तीन तलाक़ पर रोक लगाने वाला विधेयक राज्यसभा से भी पास

मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक के प्रावधानों के अनुसार, अगर कोई मुस्लिम पति अपनी पत्नी को मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप से या किसी अन्य विधि से तीन तलाक़ देता है तो यह अवैध होगा. तीन तलाक़ का अपराध सिद्ध होने पर पति को तीन साल तक की जेल का प्रावधान किया गया है.

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New Delhi: A view of Parliament in New Delhi on Sunday, a day ahead of the monsoon session. PTI Photo by Kamal Singh (PTI7_16_2017_000260A)
(फोटो: पीटीआई)

मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक के प्रावधानों के अनुसार, अगर कोई मुस्लिम पति अपनी पत्नी को मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप से या किसी अन्य विधि से तीन तलाक़ देता है तो यह अवैध होगा. तीन तलाक़ का अपराध सिद्ध होने पर पति को तीन साल तक की जेल का प्रावधान किया गया है.

New Delhi: A view of Parliament in New Delhi on Sunday, a day ahead of the monsoon session. PTI Photo by Kamal Singh (PTI7_16_2017_000260A)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: संसद ने मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक देने की प्रथा पर रोक लगाने के प्रावधान वाले एक ऐतिहासिक विधेयक को मंगलवार को मंजूरी दे दी. विधेयक में तीन तलाक का अपराध सिद्ध होने पर संबंधित पति को तीन साल तक की जेल का प्रावधान किया गया है.

मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक को राज्यसभा ने 84 के मुकाबले 99 मतों से पारित कर दिया. लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है.

इससे पहले उच्च सदन ने विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के विपक्षी सदस्यों द्वारा लाए गए प्रस्ताव को 84 के मुकाबले 100 मतों से खारिज कर दिया. विधेयक पर लाए गए कांग्रेस के दिग्विजय सिंह के एक संशोधन को सदन ने 84 के मुकाबले 100 मतों से खारिज कर दिया.

विधेयक पारित होने से पहले ही जदयू और अन्नाद्रमुक के सदस्यों ने इससे विरोध जताते हुए सदन से बहिर्गमन किया.

विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि एक प्रसिद्ध न्यायाधीश आमिर अली ने 1908 में एक किताब लिखी है. इसके अनुसार तलाक-ए-बिद्दत का पैगंबर मोहम्मद ने भी विरोध किया है.

प्रसाद ने कहा कि एक मुस्लिम आईटी पेशेवर ने उनसे कहा कि तीन बेटियों के जन्म के बाद उसके पति ने उसे एसएमएस से तीन तलाक कह दिया है.

उन्होंने कहा, ‘एक कानून मंत्री के रूप में मैं उससे क्या कहता? क्या यह कहता कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय को मढ़वा कर रख लो. अदालत में अवमानना का मुकदमा करो. पुलिस कहती है कि हमें ऐसे मामलों में कानून में अधिक अधिकार चाहिए.’

उन्होंने शाहबानो मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले को पलटने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार द्वारा लाए गए विधेयक का जिक्र करते हुए कहा, ‘मैं नरेंद्र मोदी सरकार का कानून मंत्री हूं, राजीव गांधी सरकार का कानून मंत्री नहीं हूं.’

उन्होंने कहा कि यदि मंशा साफ हो तो लोग बदलाव की पहल का समर्थन करने को तैयार रहते हैं.

प्रसाद ने कहा कि जब इस्लामिक देश अपने यहां अपनी महिलाओं की भलाई के लिए बदलाव की कोशिश कर रहे हैं तो हम तो एक लोकतांत्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष देश हैं, हमें यह काम क्यों नहीं करना चाहिए?

उन्होंने कहा कि तीन तलाक से प्रभावित होने वाली करीब 75 प्रतिशत महिलाएं गरीब वर्ग की होती हैं. ऐसे में यह विधेयक उनको ध्यान में रखकर बनाया गया है.

प्रसाद ने कहा कि हम ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ में भरोसा करते हैं और इसमें हम वोटों के नफा-नुकसान पर ध्यान नहीं देंगे और सबके विकास के लिए आगे बढ़ेंगे और उन्हें (मुस्लिम समाज को) पीछे नहीं छोड़ेंगे.

मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि कोई मुस्लिम पति अपनी पत्नी को मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप से या किसी अन्य विधि से तीन तलाक देता है तो उसकी ऐसी कोई भी उद्घोषणा शून्य और अवैध होगी.

इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि तीन तलाक से पीड़ित महिला अपने पति से स्वयं और अपनी आश्रित संतानों के लिए निर्वाह भत्ता प्राप्त पाने की हकदार होगी. इस रकम को मजिस्ट्रेट निर्धारित करेगा.

राज्यसभा में विधेयक के पास होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘पूरे देश के लिए आज एक ऐतिहासिक दिन है. आज करोड़ों मुस्लिम माताओं-बहनों की जीत हुई है और उन्हें सम्मान से जीने का हक मिला है. सदियों से तीन तलाक की कुप्रथा से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं को आज न्याय मिला है. इस ऐतिहासिक मौके पर मैं सभी सांसदों का आभार व्यक्त करता हूं.’

एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा, ‘तीन तलाक बिल का पास होना महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है. तुष्टिकरण के नाम पर देश की करोड़ों माताओं-बहनों को उनके अधिकार से वंचित रखने का पाप किया गया. मुझे इस बात का गर्व है कि मुस्लिम महिलाओं को उनका हक देने का गौरव हमारी सरकार को प्राप्त हुआ है.’

तीन तलाक संबंधी विधेयक मुस्लिम परिवारों को तोड़ने वाला कदम: विपक्ष

राज्यसभा में मंगलवार को कांग्रेस सहित अधिकतर विपक्षी दलों के साथ-साथ अन्नाद्रमुक, वाईएसआर कांग्रेस ने भी तीन तलाक संबंधी विधेयक का कड़ा विरोध करते हुए इसे प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग की. विपक्षी दलों के सदस्यों ने इसका मकसद मुस्लिम परिवारों को तोड़ना बताया.

उच्च सदन में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 पर चर्चा में भाग लेते हुए नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने सवाल उठाया कि जब तलाक देने वाले पति को तीन साल के लिए जेल भेज दिया जाएगा तो वह पत्नी एवं बच्चे का गुजारा भत्ता कैसे देगा?

उन्होंने कहा, यह घर के चिराग से घर को जलाने की कोशिश की तरह है.

उन्होंने कहा कि इस विधेयक का मकसद मुस्लिम परिवारों को तोड़ना है. उन्होंने कहा कि इस्लाम में शादी एक दिवानी समझौता है. उन्होंने सरकार से सवाल किया कि आप इसे संज्ञेय अपराध क्यों बना रहे हैं? उन्होंने इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने की मांग की.

चर्चा में भाग लेते हुए जदयू के वशिष्ठ नारायण सिंह ने विधेयक का विरोध किया. उन्होंने कहा कि वह न तो विधेयक के समर्थन में बोलेंगे और न ही इसमें साथ देंगे. उन्होंने कहा कि हर पार्टी की अपनी विचारधारा होती है और उसे पूरी आजादी है कि वह उस पर आगे बढ़े.

जदयू के सदस्यों ने विधेयक का विरोध करते हुए सदन से बहिर्गमन किया.

तृणमूल कांग्रेस की डोला सेन ने सरकार को सलाह दी कि इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजा जाना चाहिए. उन्होंने इस विधेयक से तीन तलाक को अपराध बनाने का प्रावधान हटाने की मांग भी की.

समाजवादी पार्टी के जावेद अली खान ने इस विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि कहा कि कई पत्नियों को उनके पति छोड़ देते हैं.

उन्होंने सरकार से जानना चाहा कि क्या वह ऐसे पतियों को दंड देने और ऐसी परित्यक्त महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के लिए कोई कानून लाएगी?

उन्होंने कहा कि मुस्लिम विवाह एक दिवानी करार है. उन्होंने कहा कि तलाक का मतलब इस करार को समाप्त करना है. उन्होंने कहा कि इस कानून के तहत तलाक का अपराधीकरण किया जा रहा है, जो उचित नहीं है.

उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार राजनीतिक कारणों से यह विधेयक लायी है और ऐसा करना उचित नहीं है.

अन्नाद्रमुक के ए. नवनीत कृष्णन ने विधेयक का विरोध करते हुए इसे प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग की. उन्होंने कहा कि ऐसा कानून बनाने की संसद के पास विधायी सक्षमता नहीं है. उन्होंने कहा कि इस विधेयक के कुछ प्रावधानों को पूर्व प्रभाव से लागू किया गया है जो संविधान की दृष्टि से उचित नहीं है.

द्रमुक के टीकेएस इलानगोवन ने विधेयक को प्रवर समिति में भेजने की मांग करते हुए कहा कि इसकी जगह कोई वैकल्पिक विधेयक लाने का सुझाव दिया.

राकांपा के माजिद मेनन ने कहा कि जब उच्चतम न्यायालय ने इस बारे में कोई निर्णय दे दिया है तो वह अपने आप में एक कानून बन गया है. ऐसे में अलग कानून लाने का क्या औचित्य है?

वाईएसआर कांग्रेस के विजयसाई रेड्डी ने भी विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि जब तीन तलाक को निरस्त मान लिया गया है तो फिर आप तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान कैसे कर सकते हैं? उन्होंने कहा कि इस सजा के प्रावधान से दोनों पक्षों के बीच समझौते की संभावना समाप्त हो जाएगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)