भाजपा की येदियुरप्पा सरकार की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि टीपू सुल्तान के जयंती समारोह को लेकर पिछले वर्षों में हुई हिंसा को देखते हुए इसे तत्काल प्रभाव से रद्द किया जा रहा है. साल 2016 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हर साल नवंबर में टीपू सुल्तान की जयंती मानने का आदेश जारी किया था.
बेंगलुरु: 18वीं सदी के मैसूर साम्राज्य के शासक टीपू सुल्तान की जयंती पर आयोजित होने वाले वार्षिक समारोह को कर्नाटक की भाजपा सरकार ने मंगलवार को रद्द कर दिया. इस समारोह का आयोजन 2016 से हो रहा था.
बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली भाजपा की नई सरकार ने सत्ता में आने के तीन दिन के भीतर यह आदेश पारित किया. एक दिन पहले ही राज्य विधानसभा में येदियुरप्पा की सरकार ने विश्वासमत हासिल किया था.
सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 2016 में टीपू सुल्तान की जयंती के अवसर पर 10 नवंबर को वार्षिक समारोह के आयोजन की शुरुआत की थी और भाजपा एवं अन्य के विरोध के बावजूद एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली कांग्रेस-जेडीएस की गठबंधन सरकार ने पिछले साल भी इसे जारी रखा था.
आदेश में कहा गया है कि विराजपेट के विधायक केजी बोपैया ने येदियुरप्पा को पत्र लिखकर राज्य के कन्नड़ एवं संस्कृति विभाग द्वारा टीपू जयंती के अवसर पर आयोजित किए जाने वाले वार्षिक समारोहों को रद्द करने का अनुरोध किया.
पत्र में उन्होंने ऐसे समारोह को लेकर विशेषकर कोडागू जिले में होने वाले विरोध की ओर ध्यान आकृष्ट किया.
राज्य सरकार की ओर से जारी आदेश में कहा गया है, ‘इसे देखते हुए कैबिनेट ने निर्णय कन्नड़ और संस्कृति विभाग की ओर से मनाई जाने वाले टीपू सुल्तान के जयंती समारोह को तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाता है.’
द मिंट की रिपोर्ट के अनुसार, येदियुरप्पा ने कहा कि जयंती समारोह को लेकर बहुत सारे विरोध प्रदर्शन को देखते हुए सरकार ने यह कदम उठाया है.
इस आदेश पर बेंगलुरु में पूर्व मुख्यमंत्री और विधानसभा में कांग्रेस के नेता सिद्धारमैया ने कहा, ‘लगातार तीन साल तक हमारे साथ कर्नाटक के लोगों ने भी यह जयंती समारोह मनाया है. उन्होंने इसे स्वीकार किया है. उन्होंने (टीपू सुल्तान) अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. मेरे हिसाब से वह पहले स्वतंत्रता सेनानी थे.’
उन्होंने कहा कि यह आदेश भाजपा की अल्पसंख्यक विरोधी मानसिकता को दर्शाता है. उसकी विचारधारा धर्मनिरपेक्ष नहीं है.
मालूम हो कि भाजपा और दक्षिणपंथी संगठन टीपू को धार्मिक कट्टरपंथी बताते हुए जयंती समारोहों का कड़ा विरोध करते रहे हैं. ये सवाल उठाए जाते रहे हैं कि क्या वे (टीपू सुल्तान) स्वतंत्रता सेनानी थे या फिर तानाशाह? उन्होंने समाज के लिए योगदान दिया या वे कट्टर थे?
वर्ष 2016 में टीपू जयंती के पहले आधिकारिक आयोजन के दौरान कोडागू जिले में व्यापक प्रदर्शनों और हिंसा में कटप्पा नाम के विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के कार्यकर्ता की मौत हो गई थी.
इतिहासकारों के एक धड़े के अनुसार, टीपू सुल्तान अपने शासन में हिंदू मंदिरों को आर्थिक सहायता दिया करते थे वहीं कुछ लोगों का मानना है कि टीपू सुल्तान ने लोगों का जबरन धर्मांतरण कराया और हिंदू मंदिरों को लूटा था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)