विधानसभा अध्यक्ष ने कांग्रेस-जेडीएस सरकार के राज्यपाल द्वारा विश्वास मत पर मतदान कराने के लिए तय की गई दो समय सीमाओं को पूरा ना कर पाने पर सदन को सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया है.
बेंगलुरु/नई दिल्ली: कर्नाटक में गठबंधन सरकार को लेकर संकट और गहरा गया है. मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी ने बहुमत साबित करने के लिये राज्यपाल द्वारा दी गई समयसीमा की शुक्रवार को दो बार अनदेखी की. वहीं विश्वास प्रस्ताव पर मतदान के बिना ही कनार्टक विधानसभा सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी गयी.
विधानसभा अध्यक्ष केआर रमेश कुमार ने कांग्रेस-जेडीएस सरकार के राज्यपाल वजूभाई वाला द्वारा तय की गई दो समय सीमाओं को पूरा ना कर पाने पर सदन को सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया. अब सभी निगाहें राज्यपाल वजूभाई वाला के अगले कदम पर हैं.
सदन को स्थगित करने से पहले अध्यक्ष ने यह स्पष्ट कर दिया कि सोमवार को विश्वास प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा और इसे अन्य किसी भी परिस्थिति में आगे नहीं बढ़ाया जाएगा. इस पर सरकार सहमत हो गई.
कुमारस्वामी और कांग्रेस ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर कहा कि राज्यपाल सदन की कार्यवाही में हस्तक्षेप कर रहे हैं, जब सदन में विश्वास मत पर चर्चा हो रही है.
मुख्यमंत्री ने न्यायालय से उसके 17 जुलाई के आदेश पर स्पष्टीकरण देने का अनुरोध किया है, जिसमें कहा गया था कि 15 बागी विधायकों को सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता है.
कुमारस्वामी ने भी शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर कहा है कि राज्यपाल वजूभाई वाला विधानसभा को निर्देशित नहीं कर सकते कि विश्वास मत प्रस्ताव किस तरह लिया जाये.
राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को भेजे दूसरे संदेश में कहा कि सत्तारूढ़ जनता दल (एस)-कांग्रेस गठबंधन ‘प्रथम दृष्टया’ सदन का विश्वास खो चुका है.
राज्यपाल ने कुमारस्वामी को दूसरे पत्र में कहा, ‘जब विधायकों की खरीद-फरोख्त के व्यापक स्तर पर आरोप लग रहे हैं और मुझे इसकी कई शिकायतें मिल रही हैं, यह संवैधानिक रूप से अनिवार्य है कि विश्वास मत बिना किसी विलंब के आज ही पूरा हो.’
उन्होंने कहा, ‘मैं, इसलिये कह रहा हूं कि अपना बहुमत साबित करें और विश्वास मत की प्रक्रिया को पूरा कर आज ही इसे संपन्न करें.’
राज्यपाल ने विधायकों की खरीद-फरोख्त के व्यापक आरोपों का जिक्र करते हुए कहा कि यह संवैधानिक रूप से अनिवार्य है कि विश्वास मत प्रक्रिया बिना किसी विलंब के शुक्रवार को ही पूरी हो.
विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान, कुमारस्वामी ने कहा, ‘मुझे राज्यपाल से ‘दूसरा प्रेम-पत्र’ मिला है. उन्हें अब ‘ज्ञानोदय’ (जागरुकता) हुआ है. राज्यपाल ने अब पत्र में खरीद-फरोख्त का जिक्र किया है…क्या अब तक उन्हें इसका पता नहीं था.’
‘आइये राजनीति करते हैं…हम भी यहां हैं…हम डरेंगे नहीं और न ही भागेंगे. राज्यपाल तब खरीद-फरोख्त क्यों नहीं देख सके जब विधायक इस्तीफा दे रहे थे.’
राज्यपाल वाला द्वारा गुरुवार को विश्वास मत की समयसीमा (दोपहर डेढ़ बजे) बीत जाने के कुछ ही देर बाद उन्होंने मुख्यमंत्री से विश्वास मत पूरा करने को कहते हुए एक और समयसीमा दे दी.
सदन में इस बात को लेकर भी तीखी बहस देखने को मिली कि विश्वास मत कब पूरा किया जाना चाहिए. विधानसभा अध्यक्ष ने कहा, ‘काफी चर्चा हो चुकी है. मैं इसे (विश्वास मत प्रक्रिया) को आज खत्म करना चाहता हूं.’
कुमारस्वामी ने कहा, ‘मैंने शुरुआती प्रतिवेदन में बता दिया है, हम इसे (प्रक्रिया को) सोमवार तक पूरा कर सकते हैं.’
भाजपा नेता सुरेश कुमार ने कहा कि विश्वास मत को अगर खींचा गया तो इसकी शूचिता खत्म हो जाएगी और जोर देकर कहा कि इस प्रक्रिया को शुक्रवार को ही पूरा किया जाए. वहीं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बी एस येदियुरप्पा ने कहा कि वह आधी रात तक इंतजार करने के इच्छुक हैं.
सत्ताधारी गठबंधन हालांकि किसी हड़बड़ी में नहीं दिखा और कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्धरमैया ने इससे पहले दिन में कहा कि प्रस्ताव पर चर्चा सोमवार तक चल सकती है जिसके बाद मतदान होगा क्योंकि कई विधायकों ने इस चर्चा में भाग लेने के लिए अपने नाम दिये हैं.
इससे पहले समय सीमा के करीब आने पर सत्तारूढ़ गठबंधन ने ऐसा निर्देश जारी करने को लेकर राज्यपाल की शक्ति पर सवाल उठाया. कुमारस्वामी ने उच्चतम न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि राज्यपाल विधानमंडल के लोकपाल के रूप में कार्य नहीं कर सकते.
कुमारस्वामी ने कहा कि वह राज्यपाल की आलोचना नहीं करेंगे और उन्होंने अध्यक्ष केआर रमेश कुमार से यह तय करने का अनुरोध किया कि क्या राज्यपाल इसके लिए समय सीमा तय कर सकते हैं या नहीं.
मुख्यमंत्री ने भाजपा पर दलबदल विरोधी कानून को दरकिनार करने के तरीकों का सहारा लेने का भी आरोप लगाया. राज्य की विपक्षी पार्टी पर निशाना साधते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि विधायकों को लुभाने के लिए 40-50 करोड़ रुपये की पेशकश की गई और इसके साथ ही उन्होंने यह भी पूछा कि यह पैसा किसका है.
भाजपा सदस्यों ने हालांकि इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी ताकि किसी तरह का गतिरोध न पैदा हो. इसी बीच, जदएस विधायक श्रीनिवास गौड़ ने आरोप लगाया कि सरकार को गिराने के लिए उन्हें भाजपा ने पांच करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की थी.
मुख्यमंत्री ने भाजपा पर दलबदल विरोधी कानून को दरकिनार करने के तरीकों का सहारा लेने का भी आरोप लगाया. कुमारस्वामी ने भाजपा से कहा, ‘जिस दिन से मैं सत्ता में आया हूं, मुझे पता है कि यह लंबे समय तक नहीं रहेगा … आप कब तक सत्ता में बैठेंगे, मैं भी यहां देखूंगा कि … आपकी सरकार उन लोगों के साथ कितनी स्थिर होगी जो अभी आपकी मदद कर रहे हैं.’
उन्होंने भाजपा से यह भी पूछा कि अगर वह अपनी संख्या को लेकर इतने ही आश्चस्त हैं तो एक दिन में ही विश्वास मत पर बहस को खत्म करने की जल्दी में क्यों है. जैसे ही घड़ी में दिन के डेढ़ बजे भाजपा ने कुमारस्वामी द्वारा पेश विश्वास प्रस्ताव पर मत विभाजन कराने पर जोर दिया.
सत्ताधारी गठबंधन के 16 विधायकों- 13 कांग्रेस और तीन जेडीएस- के इस्तीफा देने और दो निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापस लेने से प्रदेश सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. एक कांग्रेसी विधायक रामलिंगा रेड्डी ने हालांकि पलटी मारते हुए कहा कि वह सरकार का समर्थन देंगे.