि इस निष्कर्ष पर पहुंच गया है कि मांगी गई जानकारी का संसद में कार्यवाही से कोई लेना-देना नहीं है और ये मामला संसद के विशेषाधिकार के दायरे में नहीं आता है. इसलिए धारा 8 (1) (सी) के तहत जानकारी देने से मना करने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है.
जज ने कहा, ‘मेरा यह भी मानना है कि इस मामले में याचिकाकर्ता की कानूनी सूचना का अधिकार संसदीय विशेषाधिकार की दलील को सिरे से खारिज करता है. संसदीय विशेषाधिकार को उन मामलों तक सीमित रखना चाहिए जहां विधायी कार्य को संरक्षित करना आवश्यक है.’
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई सूचना चार सप्ताह के भीतर उसे दे दी जाए और यदि संसद के रिकॉर्ड को नष्ट करने के नियम के तहत सूचना को पहले ही खत्म किया जा चुका है तो उपयुक्त अधिकारी इस संबंध में अदालत में शपथ-पत्र दायर करें.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)