भाजपा सांसद सत्यपाल सिंह ने कहा, हमारी भारतीय संस्कृति यह मानती है कि हम ऋषियों की संतानें हैं. जो लोग यह कहते हैं कि वे बंदरों की औलाद हैं, मैं ऐसे लोगों की भावनाओं को भी ठेस नहीं पहुंचाना चाहता हूं.
नई दिल्ली: भाजपा सांसद सत्यपाल सिंह ने शुक्रवार को एक बार फिर मानव के क्रमिक विकास का चार्ल्स डार्विन का सिद्धांत पर सवाल खड़ा किया और कहा कि हम ऋषियों की संतानें हैं, वानरों की नहीं.
बागपत से लोकसभा सदस्य सिंह ने लोकसभा में मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 पर चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि हम ऐसा मानते हैं कि हम ऋषियों की संतानें हैं.
उन्होंने कहा, ‘हमारी भारतीय संस्कृति यह मानती है कि हम ऋषियों की संतानें हैं. जो लोग यह कहते हैं कि वे बंदरों की औलाद हैं, मैं ऐसे लोगों की भावनाओं को भी ठेस नहीं पहुंचाना चाहता हूं.’ इस पर विपक्षी सदस्यों ने विरोध दर्ज कराया.
इस पर तृणमूल कांग्रेस की सदस्य महुआ मोइत्रा ने कहा, ‘ऐसा कहना उत्पत्ति के सिद्धांत के खिलाफ है.’
सिंह के बयान के बाद चर्चा में भाग लेते हुए डीएमके सांसद कनिमोझी ने कहा, ‘दुर्भाग्य से मेरे पूर्वज ऋषी नहीं हैं. मेरे पूर्वज होमो सैपियंस हैं जैसा कि वैज्ञानिक कहते हैं और मेरे माता-पिता शूद्र हैं. वे किसी भगवान से भी नहीं जन्मे थे.’
ये तीसरा मौका है जब सत्पाल सिंह ने इस तरह की टिप्पणी की है. मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री रहे सत्यपाल सिंह ने पहले भी ‘डार्विन के सिद्धांत’ को खारिज करते हुए कहा था कि यह वैज्ञानिक रूप से गलत है. उन्होंने कहा था कि वह खुद को वानर की संतान नहीं मानते.
एक पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में सिंह ने कहा था, ‘मैं विज्ञान का छात्र हूं और मैंने रसायन शास्त्र में पीएचडी की है. मेरे खिलाफ बोलने वाले लोग कौन थे? और कितने लोगों ने मेरा साथ दिया? हमें इस पर मंथन करना चाहिए. हम प्रेस से डर जाते हैं. आज नहीं तो कल. कल नहीं तो 10-20 साल में, लोग मेरी कही गई बातें स्वीकार करेंगे. कम से कम मेरा मानना है कि मेरे पूर्वज कपि (बंदर) नहीं थे.’
साल 2018 के जनवरी महीने में इस तरीके की टिप्पणी करते हुए सत्यपाल सिंह ने कहा था कि इंसान जब से पृथ्वी पर देखा गया है, हमेशा इंसान ही रहा है. उन्होंने कहा था कि हमारे किसी भी पूर्वज ने लिखित या मौखिक रूप में कपि (वानर) को इंसान में बदलने का ज़िक्र नहीं किया था.
डार्विनवाद जैविक विकास से संबंधित सिद्धांत है. उन्नीसवीं सदी के अंग्रेज़ प्रकृतिवादी डार्विन और अन्य ने यह सिद्धांत दिया था. इसे ‘थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन’ के नाम से जाना जाता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)