माओवादी होने के संदेह के आधार पर व्यक्ति को प्रताड़ित नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को बरकार रखते हुए केरल सरकार की अपील खारिज कर दी, जिसमें एक व्यक्ति को माओवादी होने के संदेह में अवैध रूप से हिरासत में रखने के कारण एक लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया गया था.

(फोटो साभार: swarajyamag.com)

हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को बरकार रखते हुए केरल सरकार की अपील खारिज कर दी, जिसमें एक व्यक्ति को माओवादी होने के संदेह में अवैध रूप से हिरासत में रखने के कारण एक लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया गया था.

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कोच्चि: केरल हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने बीते सोमवार को केरल सरकार द्वारा एकल पीठ के साल 2015 के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया, जिसमें एक व्यक्ति को माओवादी होने के संदेह में अवैध रूप से हिरासत में रखने के कारण एक लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया गया था.

केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति को सरकार द्वारा केवल इस संदेह के आधार पर प्रताड़ित नहीं किया जा सकता कि उसने माओवादी विचारधारा अपना ली है.

मुख्य न्यायाधीश हृषिकेश रॉय और जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार की एक खंडपीठ ने यह बात सोमवार को एक व्यक्ति को एक लाख रुपये मुआवजा प्रदान करने के केरल हाईकोर्ट की एकल पीठ के आदेश को बरकरार रखते हुए कही.

लाइव लॉ के मुताबिक श्याम बालकृष्णन नाम के एक लेखक/शोधार्थी को केरल पुलिस की एक विशेष इकाई ने 2014 में माओवादी होने के संदेह के आधार पर अवैध रूप से हिरासत में रखा था.

बालकृष्ण केरल के वायनाड जिले में अपनी पत्नी के साथ रहते हैं. 20 मई 2014 को जब वो अपने बाइक से जा रहे थे, तभी सादे कपड़े में दो पुलिसकर्मियों ने उन्हें रोका और बाइक की चाभी निकाल ली. पुलिसवाले बालकृष्णन को पुलिस स्टेशन ले गए, जहां उन्होंने कपड़े उतारकर उनकी तलाशी ली.

पुलिस ने कहा कि वे माओवादियों को पकड़ रहे हैं. बाद में, माओवादियों से सामना करने के लिए केरल पुलिस द्वारा ‘थंडर बोल्ट’ नाम से बनाई गई एक स्पेशल फोर्स ने बालकृष्णन के घर की तलाशी ली और किताब तथा लैपटॉप जब्त किया.

सुप्रीम कोर्ट ने डीके बसु मामले में आपराधिक प्रक्रिया संहिता और गिरफ्तारी के दिशानिर्देशों के तहत कुछ जरूरी प्रक्रियाओं का पालन करने का आदेश दिया था, लेकिन पुलिस ने इस मामले में इन सभी चीजों का उल्लंघन करते हुए ये कठोर कदम उठाया.

हाईकोर्ट ने एकल पीठ के श्याम बालाकृष्णन को एक लाख रुपये का भुगतान करने के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की अपील खारिज करते हुए कहा, ‘हमारे संविधान की प्रस्तावना घोषणा करती है कि भारत के लोगों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और उपासना का स्वतंत्रता का अधिकार है.’

श्याम बालाकृष्णन के पिता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश हैं.

कोर्ट ने कहा, ‘कोई विशेष राजनीतिक विचारधारा रखने की किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उसके मौलिक अधिकार का एक पहलू है, जिसमें उसे अपनी पसंद की विचारधारा चुनने की स्वतंत्रता है.’

पीठ ने कहा, ‘केवल इस संदेह पर कि व्यक्ति ने माओवादी विचारधारा अपना ली है, उसे सरकार द्वारा प्रताड़ित नहीं किया जा सकता.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)