बिहार के रोहतास जिले के देवमुनि सिंह यादव के तीन बच्चे समय पर इलाज न मिलने के कारण लकवे का शिकार हो गए हैं. राज्य सरकार उनके बच्चों के इलाज की व्यवस्था कर पाने में असफल रही है, इसलिए उन्होंने अपने परिवार के लिए इच्छामृत्यु की मांग की है.
पटना: बिहार के रोहतास जिले में स्थित सासाराम के एक गरीब परिवार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इच्छामृत्यु की मांग की है. परिवार के तीन बच्चे जन्मजात होने वाली मांसपेशियों की दुर्लभ बीमीरी से पीड़ित हैं, जिसकी वजह से उन्हें लकवा मार गया है. राज्य सरकार उनके बच्चों के इलाज की व्यवस्था कर पाने में असफल रही.
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, देवमुनि सिंह यादव छुलकर गांव के किसान हैं जिनके पास अपनी कोई जमीन नहीं है. उनके तीन बच्चे 14 वर्षीय मंतोष, 11 वर्षीय धंतोष और सात वर्षीय रामतोष हैं.
उन्होंने कहा कि अपने तीन बच्चों का इलाज कराने में उन्होंने अपना सबकुछ गंवा दिया लेकिन उनका इलाज नहीं हो सका क्योंकि इस बीमारी का इलाज बड़े शहर में किसी अच्छे अस्पताल में हो पाएगा और उनके पास इतना संसाधन नहीं है.
यादव ने कहा कि इस संबंध में जिन प्रशासनिक अधिकारियों और नेताओं से मुलाकात की, उन्होंने आश्वासन देने के अलावा कुछ नहीं किया. बच्चों के इलाज के चक्कर में उन्होंने अपनी आधी बीघा उपजाऊ जमीन और चार डेसीमल घर की जमीन बेच दी.
इसके बाद से ही यादव एक झोपड़ी में अपनी पत्नी, बेटी और तीन लकवाग्रस्त बच्चों के साथ रहते हैं. वहां पर उन्हें शौचालय, पानी और एक ठीक-ठाक छत जैसी मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं.
वह कहते हैं, ‘उनके परिवार में कोई भी अब इस शापित जिंदगी को नहीं जीना चाहता है और इसलिए उन्होंने अपनी जिंदगी खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है.’
आज से सात साल पहले 2012 तक यादव के परिवार की जिंदगी खुशहाल थी लेकिन उसी साल उनके आठ साल के बड़े बेटे मंतोष के हाथ और पैर में असामान्य बदलाव होने लगे.
यादव कहते हैं, ‘वे पतले और कमज़ोर होने लगे जिसके बाद अंततः उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया. शुरू में, मैंने सासाराम में डेहरी में एक फिजियोथेरेपिस्ट के अलावा स्थानीय चिकित्सकों और डॉक्टरों से संपर्क किया, लेकिन उनके शरीर में हो रहा बदलाव नहीं रुका.’
वाराणसी के बीएचयू में मंतोष के इलाज के दौरान ही छह महीने बाद उनके दूसरे बेटे धंतोष में शरीर में भी वहीं बदलाव दिखाई देने लगे और उसके हाथों-पैरों ने भी काम करना बंद कर दिया. इसके बाद साल 2017 में उनके तीसरे बेटे रामतोष भी उसी का शिकार हो गया.
इसके बाद बैंक का एक लाख का लोन चुकाने के लिए उन्हें अपनी पूरी जमीन, गहने आदि बेचने पड़े. इसके बाद यादव ने बहुत अधिक ब्याज पर गांव वालों से चार लाख रुपये का लोन लिया.
यादव को न तो बीपीएल की सूचि में शामिल किया गया और न ही आयुष्मान भारत योजना में. इसकी वजह से वे आयुष्मान भारत और पीएम आवास योजना जैसी अन्य कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने से वंचित रह गए हैं.
उन्होंने कहा, ‘उनकी सबसे बड़ी समस्या शौचालय का न होना है. हम शौचालय बनाने के लिए पैसे नहीं जुटा पाए. मैं, मेरी पत्नी अनीता और 16 साल की बेटी मधु तीनों विकलांग बच्चों को कंधों पर उठाकर एक दिन में कम से कम दो बार पास के खेत में लेकर जाते हैं. सुबह और शाम दोनों समय हम उनके शरीर को साफ करते हैं.’
यादव कहते हैं, ‘पत्रकारों द्वारा मामले को प्रशासन के सामने उठाने के बाद से उनके दोनों बड़े बेटों को पिछले साल से 400 रुपये का विकलांग पेंशन और खाद्य सुरक्षा योजना के तहत परिवार के हर सदस्य को पांच किलो का राशन मिलता है. लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है.’