मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति की बैठक में विपणन वर्ष 2019-20 के लिए गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य को यथावत रखने का फैसला किया गया. यह वह भाव है जो मिल मालिक किसानों को देते हैं.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने बुधवार को गन्ना किसानों के लिए न्यूनतम मूल्य में कोई बढ़ोतरी नहीं करते हुए इसे 275 रुपये प्रति क्विंटल पर बरकरार रखा. अक्टूबर से शुरू अगले विपणन (मार्केटिंग) वर्ष में इसी भाव पर गन्ना बिकेगा. यह वह भाव है जो मिल मालिक किसानों को देते हैं.
मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति (सीसीईए) की बैठक में विपणन वर्ष 2019-20 के लिए गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) को यथावत रखने का फैसला किया गया. यह कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के अनुरूप है. सीएसीपी सांविधिक निकाय है जो प्रमुख कृषि उपज के मूल्य के बारे में सरकार को परामर्श देता है.
सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मंत्रिमंडल के निर्णय के बारे में संवाददाताओं को जानकारी देते हुए कहा, ‘सरकार ने सीएसीपी की गन्ना मूल्य के बारे में सिफारिश को स्वीकार कर लिया है. इस साल भी किसानों को गन्ने का मूल्य 275 रुपये प्रति क्विंटल मिलेगा.’
#CCEA approves determination of ‘Fair and Remunerative Price’ of sugarcane payable by sugar mills for 2019-20 sugar season at Rs. 275/- per quintal for a basic recovery rate of 10%#CabinetDecisions @AgriGoI @nstomar @PrakashJavdekarhttps://t.co/ENSIecrmn3 pic.twitter.com/EMSrpIGlIU
— PIB India (@PIB_India) July 24, 2019
सीसीईए ने जिस एफआरपी मूल्य को मंजूरी दी है, वह चीनी की 10 प्रतिशत मूल प्राप्ति (रिवकरी) और 2.75 रुपये प्रति क्विंटल प्रीमियम से जुड़ा है. यानी प्राप्ति दर में प्रत्येक 0.1 प्रतिशत की वृद्धि पर 2.68 रुपये प्रति क्विंटल का प्रीमियम मिलेगा.
सरकार ने एक अलग बयान में कहा, ‘इस मंजूरी से गन्ना किसानों को गारंटीशुदा भाव मिलना सुनिश्चित होगा. एफआरपी का निर्धारण गन्ना किसानों के हित में है.’ एफआरपी का निर्धारण गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 के तहत निर्धारित किया जाता है. यह न्यूनतम कीमत है जो चीनी मिलों को गन्ना किसानों को देने होते हैं.
इस निर्णय का स्वागत करते हुए इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (आईएसएमए) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा कि यह निर्णय उम्मीद के अनुरूप है. पिछले कुछ साल में एफआरपी में काफी तेजी से वृद्धि हुई है और गन्ने पर रिटर्न ने अन्य फसलों को पीछे छोड़ दिया है.
संगठन ने बयान में कहा, ‘इस निर्णय से अन्य फसलों के बीच संतुलन स्थापित होगा. इससे चीनी मिलों को भी लाभ होगा क्योंकि चीनी उत्पादन में 70 से 75 प्रतिशत लागत केवल गन्ने का है. साथ ही इससे किसानों के बकाया गन्ना भाव को काबू में रखने में मदद मिलेगी.’
ध्यान देने वाली बात ये है कि एक तरफ सरकार ने गन्ने का खरीद मूल्य नहीं बढ़ाया है और वहीं दूसरी तरफ गन्ना किसानों के हजारों करोड़ रुपये मिल मालिकों के पास बकाया हैं.
पिछले महीने ही खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा था कि चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का लगभग 19,000 करोड़ रुपये का बकाया है. इसमें सबसे ज्यादा बकाया उत्तर प्रदेश की मिलों पर है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)