साक्षात्कार: आईआईटी प्रवेश की तैयारी के लिए चर्चित ‘सुपर 30’ कोचिंग के संस्थापक आनंद कुमार की ज़िंदगी पर आधारित फिल्म इस हफ्ते रिलीज़ हुई है. उनसे रीतू तोमर की बातचीत.
आपने वर्ष 1992 में रामानुजन स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स की शुरुआत की, जिसके जरिये बच्चों को कोचिंग देना शुरू किया तो ऐसे में 2002 में ‘सुपर 30’ कोचिंग की शुरुआत करने का विचार कैसे आया?
रामानुजन स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स 1992 में जब शुरू हुआ तो वह एक प्लेटफॉर्म की शुरुआत की थी, यह कोचिंग इंस्टिट्यूट नहीं था. यहां बच्चों से विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होती थी. हम मिलकर रामानुजम जयंती मनाते थे, उस समय मैं खुद भी एक छात्र था. आर्थिक दिक्कतों की वजह से 1994 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय नहीं जा पाया था तो घर का खर्चा निकालने के लिए पापड़ बेचता था.
हमने 1997 में रामानुजम को दोबारा शुरू किया, नि:शुल्क शिक्षा शुरू की, जब धीरे-धीरे बच्चे उससे जुड़ने लगे तो हमने छात्रों के लिए एक साल 500 रुपये फीस रखी. उस समय एक वाकया यह हुआ कि एक छात्र ने कहा कि वह फीस नहीं भर सकता है, क्योंकि उसके घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं है. तब हमारे दिमाग में इस तरह के जरूरतमंद बच्चों के लिए नि:शुल्क में शिक्षा का विचार आया और इस तरह ‘सुपर 30’ की शुरुआत हुई.
आपने हमेशा कहा है कि आज तक किसी से एक रुपया भी चंदे में नहीं लिया तो ऐसे में 30 बच्चों की शिक्षा, खाने और रहने का खर्च किस तरह से उठाते हैं?
यह बात सौ फीसदी सच है कि मैंने आज तक एक रुपया भी चंदे में नहीं लिया. बिहार सरकार और कई उद्योगपतियों ने आर्थिक मदद करने की बात कही थी लेकिन हमने मना कर दिया. दरअसल, रामानुजम इंस्टिट्यूट से हम जो भी पैसे कमाते हैं, उसी से हमारे 30 बच्चों के खाने-पीने से लेकर हमारे परिवार और हमारे कुछ नॉन टीचिंग स्टाफ का खर्च चलता है.
इतनी उपलब्धियों के बावजूद आनंद कुमार और ‘सुपर 30’ पर आरोप क्यों लगते हैं?
मैं आरोपों से घबराता नहीं हूं. जीवन में सुख-दुख, बदनामी-प्रसिद्धि सब साथ चलती है. जब 2008 में टाइम्स मैगजीन ने बेस्ट इनोवेटिव स्कूल की सूची में ‘सुपर 30’ को रखा तभी से लोगों के कान खड़े हो गए थे. कई बार मुझे नीचे दिखाने का प्रयास किया गया. हम पर कई कातिलाना हमले भी हुए, हम पर गोलियां चलीं.
मेरा एक नॉन टीचिंग वालेंटियर स्टाफ था, उस पर चाकू से हमला हुआ. पटना मेडिकल कॉलेज में तीन महीने रहा, तब जाकर उसकी जान बची. मुझे सुरक्षा के नाम पर दो बॉडीगार्ड दिए गए.
अभी कुछ दिन पहले हमारे भाई को ट्रक से कुचलने का प्रयास किया गया. हमने किसी का क्या बिगाड़ा है, आज तक किसी से एक रुपये चंदा किसी से नहीं लिया. बच्चों को पढ़ाया… बिहार और देश का नाम बढ़ाया.
जो बच्चे जो पैसे की दिक्कतों की वजह से पढ़ नहीं पा रहे थे, उन्हें शिक्षा दी, उनका भविष्य संवारा, आज वहीं छात्र जापान और इंग्लैंड में काम कर रहे हैं. हमें समझ नहीं आता कि ये आरोप आखिर लग क्यों रहे हैं.
हमारे एक वालेंटियर को पिछले साल पर आईटी की धारा 66ए के तहत जेल में डाल दिया गया क्योंकि उसने फेसबुक पर लिख दिया था. सभी को पता होना चाहिए कि धारा 66ए निरस्त कर दी गई है. हम रात में ठीक से सो नहीं पाते थे, उस बच्चे के माता-पिता आकर मुझे कहते थे कि आपकी वजह से हमारा बेटा जेल चला गया.
हमने खूब चक्कर लगाए, डीजीपी से मुलाकात की, उनसे अनुरोध किया, जिसके बाद डीजीपी ने जांच के आदेश दिया. जांच में पूरा मामला फर्जी निकला, तो देखिए किस तरह हम पर फर्जी केस किया जा रहा है, हम पर गोलियां चल रही हैं क्योंकि कुछ लोग हैं, जो चाहते हैं कि ये गरीब की आवाज उठा रहा है, इसकी आवाज को कुचल दो.
ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर वे कौन लोग हैं, जो चाहते हैं कि आनंद कुमार की कहानी बड़े पर्दे पर न आए?
कुछ कोचिंग संस्थान के माफिया, नौकरशाह और कुछ नेता हैं, लेकिन यह बहुत ही छोटा समूह है. बिहार के लोग मुझसे बहुत खुश हैं, मुझे प्रोत्साहित करते हैं. आप ये देखिए कि इतनी नकारात्मक चीजों के बीच भी आनंद कुमार जिंदा है. मैं उन लोगों की वजह से जिंदा हूं, जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में मेरा साथ नहीं छोड़ा. मेरी हौसलाआफजाई की.
आपने जिन कोचिंग माफिया की बात की क्या ‘सुपर 30’ पर बनी आपकी बायोपिक में आपने इसे विस्तार से बताया है.
हमने फिल्म में माफिया गैंग की पोल खोली है. हमने दिखाया है कि किस तरह एक आदमी जो अपने भाई के दम पर दुनिया में संघर्ष करता है, उन 30 बच्चों के सहारे एक सपना देखता है. अपने अधूरे सपनों में रंग भरना चाहता है कि किसी की मदद नहीं लेता, फिर भी उस पर और उसके भाई पर जानलेवा हमले किए जाते हैं. कौन लोग हैं, वे जो ये सब कर रहे हैं. उनका मकसद क्या है. इन सभी बातों का जवाब देगी ‘सुपर 30’ फिल्म.
‘सुपर 30’ में हर साल किस तरह आप बच्चों को चुनते हैं. किस तरह की प्रक्रिया के जरिये बच्चों का चुनाव होता है?
शुरुआती दौर में तो हमारा भाई इसके लिए पर्चा बांटता था, लेकिन धीरे-धीरे जैसे-जैसे लोकप्रियता बढ़ी. अखबारों के जरिये इश्तहार देने लगे, फिर वेबसाइट का जमाना आया तो इसके लिए चुनाव प्रणाली आसान हो गई. जरूरतमंद बच्चों के एंट्रेंस एग्जाम के जरिये उनका चुनाव किया जाता है.
आप पर धोखाधड़ी का आरोप भी लगता रहा है कि आप झूठी लिस्ट जारी करते हैं, आप रामानुजम में पढ़ रहे बच्चों को ‘सुपर 30’ का बताकर उनके आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में पास होने का ऐलान करते हैं और इन्हीं आरोपों को लेकर गुवाहाटी के चार छात्रों ने आपके खिलाफ अदालत में पीआईएल दायर किया है.
मुझे बहुत दुख होता है, जब भी मैं इन छात्रों के बारे में सोचता हूं. इन चारों बच्चों को गुमराह किया गया. ये छात्र आज तक हमसे कभी नहीं पढ़े, मैं इनसे कभी मिला भी नहीं और न ही इन्होंने कभी ‘सुपर 30’ के लिए कभी किसी तरह का एंट्रेस एग्जाम दिया. हमने असम सरकार से भी आज तक कभी कोई चंदा नहीं लिया.
हम हर साल आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास करने वाले बच्चों की लिस्ट जारी करते हैं. इन विवादों की वजह से पिछले कुछ साल से मैं सभी 30 बच्चों की लिस्ट परीक्षा से पहले से जारी कर देता हूं लेकिन स्थानीय मीडिया, अखबार और वेबसाइटों के जरिये मेरे खिलाफ भ्रम फैलाया जा रहा है कि ये चारों बच्चे ‘सुपर 30’ से जुड़े हुए हैं जबकि ऐसा नहीं है.
इन छात्रों का ‘सुपर 30’ और मुझसे दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है. दरअसल, जब कोई संस्थान या व्यक्ति जीवन में आगे बढ़ता है तो जिन लोगों की समाज में अपनी कोई पहचान नहीं है, जिन्हें सफलता नहीं मिली है, वे इन सब हथकंड़ों से सस्ती लोकप्रियता चाहते हैं.
‘सुपर 30’ के लिए सूची जारी नहीं करने के आरोप पर आप क्या कहेंगे?
हमारे बच्चे प्रमाण हैं कि हम झूठ नहीं बोल रहे हैं. इतने सालों में हमसे सैकड़ों बच्चे जुड़े हुए हैं, जिन्होंने अखबार और अनेक दूसरे माध्यमों से तमाम सच्चाइयां बयान की है. इसलिए इन आरोपों से न तो मैं घबराता हूं और न डरता हूं.
यह फिल्म एक सकारात्मक संदेश देगी, यह आनंद कुमार की कहानी नहीं है, यह देश के उन शिक्षकों की कहानी है, जो दिखाएगी कि अगर कोई टीचर गांव के किसी छोटे से स्कूल में भी पढ़ा रहा है तो उसका संघर्ष उसे कामयाबी तक लेकर जाएगा.
यह फिल्म शिक्षकों को प्रोत्साहित करेगी. इस फिल्म के बाद हर माता-पिता चाहेंगे कि उनका बच्चा बड़ा होकर एक शिक्षक बने. यह फिल्म गरीब बच्चों में एक उम्मीद की लौ जलाएगी कि वह कुछ अच्छा करे.
वहीं, अमीर बच्चों को और भी बेहतर करने की प्रेरणा मिलेगी कि हमें और अच्छा करना चाहिए. फिल्म सकारात्मक संदेश देगी. कुछ लोगों को डर था कि इस फिल्म के बाद कहीं आनंद कुमार बहुत बड़ा हीरो न बन जाए लेकिन हमारे पिता जी कहते थे कि बेटा तेरे जीवन में कभी समस्या आए तो डरना नहीं, जितना बड़ा विलेन जीवन में आएगा तू उतना बड़ा हीरो बनेगा.
लोगों को डर है कि कहीं मैं राजनीति में नहीं चला जाऊं, लेकिन मैं साफ कर देना चाहता हूं कि मेरी राजनीति में जाने की कोई इच्छा नहीं है. मैं अपने शिक्षण संस्थान को और आगे बढ़ाना चाहता हूं.
‘सुपर 30’ पर बनी बायोपिक के लिए कास्टिंग और प्रोडक्शन में आपका सहयोग रहा है. क्या इस बायोपिक का आइडिया आपका ही था?
बायोपिक का आइडिया मेरा नहीं था. दरअसल साढ़े आठ साल पहले संजीव दत्ता मेरे पास आए थे, संजीव इस फिल्म के स्क्रिप्ट राइटर भी हैं. उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि इस पर एक फिल्म बनें.
मैंने शुरुआत में ज्यादा इच्छा नहीं जताई लेकिन बाद में जब वे अनुराग बसु को लेकर आए, तब हमें लगा कि फिल्म बननी चाहिए लेकिन अनुराग बसु ने इस फिल्म को ठंडे बस्ते में डाल दिया.
आज से ढाई साल पहले संजीव दत्ता दोबारा आए, उन्होंने कहा कि अब सही वक्त आ गया है, फिल्म बननी चाहिए. इस बीच मधु मेंटेना से हमारी मुलाकात हुई, हमने विकास बहल को बतौर डायरेक्टर चुन लिया. पूरी टीम ने मिलकर सहमति जताई कि आनंद कुमार के किरदार के लिए ऋतिक रोशन सही रहेंगे.
फिल्म की स्क्रिप्ट 13 बार बदलवाने की भी खबरें हैं, इसमें कितनी सच्चाई है?
हां, यह सच है लेकिन इसका कारण यह था कि हम नहीं चाहते थे कि कल को झूठी बातें निकलकर सामने आएं. फिल्म में हमने कुछ लिबर्टी ली है. मैं नहीं चाहता था कि फिल्म में कुछ ऐसा दिखाया जाए जो वास्तव में हुआ ही नहीं हो.
यह पूरी तरह से बायोपिक है. जितने लोगों पर बायोपिक बनी है, उनका फिल्म में कभी इतना हस्तक्षेप नहीं रहा, लेकिन यहां मुझे पूरी तरह से फिल्म में इनवॉल्व रखा गया. ऋतिक ने कई बार मुझसे मुलाकात की. मेरे बोलने के तरीके, हाव-भाव को समझा. मैं जिस तरह से बोलता हूं, उसका 150 घंटे का वीडियो बनवाया. इसके लिए ट्रेनर भी रखा.
हमारे देश में विशेष रूप से बिहार में जिस तरह शिक्षा की स्थिति है. उस पर आप क्या कहेंगे?
पूरे देश में शिक्षा की स्थिति बहुत खराब है. सरकारी स्कूलों में हालत बेहद दयनीय है. मेट्रो शहरों और छोटे शहरों में बड़े आलीशान स्कूल हैं, लेकिन ऐसे कई पिछड़े गांव हैं, जहां बिजली और कंप्यूटर नहीं है.
पूरे देश में ऑनलाइन टेस्ट हो रहा है. आईआईटी ने ऑनलाइन एंट्रेस टेस्ट अनिवार्य कर दिया है, इससे गांव-देहात के बच्चों को परेशानी हो रही है. जब तक समान अवसर नहीं दिए जाएंगे तब तक देश में विकास की उम्मीद नहीं की जा सकती.
हालांकि, सरकार धीरे-धीरे प्रयास कर रही है. हम एचआरडी मंत्रालय से गुजारिश करते हैं कि आईआईटी एंट्रेस एग्जाम को तुरंत ऑनलाइन नहीं करें. ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों रखे. जब पूरी तरह से कंप्यूटर जागरूकता फैले, तब बेशक इसे पूरी तरह से ऑनलाइन कर दिया जाए.
आपका एडमिशन कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में हुआ था लेकिन आप नहीं जा पाए. आज क्या लगता है, अगर कैम्ब्रिज गए होते तो जिंदगी कुछ अलग होती?
अगर कैम्ब्रिज गए होते तो अच्छा होता लेकिन उससे अच्छा ये हो गया. मेरे पिता कहते थे कि बेटा तुम जिस भी परिस्थिति में हो, उस परिस्थिति में तुम सबसे बढ़िया क्या कर सकते हों, वही करो. खराब परिस्थित में भी अच्छा करो. खराब परिस्थिति भी अच्छे के लिए आती है.
अगर कैम्ब्रिज चले जाते तो लोगों का इतना प्यार नहीं मिलता, इतने छात्रों को प्रोत्साहित नहीं कर पाते. देश में लाखों ऐसे बच्चे हैं, जो हमसे और हमारे बच्चों से प्रेरणा लेकर मेहनत करते हैं और कर रहे हैं. फिल्म के बाद इनकी संख्या बढ़ेगी. अगर कैम्ब्रिज जाता तो शायद इतने बड़े पैमाने पर बदलाव लाने का मुझे मौका नहीं मिलता.
फिल्म में एक संवाद है कि अब राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा, अब वहीं राजा बनेगा जो हकदार होगा. आपको क्या लगता है कि हमारे देश में मौजूदा समय में अमीर और गरीब के बीच की जो खाई है, वह लगातार बढ़ रही है.
हमारे देश में आज तक गरीब का इतिहास बनने नहीं दिया गया. इतिहास उन्हीं का बना, जो सक्षम थे, जो ताकतवर थे. कभी भी गरीब और दबे-कुचलों के संघर्ष को नहीं दिखाया गया. गरीब लोगों को इतिहास बहुत छोटा होता है. देश में अमीर-गरीब की खाई, शिक्षा व्यवस्था की खाई बहुत गहरी है, जिसे पाटने की जरूरत है.
‘सुपर 30’ को लेकर किस तरह की योजनाएं हैं?
हम इसका विस्तार करेंगे. एक स्कूल खोलने की योजना है, जिसमें छठी कक्षा से बच्चों को दाखिला दिया जाएगा. फिल्म के ऐलान के बाद लोगों की ‘सुपर 30’ से भी उम्मीदें बढ़ी हैं. मेहनत करेंगे कि लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरें.
आप शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण को किस तरह से देखते हैं?
इस पर सबकी राय अलग हो सकती है. बहुत लोग कहते हैं कि आनंद कुमार सिर्फ दलित के बच्चों को पढ़ाता है, जो बिल्कुल गलत है. मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि हमारे यहां जाति और धर्म के नाम पर आरक्षण नहीं है. यहां उन्हीं बच्चों को चुना जाता है, जो जरूरतमंद हो और जिनमें पढ़ने की ललक हो. उनके धर्म या जाति से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता.