राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) विधेयक के कई प्रावधानों पर डॉक्टरों एवं मेडिकल छात्रों को आपत्ति है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने कहा है कि कुछ प्रावधान ऐसे हैं जिसमें एमबीबीएस डिग्री धारकों के अलावा गैर चिकित्सकीय लोगों या सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाताओं को लाइसेंस देने की बात की गई है.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) विधेयक के खिलाफ रेजिडेंट डॉक्टरों ने शुक्रवार को लगातार दूसरे दिन हड़ताल जारी रखी और आपात विभाग समेत सभी सेवाओं को बंद कर दिया जिसके कारण दिल्ली में कई सरकारी अस्पतालों में मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ा.
वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने हड़ताल कर रहे डॉक्टरों से काम पर लौटने की अपील की.
विभिन्न एसोसिएशनों के डॉक्टरों ने विधेयक के कुछ प्रावधानों को लेकर आपत्तियां व्यक्त की और आरोप लगाया कि ये गरीबी विरोधी, छात्र-विरोधी और अलोकतांत्रिक है.’
एम्स, सफदरजंग, आरएमएल के रेजिडेंट डाक्टरों के संघ और फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (फोर्डा) एवं यूनाइटेड रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (यूआरडीए) से संबंधित डॉक्टरों ने राज्यसभा में एनएमसी विधेयक पारित होने के बाद बीते एक अगस्त को इस मुद्दे को लेकर प्रदर्शन किए थे और अपने कामकाज का बहिष्कार किया था.
उन्होंने शुक्रवार को भी इस हड़ताल को जारी रखने का फैसला किया था. एम्स, एलएनजेपी अस्पताल और कई अन्य संस्थानों में मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ा.
उत्तर प्रदेश निवासी पूनम राय (50) ने कहा कि वह गुरुवार को अपनी बीमार बेटी को राजधानी दिल्ली लाई थीं और एक डॉक्टर से परामर्श लेना चाहती थीं, लेकिन हड़ताल के कारण ऐसा नहीं हो सका.
इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने हड़ताल कर रहे डॉक्टरों से काम पर लौटने की अपील करते हुए कहा कि एनएमसी विधेयक चिकित्सकों एवं मरीजों के हित में है.
उन्होंने विभिन्न चिकित्सक संघों के रेजिडेंट डॉक्टरों के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात के दौरान यह अपील की.
हर्षवर्धन ने कहा, ‘मैंने उन्हें समझाया कि यह ऐतिहासिक विधेयक डॉक्टरों और मरीजों के हित में है. मैंने विधेयक के कुछ प्रावधानों पर उनके सवालों के जवाब भी दिए.’
उन्होंने कहा, ‘मैंने उनसे हड़ताल समाप्त करने की भी अपील की है. मैंने उनसे कहा कि हड़ताल का कोई कारण नहीं है. डॉक्टरों को मरीजों के प्रति अपने कर्तव्यों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए.’
फोर्डा के महासचिव डॉ. सुनील अरोड़ा ने कहा कि बैठक कम से कम एसोसिएशन के दृष्टिकोण से संतोषजनक नहीं थी.
राज्यसभा ने बीते एक अगस्त को चिकित्सा क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव लाने के प्रस्ताव वाले ‘राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) विधेयक-2019’ को मंजूरी दे दी थी. इसमें चिकित्सा क्षेत्र एवं चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र के नियमन के लिए भारतीय चिकित्सा परिषद की जगह एनएमसी के गठन का प्रस्ताव है.
एनएमसी विधेयक भ्रष्टाचार के आरोप झेल रही भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) की जगह लेगा. यह विधेयक 29 जुलाई को लोकसभा में पारित हुआ था.
मालूम हो कि बीते 29 जुलाई को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के आह्वान पर इस विधेयक के विरोध में 5,000 से अधिक डॉक्टरों, मेडिकल छात्रों और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े पेशेवरों ने नई दिल्ली स्थित एम्स से निर्माण विहार तक मार्च निकालकर प्रदर्शन किया था.
राज्यसभा ने बृहस्पतिवार को चिकित्सा क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव लाने के प्रस्ताव वाले ‘राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) विधेयक-2019’ को मंजूरी दे दी थी. इसमें चिकित्सा क्षेत्र एवं चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र के नियमन के लिये भारतीय चिकित्सा परिषद की जगह एनएमसी के गठन का प्रस्ताव है.
वैसे तो इस विधेयक को लोकसभा की मंजूरी मिल गई है, लेकिन दो नए संशोधनों के कारण इसे अब फिर निचले सदन में भेजकर उसकी मंजूरी ली जाएगी. जब उनसे पूछा गया कि हड़ताल कब तक चलेगी तो फोर्डा के महासचिव अरोड़ा ने कहा कि प्रदर्शनकारी डॉक्टरों के साथ बैठक के बाद ही इस पर निर्णय लिया जाएगा.
दिल्ली के अस्पतालों में नियमित सेवाएं बाधित होने के कारण आकस्मिक योजनाएं लागू की गई हैं. अधिकारियों ने बताया कि नियमित ऑपरेशन रद्द कर दिए गए हैं और कई अस्पतालों में केवल आपात मामले ही देखे जा रहे हैं. एम्स आरडीए, फोर्डा और यूआरडीए ने संयुक्त बयान में कहा था कि इस विधेयक के प्रावधान कठोर हैं.
देश के डॉक्टरों एवं मेडिकल छात्रों को विधेयक के कई प्रावधानों पर आपत्ति है. आईएमए ने एनएमसी विधेयक की धारा 32(1), (2) और (3) को लेकर चिंता जताई है जिसमें एमबीबीएस डिग्री धारकों के अलावा गैर चिकित्सकीय लोगों या सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाताओं को लाइसेंस देने की बात की गई है.
इसके अलावा चिकित्सा छात्रों ने प्रस्तावित ‘नेक्स्ट’ परीक्षा का उसके मौजूदा प्रारूप में विरोध किया है. विधेयक की धारा 15(1) में छात्रों के प्रैक्टिस करने से पहले और स्नातकोत्तर चिकित्सकीय पाठ्यक्रमों में दाखिले आदि के लिए ‘नेक्स्ट’ की परीक्षा उत्तीर्ण करने का प्रस्ताव रखा गया है.
उन्होंने विधेयक की धारा 45 पर भी आपत्ति जताई है जिसमें उन्होंने दावा किया कि केंद्र सरकार के पास राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के सुझावों के विरुद्ध फैसला लेने की शक्ति होगी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)