प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने कहा कि इस कानून को लोकसभा में लम्बी बहस और विचार विमर्श के बाद पास किया गया था और मौजूदा सरकार का नया बदलाव सूचना के अधिकार को बेहद कमजोर करने वाला है.
जयपुर: प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने बीते सोमवार को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि वह सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून में संशोधन कर उसे कमजोर करने का प्रयास कर रही है. उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार का यह कदम बहुत ही अलोकतांत्रिक है.
जयपुर में एक संवाददाता सम्मेलन में रॉय ने कहा कि जिस कानून पर संसद की स्थायी समिति में बहुत गहन और बारीकी से विचार-विमर्श हुआ था और माना गया कि सूचना आयुक्तों का भी देश के मुख्य चुनाव आयुक्त के बराबर दर्जा होना चाहिए, लेकिन एनडीए सरकार ना केवल केंद्रीय सूचना आयोग के आयुक्तों के वेतन-भत्ते और सेवा शर्तें अपने पास रखने चाहती है बल्कि विभिन्न राज्यों के सूचना आयुक्तों के कार्यकाल, वेतन-भत्ते और सेवा शर्तें भी अपने पास रखना चाहती है जिसमें स्पष्ट तौर पर खोट नजर आता है.
उन्होंने कहा कि यह कानून लोकसभा में लम्बी बहस व विचार विमर्श के बाद पास हुआ था और मौजूदा सरकार का नया बदलाव सूचना के अधिकार को बेहद कमजोर करने वाला है.
राजस्थान के सूचना का अधिकार अभियान के कार्यकर्ताओं ने संशोधन के विरोध में राज्य में कई जगहों पर प्रदर्शन कर प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन दिए.
इसके अनुसार राजस्थान का सूचना का अधिकार अभियान राजग सरकार द्वारा लाए गए संशोधनों को अस्वीकार करता है और मांग करता है कि उन्हें तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाए.
मालूम हो कि बीते सोमवार को विपक्षी और सामाजिक कार्यकर्ताओं के भारी विरोध के बावजूद आरटीआई संशोधन विधेयक लोकसभा में पारित कर दिया गया.
यदि आरटीआई संशोधन विधेयक राज्यसभा से भी पारित हो जाता है तो केंद्रीय सूचना आयुक्त (सीआईसी), सूचना आयुक्तों और राज्य के मुख्य सूचना आयुक्तों के वेतन और कार्यकाल में बदलाव करने की अनुमति केंद्र को मिल जाएगी. फिलहाल आरटीआई कानून के मुताबिक एक सूचना आयुक्त का कार्यकाल पांच साल या 65 साल की उम्र, जो भी पहले पूरा हो, का होता है.
अभी तक मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का वेतन मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त के वेतन के बराबर मिलता है. वहीं राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त का वेतन चुनाव आयुक्त और राज्य सरकार के मुख्य सचिव के वेतन के बराबर मिलता है.
आरटीआई एक्ट के अनुच्छेद 13 और 15 में केंद्रीय सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन, भत्ता और अन्य सुविधाएं निर्धारित करने की व्यवस्था दी गई है. केंद्र की मोदी सरकार इसी में संशोधन करने के लिए बिल लेकर आई है.
आरटीआई की दिशा में काम करने वाले लोग और संगठन इस संशोधन का कड़ा विरोध कर रहे हैं. इसे लेकर नागरिक समाज और पूर्व आयुक्तों ने कड़ी आपत्ति जताई है.
यूपीए अध्यक्ष और कांगेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने भी लोकसभा से पारित हुए आरटीआई संशोधन विधेयक की आलोचना करते हुए कहा कि इस कानून को व्यापक विचार-विमर्श के बाद बनाया गया और संसद ने इसे सर्वसम्मति से पारित किया. अब यह खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है.
गांधी ने एक पत्र लिखकर आरोप लगाया कि सरकार इस संशोधन के माध्यम से आरटीआई कानून को खत्म करना चाहती है जिससे देश का हर नागरिक कमजोर होगा.
इससे पहले पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने सभी सांसदों को लिखे एक खुले पत्र में आरटीआई संशोधन विधेयक को पारित होने से रोकने की अपील की और कहा कि कार्यपालिका विधायिका की शक्ति को छीनने की कोशिश कर रही है.
उन्होंने कहा कि सरकार इसके जरिए आरटीआई के पूरे तंत्र को कार्यपालिका की कठपुतली बनाना चाह रही है.
इसके अलावा केंद्र की मोदी सरकार द्वारा सूचना का अधिकार कानून में संशोधन करने के खिलाफ दिल्ली में बीते सोमवार को लोगों ने प्रदर्शन किया. प्रदर्शन में कई सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, विपक्षी दलों के सांसद और विभिन्न राज्यों से आए लोग शामिल थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)