आरटीआई संशोधन विधेयक में प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा काल केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाएंगे.
नई दिल्ली: संसद ने बृहस्पतिवार को सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून में संशोधन संबंधी एक विधेयक को मंजूरी प्रदान कर दी. सरकार ने आरटीआई कानून को कमजोर करने के विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पारदर्शिता, जन भागीदारी और सरलीकरण के लिए प्रतिबद्ध है.
राज्यसभा ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 को चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया. साथ ही सदन ने इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के लिए लाए गए विपक्ष के सदस्यों के प्रस्तावों को 75 के मुकाबले 117 मतों से खारिज कर दिया.
उच्च सदन में इस प्रस्ताव पर मतदान के समय भाजपा के सीएम रमेश को कुछ सदस्यों को मतदान की पर्ची देते हुए देखा गया. कांग्रेस सहित विपक्ष के कई सदस्यों ने इसका कड़ा विरोध किया.
विपक्ष के कई सदस्य इसका विरोध करते हुए आसन के समक्ष आ गए. बाद में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने इस घटना का उल्लेख करते हुए आरोप लगाया कि आज पूरे सदन ने देख लिया कि आपने (सत्तारूढ़ भाजपा) ने चुनाव में 303 सीटें कैसे प्राप्त की थीं?
उन्होंने दावा किया कि सरकार संसद को एक सरकारी विभाग की तरह चलाना चाहती है. उन्होंने इसके विरोध में विपक्षी दलों के सदस्यों के साथ वॉकआउट की घोषणा की. इसके बाद विपक्ष के अधिकतर सदस्य सदन से बर्हिगमन कर गए.
इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा काल केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाएंगे.
विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए कार्मिक एवं प्रशिक्षण राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि आरटीआई कानून बनाने का श्रेय भले ही कांग्रेस अपनी सरकार को दे रही है किंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के शासन काल में सूचना के अधिकार की अवधारणा सामने आई थी.
उन्होंने कहा कि कोई कानून और उसके पीछे की अवधारणा एक सतत प्रक्रिया है जिससे सरकारें समय समय पर जरूरत के अनुरूप संशोधित करती रहती हैं.
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मंत्री ने कहा कि उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि मोदी सरकार के शासन काल में आरटीआई संबंधित कोई पोर्टल जारी किया गया था. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के शासनकाल में एक ऐप जारी किया गया है. इसकी मदद से कोई रात बारह बजे के बाद भी सूचना के अधिकार के लिए आवेदन कर सकता है.
उन्होंने विपक्ष के इस आरोप को आधारहीन बताया कि नरेंद्र मोदी सरकार के शासनकाल में अधिकतर विधेयकों को संसद की स्थायी या प्रवर समिति में भेजे बिना ही पारित किया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि संप्रग के पहले शासनकाल में पारित कुल 180 विधेयकों में से 124 को तथा दूसरे शासनकाल में 179 में 125 को स्थायी या प्रवर समिति में नहीं भेजा गया था.
सिंह ने मोदी सरकार के शासनकाल में केंद्रीय सूचना आयुक्त और अन्य आयुक्तों के पद लंबे समय तक भरे नहीं जाने के विपक्ष के आरोपों पर कहा कि इन पदों को भरने की एक लंबी प्रक्रिया होती है और पूर्व में भी कई बार यह पद लंबे समय तक खाली रहे हैं.
उन्होंने ध्यान दिलाया कि मुख्य सूचना आयुक्त की चयन समिति की तीन बार बैठक इसलिए नहीं हो पायी क्योंकि लोकसभा में तत्कालीन विपक्ष के सबसे बड़े दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे बैठक में नहीं आये.
सिंह ने कहा कि आरटीआई अधिनियम में पहले ही केंद्र को नियम बनाने का अधिकार दिया गया है, आज भी वही व्यवस्था है.
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि आरटीआई अधिनियम की धारा-13 में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की पदावधि और सेवा शर्तों का उपबंध किया गया है.
इसमें कहा गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन, भत्ते और सेवा शर्तें क्रमश: मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के समान होंगी. इसमें यह भी उपबंध किया गया है कि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन क्रमश: निर्वाचन आयुक्त और मुख्य सचिव के समान होगा.
मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के वेतन एवं भत्ते एवं सेवा शर्तें उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समतुल्य हैं.
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वहीं केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग, सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के उपबंधों के अधीन स्थापित कानूनी निकाय है. ऐसे में इनकी सेवा शर्तों को सुव्यवस्थित करने की जरूरत है.
मालूम हो कि केंद्र की मोदी सरकार द्वारा आरटीआई कानून में संशोधन का चौतरफा विरोध किया जा रहा है. आरटीआई कानून में संशोधन को लगातार विरोध किया जा रहा है. राजधानी नई दिल्ली में इस कानून के विरोध में कई प्रदर्शन भी हो चुके हैं.
बीते 23 मई को सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने इस संशोधन पर कहा था मोदी सरकार ने लोगों से धोखा किया है.
82 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता हजारे ने कहा था, ‘भारत को आरटीआई कानून 2005 में मिला था लेकिन आरटीआई कानून में इस संशोधन से सरकार इस देश के लोगों के साथ धोखा कर रही है. मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है लेकिन यदि लोग आरटीआई कानून की शुचिता की रक्षा के लिए सड़कों पर उतरें तो वह उनका साथ देने के लिए तैयार हैं.’
हाल ही में सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने कहा था कि आरटीआई कानून काफी विचार विमर्श के बाद बना था, इसमें संशोधन कर इसे कमजोर किया जा रहा है.
रॉय ने कहा था कि जिस कानून पर संसद की स्थायी समिति में बहुत गहन और बारीकी से विचार-विमर्श हुआ था और माना गया कि सूचना आयुक्तों का भी देश के मुख्य चुनाव आयुक्त के बराबर दर्जा होना चाहिए, लेकिन एनडीए सरकार न केवल केंद्रीय सूचना आयोग के आयुक्तों के वेतन-भत्ते और सेवा शर्तें अपने पास रखने चाहती है, बल्कि विभिन्न राज्यों के सूचना आयुक्तों के कार्यकाल, वेतन-भत्ते और सेवा शर्तें भी अपने पास रखना चाहती है, जिसमें स्पष्ट तौर पर खोट नजर आता है.
यूपीए अध्यक्ष और कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने भी लोकसभा से पारित हुए आरटीआई संशोधन विधेयक की आलोचना करते हुए कहा है कि इस कानून को व्यापक विचार-विमर्श के बाद बनाया गया और संसद ने इसे सर्वसम्मति से पारित किया. अब यह खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है.
गांधी ने एक पत्र लिखकर आरोप लगाया कि सरकार इस संशोधन के माध्यम से आरटीआई कानून को खत्म करना चाहती है जिससे देश का हर नागरिक कमजोर होगा.
इससे पहले पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने सभी सांसदों को लिखे एक खुले पत्र में आरटीआई संशोधन विधेयक को पारित होने से रोकने की अपील की और कहा था कि कार्यपालिका विधायिका की शक्ति को छीनने की कोशिश कर रही है.
उन्होंने कहा था कि सरकार इसके जरिए आरटीआई के पूरे तंत्र को कार्यपालिका की कठपुतली बनाना चाह रही है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)