आरटीआई में संशोधन न करने को लेकर राष्ट्रपति को ज्ञापन देने पहुंचे लोगों को हिरासत में लिया गया

सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 लोकसभा और राज्यसभा से पारित कर दिया गया है. लेकिन अभी इस संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति नहीं मिली है.

सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 लोकसभा और राज्यसभा से पारित कर दिया गया है. लेकिन अभी इस संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति नहीं मिली है.

RTI detain
राष्ट्रपति को ज्ञापन देने पहुंचे कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेती दिल्ली पुलिस. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: सूचना का अधिकार कानून में संशोधन की अनुमति न देने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ज्ञापन देने पहुंचे कार्यकर्ताओं को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में ले लिया. कार्यकर्ताओं को मंदिर मार्ग थाने ले जाया गया है.

मालूम हो कि सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 लोकसभा और राज्यसभा से पारित कर दिया गया है. लेकिन अभी इस संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति नहीं मिली है.

इसी मांग को लेकर कार्यकर्ता राष्ट्रपति भवन पहुंच थे कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इस विधेयक पर अपनी सहमति न दें. हालांकि जैसे ही लोग वहां पहुंचे, पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया.

आरटीआई को सशक्त करने की दिशा में काम करने वाले कार्यकर्ता 7,000 से ज्यादा लोगों के हस्ताक्षर और उनकी मांगों के साथ राष्ट्रपति भवन पहुंच थे.

ज्ञापन देने पहुंची सूचना के जन अधिकार आंदोलन (एनसीपीआरआई) की सदस्य और आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने पुलिस की कार्रवाई पर बेहद हैरानी जताते हुए कहा, ‘क्या ये लोकतंत्र है? अगर लोकतंत्र खत्म हो चुका है तो हमें बता दिया जाए. लोगों को शांतपूर्ण ढंग से अपना ज्ञापन तक नहीं सौंपने दिया जा रहा है.’

वहीं, एक अन्य आरटीआई कार्यकर्ता अमृता जौहरी ने बताया कि जैसे ही लोग राष्ट्रपति भवन के गेट नंबर 38 पर पहुंचे, वैसे ही पुलिस ने उन्हें अपनी गाड़ी में भर लिया. लोगों को गेट के सामने खड़े तक नहीं होने दिया गया.

उन्होंने कहा, ‘हमें जानवरों की तरह गाड़ियों में भरकर थाने ले जाया जा रहा है. हमें राष्टपति को अपना ज्ञापन तक नहीं सौंपने दिया गया. ये लोकतंत्र की पूरी तरह से हत्या है.’

आरटीआई संशोधन विधेयक में प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और कार्यकाल केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाएंगे.

सामजिक कार्यकर्ता और विशेषज्ञ इसे आरटीआई कानून की मूल भावना के लिए खतरा बता रहे हैं.

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