कश्मीर को लेकर मोदी सरकार के मन में क्या चल रहा है?

जम्मू कश्मीर में अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती और अमरनाथ यात्रा पर रोक और कई अन्य सरकारी आदेशों से राज्य में अफरातफरी और अनिश्चितता का माहौल है. प्रदेश में धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए के भविष्य को लेकर तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं.

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नरेंद्र मोदी. (फोटो: रॉयटर्स)

जम्मू कश्मीर में अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती और अमरनाथ यात्रा पर रोक और कई अन्य सरकारी आदेशों से राज्य में अफरातफरी और अनिश्चितता का माहौल है. प्रदेश में धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए के भविष्य को लेकर तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं.

People look out from a window as they watch a protest against the recent killings in Kashmir, on the outskirts of Srinagar
(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: बीते 24 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार में सबसे ताकतवर नौकरशाह माने जाने वाले देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल दो दिवसीय जम्मू कश्मीर यात्रा गए थे.

ऐसा कहा गया कि राज्य में उनका यह दौरा अमरनाथ यात्रा को लेकर है और वे वहां दर्शन करने जा रहे हैं. हालांकि इस दौरान उन्होंने कश्मीर घाटी की ताजा स्थिति जानने के लिए राज्य के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात भी की.

डोभाल की दो दिवसीय यात्रा समाप्त होने से पहले 25 जुलाई को गृह मंत्रालय द्वारा राज्य में देश के अर्धसैनिक बलों की 100 कंपनियों (10 हजार जवान) की तैनाती का आदेश जारी किया गया.

जम्मू कश्मीर में अर्धसैनिक बलों की 100 कंपनियां तैनात करने का आदेश. (फोटो: द वायर)
जम्मू कश्मीर में अर्धसैनिक बलों की 100 कंपनियां तैनात करने का आदेश. (फोटो: द वायर)

गृह मंत्रालय के इस आदेश में कहा गया कि अतिरिक्त बलों की तैनाती राज्य में आतंकरोधी कार्रवाई को बढ़ाने और कश्मीर में कानून-व्यवस्था की स्थिति को बनाए रखने के लिए की गई है.

इसके बाद 1 अगस्त को 28 हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती किए जाने की भी सूचना आई. बता दें कि, इससे पहले अमरनाथ यात्रा के सिलसिले में राज्य में 40 हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती की गई थी.

हाल ही में आईएएस की नौकरी छोड़कर जम्मू कश्मीर की राजनीति में उतरने वाले और जम्मू कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट (जेकेपीएम) पार्टी प्रमुख शाह फैसल ने कहा, ‘सेना की नई टुकड़ियों की तैनाती को लेकर सरकार को रुख स्पष्ट करना चाहिए.’

पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट कर कहा था, ‘घाटी में 10 हजार अतिरिक्त अर्धसैनिक जवानों की तैनाती के केंद्र के फैसले लोगों के बीच भय का माहौल बन गया है. कश्मीर में सुरक्षा बलों की कोई कमी नहीं है. जम्मू कश्मीर एक राजनीतिक समस्या है जिसे सेना के सहारे नहीं सुलझाया जा सकता है.’

वहीं अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती को लेकर नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा था, ‘15 अगस्त के बाद राज्य में माहौल बिगड़ने को लेकर प्रशासन द्वारा अनुचित अफवाहें फैलाई जा रही हैं. केंद्रीय मंत्रियों से आ रहे बयान अनुच्छेद 35 ए को खत्म करने की ओर इशारा कर रहे हैं, जिससे अफवाहों को बल मिल रहा है.’

हालांकि, जम्मू कश्मीर विधान परिषद में भाजपा के सदस्य अजय भारती कहते हैं, ‘राज्य में जो अर्धसैनिक बलों की नई टुकड़ियां तैनात की गई हैं वे रूटीन प्रक्रिया का हिस्सा है. लेकिन सत्ता से बाहर हो चुकी पार्टियां इसे असामान्य बनाने की कोशिश कर रही हैं.’

हालांकि, यह मामला सिर्फ अतिरिक्त सुरक्षाबलों को जम्मू कश्मीर में तैनात करने से नहीं जुड़ा हुआ था. केंद्रीय सशस्त्र अर्द्धसैनिक बलों की अतिरिक्त कंपनियां भेजे जाने के केंद्र सरकार के आदेश के बाद से राज्य में तमाम तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं.

इस बीच बीते दो जुलाई को अमरनाथ यात्रा पर रोक और फिर सैलानियों को जल्द से जल्द कश्मीर घाटी छोड़कर चले जाने का आदेश जारी होने के बाद यहां डर का माहौल पैदा हो गया है.

ऐसी चर्चा है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा नीत केंद्र सरकार संविधान के अनुच्छेद 35-ए को वापस ले सकती है जो राज्य के लोगों के विशेष निवास और नौकरी के अधिकारों से जुड़ा हुआ है.

पिछले तीन दिनों से राज्य सरकार के अधिकारियों और केंद्र सरकार के कुछ विभागों की तरफ से जारी कई आदेशों से आशंकाएं जताई जा रही हैं कि जम्मू कश्मीर को लेकर कोई बड़ा निर्णय होने वाला है.

एक आरपीएफ अधिकारी द्वारा कश्मीर के बिगड़ते हालात को लेकर लिख गए पत्र की वजह से भी इन चर्चाओं को और बल मिला. पत्र में आरपीएफ के सहायक सुरक्षा आयुक्त (बड़गाम) सुदेश नुग्याल ने कश्मीर में हालात बिगड़ने की आशंका के मद्देनजर कानून-व्यवस्था से निपटने के लिए कर्मचारियों को कम से कम चार महीने के लिए रसद जमा कर लेने, सात दिन के लिए पानी एकत्र कर लेने और गाड़ियों में ईंधन भरकर रखने को कहा था.

बाद में इस अधिकारी का तबादला कर दिया गया.

New Delhi: Prime Minister Narendra Modi and BJP National President Amit Shah at the concluding session of the National Executive Committee meeting of the party's all wings (morchas)' at Civic Centre in New Delhi, on Thursday. (PTI Photo/Kamal Singh) (PTI5_17_2018_000164B)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह. (फोटो: पीटीआई)

बता दें कि आर्टिकल 35 ए जम्मू कश्मीर विधानसभा को राज्य के ‘स्थायी निवासी’ की परिभाषा तय करने का अधिकार देता है.

जम्मू कश्मीर के संविधान के अनुसार एक स्थायी निवासी वो व्यक्ति है जो 14 मई, 1954 को राज्य में था या जो राज्य में 10 वर्षों से रह रहा है और कानूनी रूप से राज्य में अचल संपत्ति हासिल की है.

जम्मू कश्मीर के लोगों की विशेष पहचान की गारंटी और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए 1954 में राष्ट्रपति के आदेश द्वारा अनुच्छेद 35 ए लाया गया था. केवल जम्मू कश्मीर विधानसभा ही दो-तिहाई बहुमत से इसमें संबंधित बदलाव कर सकती है.

जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र के निदेशक आशुतोष भटनागर कहते हैं, ‘35 ए निश्चित तौर पर हटाया जाना चाहिए. यह भारत के संविधान की आत्मा और उसके प्रावधानों के खिलाफ है.’

उन्होंने कहा, ‘भारत के संविधान में उसे गलत तरीके से जोड़ा गया है, उसकी समीक्षा होनी चाहिए और वहां के प्रश्नों का हल नहीं है. अगर कोई संवैधानिक गलतियां हुई हैं तो उनका मूल्यांकन होना चाहिए और वह मूल्यांकन सुप्रीम कोर्ट कर रहा है.’

दरअसल, जम्मू कश्मीर को मिले विशेष दर्जे पर भाजपा की हमेशा से नजर रही है. वह जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए को खत्म करने की मांग करती रही है.

भारतीय संविधान की धारा 370 जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करती है. यह केंद्रीय तथा समवर्ती सूची के तहत आने वाले विषयों पर कानून बनाने के संसद के अधिकार में कटौती करके संविधान के विभिन्न प्रावधानों को लागू किए जाने को सीमित करता है.

वरिष्ठ पत्रकार कमर आगा कहते हैं, ‘जनसंघ, हिंदू महासभा के बाद भाजपा का भी शुरू से ही वायदा रहा है कि वे धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए को खत्म करेंगे. उनका कहना है कि वे जम्मू कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को खत्म उसे सामान्य बनाएंगे. ये अपने घोषणा-पत्र में भी कहते हैं और इसको लेकर वे प्रतिबद्ध हैं. हालांकि, इसकी प्रक्रिया बहुत जटिल है.’

बता दें कि जम्मू कश्मीर से धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए को खत्म करने की बात भाजपा लगातार अपने घोषणा-पत्रों में शामिल करती रही है. यही कारण है कि नरेंद्र मोदी के सत्ता में लगातार दूसरी बार चुनकर आने के कुछ ही महीनों बाद शुरू हुई इस हलचल से राज्य के सियासी दलों की भी चिंता बढ़ गई है.

(फोटो साभार: bjp.org)
लोकसभा चुनाव 2019 के लिए भाजपा के घोषणा-पत्र का हिस्सा. (फोटो साभार: bjp.org)

शाह फैसल कहते हैं, ‘हमें नहीं पता है कि सरकार का इरादा क्या है लेकिन जिस तरह से भाजपा ने अपने घोषणा-पत्र में धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए को हटाने की बात की है, उससे लोगों में डर का माहौल है.’

एक अन्य आदेश में राज्य प्रशासन की तरफ से श्रीनगर के पांच जोनल पुलिस अधीक्षकों से शहर में स्थित मस्जिदों और उनकी प्रबंध समितियों की सूची की जानकारी उपलब्ध कराने को कहा गया.

वहीं, उमर अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर पुलिस द्वारा जारी एक आदेश को ट्वीट किया था. इस आदेश में जम्मू कश्मीर पुलिस मुख्यालय ने सभी पुलिस जोनों को ‘विशेष कानून और व्यवस्था ड्यूटी’ के तहत अपनी कमांड तैनात करने को कहा गया था. इस आदेश में सभी जोन की पुलिस को कहा गया कि यदि उनके यहां दंगा नियंत्रक उपकरणों की कमी है, तो उसकी जानकारी तुरंत दे दी जाए.

इस पर शाह फैसल ने कहा, ‘कुछ लोग कह रहे हैं कि चार महीने का राशन जमा कर लो, कुछ लोग कह रहे हैं कि घरों से बाहर मत निकलो, कुछ लोग कह रहे हैं कि हालात खराब होने वाले हैं, इस वजह से यहां पर सामान्य जनजीवन प्रभावित हो रहा है.’

इन आदेशों पर विवाद होने के बाद राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा था, ‘हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर दिख रहे आदेश वैध नहीं हैं. लाल चौक पर अगर कोई छींकता भी है तो राज्यपाल भवन तक पहुंचते-पहुंचते इसे बम विस्फोट बता दिया जाता है. राज्य के विशेष दर्जे पर कोई बड़ा निर्णय होने के बारे में अफवाहों की तरफ लोगों को ध्यान नहीं देना चाहिए क्योंकि ‘सब कुछ सामान्य है.’

हालांकि, राज्यपाल के आदेश पर उमर ने कहा था, ‘राज्यपाल ने बहुत ही गंभीर मसला उठाया है. वरिष्ठ अधिकारियों के हस्ताक्षरों के साथ फर्जी आदेश फैलाए जा रहे हैं. इसे केवल एक बयान से खारिज नहीं किया जा सकता है. इसकी सीबीआई से जांच करानी चाहिए.’

यहां आग लगने के बाद सिर्फ धुआं ही नहीं उठा था बल्कि वह आग पूरे जंगल में फैल चुकी थी. जम्मू कश्मीर के प्रमुख सियासी दलों ने तत्काल अनुच्छेद 35 ए के मुद्दे पर केंद्र से चीजों को स्पष्ट करने की मांग की. उन्होंने साफ कर दिया कि विशेष दर्जे के साथ छेड़छाड़ के किसी भी कदम का विरोध किया जाएगा.

बता दें कि महबूबा मुफ्ती ने बीते फरवरी में कहा था कि अनुच्छेद 35 ए से किसी तरह की छेड़छाड़ की गई तो जम्मू कश्मीर को भारत का अंग बनाने वाली संधि अमान्य हो जाएगी. उनका यह भी कहना था कि अगर इसके बाद हालात बिगड़े तो इसके लिए कश्मीरी जिम्मेदार नहीं होंगे.

इसके बाद केंद्र की तरफ से संविधान के अनुच्छेद 35 ए को निरस्त करने संबंधी अटकलों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए महबूबा ने 28 जुलाई को कहा था, ‘जम्मू कश्मीर के मूल निवासियों को निवास और नौकरी का अधिकार प्रदान करने वाले संविधान के प्रावधान के साथ छेड़छाड़ करना बारूद को हाथ लगाने के बराबर होगा. जो हाथ 35 ए से छेड़छाड़ करने के लिए उठेंगे वो हाथ ही नहीं पूरा जिस्म जलकर राख हो जाएगा.’

हालांकि जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र के निदेशक आशुतोष भटनागर कहते हैं, ‘अगर कोई यह कह रहा है कि 35 ए हटने के बाद जम्मू कश्मीर के साथ भारत का रिश्ता खत्म हो जाएगा तो या तो उसे संविधान की जानकारी नहीं है या फिर वह झूठ बोल रहा है. भारत के संविधान की धारा 1 बताती है कि भारत क्या है और उसमें जम्मू कश्मीर का उल्लेख है. संविधान के किसी भी बदलाव से जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं रह जाएगा इसका कोई आधार नहीं है.’

शाह फैसल कहते हैं, ‘यहां पर पहले से ही हजारों लाखों सुरक्षा जवान तैनात हैं तो 10 हजार जवानों के और आ जाने से हमें कोई परेशानी नहीं है. हम परेशान इसलिए हैं क्योंकि लोग कह रहे हैं 35 ए को खतरा है. वरना यहां पर सुरक्षाबलों की मौजूदगी में लोगों को रहने की आदत हो गई है.’

वे कहते हैं, ‘35 ए को खत्म करने के लिए जम्मू कश्मीर की संविधान सभा की सिफारिशों की जरूरत होगी लेकिन उसे 1957 में ही भंग किया जा चुका है. उसके बाद ऐसा कोई रास्ता नहीं बचा है जिसके जरिये इसे खत्म किया जा सके. अगर वे 35 ए को खत्म करते हैं तो जम्मू कश्मीर से भारत का रिश्ता भी खत्म कर देंगे. पिछले 70 सालों में कश्मीर की जो बर्बादी हुई है इससे वह और बढ़ जाएगी.’

A security person stops bicycle riders on a deserted street during a curfew imposed to maintain law and order, following a strike call given by joint Hurriyat leadership, in Srinagar on Saturday, June 02, 2018. Credit: PTI
(फाइल फोटो: पीटीआई)

वरिष्ठ पत्रकार कमर आगा कहते हैं, ‘जम्मू कश्मीर के स्थानीय दलों के पास इस बात का कोई ठोस आधार नहीं है कि सरकार धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए को खत्म करने जा रही है. केंद्र का कहना है कि हमने चुनाव कराने और सीमा सुरक्षा के लिए अतिरिक्त सुरक्षाबलों को भेजा है. संभवतया अक्टूबर तक वहां विधानसभा चुनाव हो सकते हैं.’

वे कहते हैं, ‘ये राष्ट्रपति के आदेश से 35 ए को किसी भी समय हटा सकते हैं लेकिन उसे तुरंत ही कोर्ट में चुनौती दे दी जाएगी. हालांकि, अगर चुनाव से पहले 35 ए को हटाने की कोशिश की जाती है तो यह भारी भूल होगी. इसमें माहौल और बिगड़ जाएगा और चुनाव पर भी असर पड़ेगा.’

जम्मू कश्मीर भाजपा के उपाध्यक्ष हरिंदर गुप्ता कहते हैं, ‘यह संभावना हो सकती है कि अक्टूबर तक चुनाव हों लेकिन इसका फैसला चुनाव आयोग को करना है. सुरक्षा और बाकी स्थितियों का जायजा आयोग करेगा, हम लोग चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार हैं.’

इस बीच ऐसी भी बातें चल रही हैं कि केंद्र सरकार चुनाव से पहले परिसीमन या राज्य के विभाजन के बारे में कोई घोषणा कर सकती है.

जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र से जुड़े दिल्ली विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट कॉलेज में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर शिव पाठक कहते हैं, ‘जम्मू कश्मीर में घाटी को अधिक संसदीय क्षेत्र मिले जबकि जम्मू और लद्दाख को कम क्षेत्र मिला. जनसंख्या, क्षेत्र और उपलब्धता को देखते हुए जम्मू और लद्दाख में संसदीय क्षेत्रों की संख्या अधिक होनी चाहिए थी. सरकार परिसीमन या विभाजन करके घाटी के प्रभाव को कम कर सकती है.’

इस विवाद के बीच पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने केंद्र द्वारा राज्य के निवासियों को विशेष अधिकार और सुविधाएं देने वाले कुछ संवैधानिक प्रावधानों को रद्द करने की कोशिशों को नाकाम करने के लिए एक संयुक्त मोर्चा बनाने का आह्वान किया.

शाह फैसल ने कहा, ‘हमारी तरफ से भी यह प्रस्ताव गया था कि राज्य के दलों की एक सर्वदलीय बैठक की जाए और प्रधानमंत्री से मुलाकात की जाए. प्रधानमंत्री को बताया जाए कि ये प्रावधान कितने आवश्यक हैं.’

हालांकि, इस बीच फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कॉन्फ्रेंस के एक प्रतिनिधिमंडल ने गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. प्रतिनिधिमंडल ने मोदी से यह भी सुनिश्चित करने का अनुरोध किया कि ऐसा कोई कदम न उठाया जाए, जिससे कश्मीर घाटी में स्थिति बिगड़े.

नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा था, ‘हमने प्रधानमंत्री को बताया कि काफी कठिनाइयों के बाद कश्मीर घाटी में स्थिति में सुधार है और यह पिछले साल से बेहतर है, लेकिन स्थिति किसी भी वक्त बिगड़ सकती है.’

उन्होंने कहा था, ‘हमने उन्हें लोगों की भावना के बारे में बताया और यह भी जानकारी दी कि लोगों के दिमाग में तनाव है.’ इसके साथ ही उन्होंने राज्य में विधानसभा चुनाव इसी साल कराने का अनुरोध किया.

बहरहाल जम्मू कश्मीर में शुरू हुआ यह विवाद आसानी से थमता नजर नहीं आ रहा है, क्योंकि वायुसेना को हाई अलर्ट पर रखने का भी आदेश दिया गया है.

इसके साथ ही खराब मौसम की वजह से चार अगस्त तक के लिए निलंबित अमरनाथ यात्रा पर जम्मू कश्मीर प्रशासन ने आतंकी हमले की आशंका को देखते हुए रोक लगाते हुए सभी सैलानियों से जल्द से जल्द कश्मीर छोड़ देने के लिए कहा है.

तनावपूर्ण माहौल के बीच महबूबा मुफ्ती और शाह फैसल समेत राज्‍य के नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने शुक्रवार देर रात राज्‍यपाल सत्‍यपाल मलिक से मुलाकात कर कश्‍मीर में भयपूर्ण वातावरण पर चिंता जताई. कश्‍मीरी नेताओं की चिंता पर राज्‍यपाल ने उन्‍हें अफवाहों पर ध्‍यान नहीं देने की सलाह दी.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने सुरक्षा सलाह पर सवाल उठाते हुए कहा है कि धारा 370 और  अनुच्छेद 35 ए को हटाने को लेकर चल रहीं अटकलों से घाटी में खौफ का माहौल है. उन्होंने कहा कि इन दोनों धाराओं को हटाने से कश्मीर से ज्यादा जम्मू और लद्दाख का नुकसान होगा.

वहीं, शनिवार को राज्यपाल सत्यपाल मलिक से मुलाकात के बाद भी उमर अब्दुल्ला संतुष्ट नजर नहीं आए. अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू कश्मीर पर उन्हें सही जवाब नहीं मिल पा रहा है. उन्होंने राज्यपाल से इस बाबत एक बयान जारी करने की अपील की है.

हालांकि उमर अब्दुल्ला ने ये जरूर कहा कि राज्यपाल ने उनकी पार्टी को आश्वासन दिया है कि संविधान की धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए को रद्द किए जाने की कोई तैयारी नहीं की जा रही है.

 

जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रतिनिधिमंडल को शनिवार को बताया कि राज्य को संवैधानिक प्रावधानों में किसी भी बदलाव के बारे में कोई जानकारी नहीं है और यह आश्वासन दिया कि अतिरिक्त अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती विशुद्ध रूप से सुरक्षा कारणों से उठाया गया कदम है. राज्यपाल ने राज्य के राजनीतिक दलों के नेताओं से कहा है कि वे अपने समर्थकों से शांत रहने और घाटी में फैलाई गई अफवाहों पर विश्वास न करने के लिए कहें.

बहरहाल उमर अब्दुल्ला ने यह भी कहा कि सोमवार को जब संसद की कार्यवाही शुरू होती है तो केंद्र को सबसे पहले सदन में बयान देना चाहिए कि आखिर यात्रा को खत्म करने और श्रद्धालुओं को निकालने की जरूरत क्यों पड़ी.

इधर, जम्मू कश्मीर के सभी सियासी दलों से बातचीत के बाद फारूक अब्दुल्ला ने रविवार को सर्वदलीय बैठक बुलाने का फैसला किया है.

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