दो साल पहले उन्नाव की उस नाबालिग के नौकरी मांगने जाने पर स्थानीय विधायक ने बलात्कार किया. कई चेतावनियों के बावजूद उसने इंसाफ के लिए लड़ाई शुरू की, जिसमें कई परिजनों को हार चुकी वो पीड़िता आज अस्पताल में ख़ुद अपनी ज़िंदगी के लिए लड़ रही है.
हैप्पी एंडिंग बड़ी टेढ़ी खीर है, हिंदी फिल्मों में कहानी का अंत भला, तो सब भला. ‘अरे भाई, थके-हारे लोग फिल्मों में अपने दुख-दर्द भुलाने के लिए आते हैं. क्यों दुखी एंड से उन्हें एक और ग़म देकर घर भेज रहे हो.’
हर लेखक के लिए हैप्पी एंडिंग एक नासूर भी है और एक ख्व़ाब भी. जब राइटर इस हैप्पी एंडिंग के काम को अंजाम को नहीं दे पाता है, तो पूरी की पूरी टीम हैप्पी एंडिंग ढूंढने में लग जाती है. मैंने भी एक कहानी लिखी है.
अगर मदद हो सके तो करना, मुझे मेरी नायिका के लिए हैप्पी एंडिंग चाहिए, अगर आप ढूंढ सको तो ढूंढ देना. लेकिन उस से पहले मैं संक्षिप्त में आपको कहानी समझा देता हूं.
तो फिल्म का पहला सीन है, एक परिवार एक गाड़ी में रायबरेली से जा रहा है. चेहरे अभी पहचान में नहीं आ रहे हैं, दोपहर का वक़्त है. हल्की-हल्की बारिश हो रही है. अचानक एक ट्रक इस गाड़ी से आकर टकराता है.
हम गाड़ी के अंदर कट करते है, अंदर बैठे लोगों के चेहरे अब साफ नज़र आ रहे हैं. उनके चेहरे पर खौफ़ और आतंक का साया है. शॉट स्लो मोशन है. एक लड़की है, एक उसके वकील हैं और दो अधेड़ उम्र की महिलाएं हैं.
खून और कांच के टुकड़े स्लो मोशन में ऐसे उड़ रहे हैं, जैसे पिचकारियों से दागे जा रहे हों. ये कार अंदर से अब ऐसी लग रही है जैसे सीरिया में बाहर से मकानों का मंज़र लगता है. दोनों महिलाएं हमारे सामने दम तोड़ देती हैं.
ये सफेद गाड़ी आगे से कुचली जा चुकी है, इंजन कार के अंदर धंस चुका है. सारे कांच फूट चुके हैं. बंपर चकनाचूर है, गाड़ी में से ऑइल धीरे-धीरे रिस रहा है. गाड़ी में अंदर पड़े लोगों का हाल भी ऐसा ही है, गाड़ी के ऑइल की तरह उनका भी खून रिसकर गाड़ी के फ्लोर पर फैल रहा है.
एक छोटा-सा खून का तालाब फ्लोर पर बनने लगा है. मेरी नायिका की पसलियां टूटकर फेफड़े में घुस गई हैं. हाथ-पैर और कॉलर बोन की हड्डियां भी टूट चुकी हैं. ट्रक ड्राइवर मौका-ए-वारदात से भाग जाता है.
अब हम किसी अनजान जगह पर कट करते हैं, किसी का फोन बजता है, एक अंधेरे कमरे में एक आदमी फोन उठता है, उसका चेहरा साफ नहीं दिख रहा है. फोन पर एक आदमी की आवाज़ कहती है, ‘काम हो गया है.’ फोन काट दिया जाता है.
नायिका का नाम हम कानूनन किसी को नहीं बता सकते हैं इसलिए मैं उसे ‘वीरा’ का नाम देता हूं क्योंकि अगर ये वीरा नहीं है तो शायद दुनिया में कोई वीर नहीं है. कहानी में जल्दी ही आगे हमें पता चल जाता है कि वीरा किसी तरह बच गई है, लेकिन मौत से जूझ रही हैं.
कार में मरने वाली दो महिलाएं, उसकी बुआ और मौसी थीं. साथ ही वकील साहब भी मौत से लड़ रहे हैं. ट्रक का ड्राइवर, खलासी और ट्रक का मालिक तीनों अरेस्ट कर लिए जाते हैं.
पुलिस, बारिश को एक्सीडेंट का दोषी करार देते हुए जांच शुरू करती है और अब आपको लगने लगता है कि मैं ये फिल्म क्यों देख रहा हूं? मामला बिल्कुल साफ है, माना कि बड़ा भयानक एक्सीडेंट था, पर कहानी क्या है? लेकिन किसी भी हिंदी फिल्म की तरह अभी एक बहुत बड़ा ट्विस्ट बाकी है.
हम फिल्म को दो साल पहले फ्लैश कट करते हैं. दिन है 4 जून, 2017 का. वीरा जो इस वक़्त 17 साल की है, बुरी हालत में रोती हुई अपने घर पहुंचती है और घरवालों को बताती है कि उसके साथ कुलदीप, एक 51 साल के स्थानीय एमएलए ने बलात्कार किया है.
याद रखिएगा, इस आदमी की उम्र 51 साल और लड़की अभी नाबालिग है, सिर्फ एक बच्ची है. वो घरवालों को बताती है कि वो वहां नौकरी के लिए मदद मांगने गई थी और उसके साथ ऐसा हुआ.
घर की एक बूढ़ी उसे उल्टा कोसती है कि तू वहां अपना मुंह काला करवाने गई ही क्यों थी. इस बूढ़ी को भी याद रखिएगा. इसकी उम्र 50 साल है, पर ये अपनी उम्र से ज़्यादा बूढ़ी लगती है और ये कुलदीप से एक साल छोटी है.
ये बूढ़ी सब घरवालों को चेतावनी देती है कि ‘अगर तुमने कुलदीप के खिलाफ सिर उठाया तो तबाह हो जाओगे.’ आप लोग आगे देखोगे कि इस बूढ़ी की ये भविष्यवाणी कैसे एक कड़वा सच साबित होती है. (ये बूढ़ी एक काल्पनिक पात्र है.)
कुलदीप के खिलाफ रेप का केस दर्ज होता है और 11 जून 2017 को वीरा का अपहरण होता है और उसका परिवार पुलिस में इसकी रिपोर्ट करता है. लड़की का अब किसी को अता-पता नहीं है. नौ दिन तक वो गायब रहती है.
फिर 20 जून 2017 को पुलिस उसे ढूंढ निकाल लेती है औरैया के एक गांव से, जो उन्नाव से करीब सौ से सवा सौ किलोमीटर दूर है. दूसरे दिन पुलिस वीरा को उन्नाव वापस लेकर आती है. इन नौ दिनों में क्या हुआ होगा, उसका हिसाब आप खुद लगा सकते हैं.
22 जून 2017 को पुलिस वीरा को कोर्ट में बयान देने के लिए जाती है, जहां वीरा को पुलिस कुलदीप का नाम अपने बयान में नहीं लेने देती है. अब पुलिस चाहती तो वीरा का वापस जाने देती, लेकिन अभी शायद लड़की डरी नहीं है इसलिए पुलिस उसे दस दिन तक अपने पास रखती है.
3 जुलाई 2017 को दस दिन बाद, जी आप लोगों ने ठीक सुना दस दिन बाद पुलिस वीरा को उसके घर वालों तो सौंपती है. वीरा अब डर के मारे दिल्ली चली जाती है. पुलिस पर वो उत्पीड़न का आरोप लगाती है, पर ये सिर्फ आरोप हैं.
दस दिन उसे पुलिस ने फाइव स्टार होटल में रखा था जैसे हमारे एमएलए वगैरह को रखा जाता है फ्लोर टेस्ट से पहले. खैर, अब वीरा दिल्ली में गुहार लगाना शुरू करती है.
वो शिकायतें भेजना शुरू करती है सीएम साब को और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को. ये एक-दो दिन का काम नहीं है, ये महीनों तक चलता है. 24 फरवरी 2018 को थक-हारकर वीरा की मां कोर्ट में जाती है, चीफ ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट (सीजेएम) के सामने अर्जी डाली जाती है 156 (3) सीआरपीसी के अंतर्गत.
डेढ़-दो महीने के इंतज़ार के बाद 3 अप्रैल 2018 को कोर्ट में वीरा की मां की फरियाद सुनी जाती है, पर आपको वह काल्पनिक पात्र, वह बूढ़ी याद है न? क्या कहा था उसने? ‘अगर तुमने कुलदीप के खिलाफ सिर उठाया तो तबाह हो जाओगे.’
3 अप्रैल उस भविष्यवाणी की शुरुआत है. तो इस दिन वीरा के पिता को अतुल सिंह, जो कुलदीप का भाई है, तबियत से मारता है और फिर पुलिस को थमा देता है. पुलिस उस पर अवैध हथियार रखने का मामला बनाती है.
और यहां से वीरा, एक बलात्कार पीड़िता बच्ची के पिता की पिटाई का सिलसिला शुरू होता है. 5 अप्रैल को वीरा के पिता को जेल भेज दिया जाता है.
ये आदमी कुलदीप अलग है भाई! इसने रेप किया, पीड़िता के पिता को मारा, फिर जेल भेज दिया. उन्नाव जिले का हर कुलदीपक, अगर कुलदीप बनना चाहे, तो इसमें क्या ग़लत है?
अब वीरा के सिर से पानी गुज़र चुका है, उसे लगता है कि उसने सब-कुछ बर्बाद कर दिया, वो जीवन में सब कुछ खो चुकी है, वो 8 अप्रैल को मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह (खुद तो आग लगाकर मरने की नहीं, मारने की) कोशिश करती है.
और यहां से सब कुछ बदल जाता है. बैकग्राउंड म्यूजिक बदलता है, एक आशा की किरण फूटती है, नेशनल मीडिया इस बात को उठा लेता है और ये खबर राष्ट्रीय मुद्दा बन जाती है.
लगता है, अब वीरा का समय बदलने वाला है. लेकिन 1 दिन बाद 9 अप्रैल को पिता की लाश वीरा और उसके परिवार को सौंप दी जाती है. उम्मीद का इंद्रधनुष यहां से कभी बनता है, कभी बिगड़ता है.
कुलदीप हिरासत में भी ले लिया जाता है. सीबीआई की इन्क्वायरी भी शुरू होती, चार्जशीट भी लगाई जाती हैं. कभी लगता है इंसाफ होगा, कभी लगता है नहीं. और इस दरम्यान वीरा के चाचा को जेल में डाल दिया जाता है.
हां, इस बीच कुलदीप के समर्थन में रैलियां भी निकाली जाती है, लोगों का सैलाब ये कहता है कि कुलदीप को फंसाया जा रहा है. कुलदीप की पार्टी के पीएम फिर से पीएम बन जाते हैं.
सांसद साक्षी महाराज जी, कुलदीप जी को जेल में मिलने जाते हैं. कुलदीप को अब पता है कि देश उसके साथ है क्योंकि वो बीजेपी के साथ है.
और फिर एक दिन नकली नंबर प्लेट का ट्रक एक गाड़ी से टकराता है. दो और लोग मारे जाते हैं, दो अभी ज़िंदगी से लड़ रहे हैं और उस बूढ़ी की आवाज़ गूंजती है ‘अगर तुमने कुलदीप के खिलाफ सिर उठाया तो तबाह हो जाओगे.’
कैसी है कहानी? वीरा, जिसकी संज्ञा वीरा नहीं है, पर उसका विशेषण वीरा ज़रूर है क्योंकि इतनी लंबी और कठिन लड़ाई तो कोई वीर ही लड़ सकता है. अब उसकी कहानी का क्या करूं? प्लीज़, मेरी हैप्पी एंडिंग ढूंढने में मेरी मदद कर दो?
अब समझ नहीं आ रहा क्या करूं? ये कुछ विकल्प हैं:
1. पूरा देश सड़क पर उतर आता है और देश का गुस्सा वीरा को इंसाफ दिलवाता है.
2. कोई आईपीएस अफसर कुलदीप के परिवार को जड़ से उखाड़कर फेंकने का फैसला करता है.
3. देश में ऐसी क्रांति आती है कि सरकारें गिर जाती हैं.
4. वीरा उठकर खड़ी होती है, चुनाव लड़ती है कुलदीप के खिलाफ और जीतती है.
5. या भगवान खुद कुलदीप को सज़ा देने का फैसला करता है और उसे ऐसी बीमारी देता है कि वो सड़ सड़ कर मरे?
अब पता नहीं कैसे इस कहानी को हैप्पी एंडिंग दूं? अगर हैप्पी एंडिंग नहीं मिली तो न ये फिल्म बनेगी और न वीरा की ज़िंदगी. वीरा की ज़िंदगी बनाने में मेरी मदद कीजिए?
जैसे आप लोग बाढ़-आपदा में पैसे दान करते हैं, वैसे ही वीरा की आपदा में कुछ सहयोग-दान कीजिए. शायद आप लोगों का सहयोग वीरा को हैप्पी एंडिंग दे सके. अगर इस फिल्म को हैप्पी एंडिंग मिल गई तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि फिर हिंद हिट है और जय हिंद है.
(दाराब फ़ारूक़ी पटकथा लेखक हैं और फिल्म डेढ़ इश्किया की कहानी लिख चुके हैं.)