लगभग 11.8 लाख आदिवासियों और वनवासियों को वन भूमि से बेदखल करने के मामले की सुनवाई करते समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नौ राज्यों ने आदिवासियों के दावे ख़ारिज करते समय तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 11 लाख से अधिक आदिवासियों और जंगल में रहने वाले अन्य लोगों को वन भूमि से बेदखली मामले में राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों से नाराजगी जताई.
न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि नौ राज्यों ने वन भूमि पर आदिवासियों के दावों को खारिज करते समय तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया. लगभग 11.8 लाख कथित अवैध वनवासियों को बेदखल करने से जुड़ा यह मामला महत्वपूर्ण है.
जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने आदिवासियों के दावे अस्वीकार करने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया के बारे में विवरण के साथ हलफनामा दाखिल नहीं करने वाले कई राज्यों को को निर्देश दिया कि वे 6 सितंबर तक आदिवासियों के दावे खारिज करने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया के विवरण के साथ हलफनामा दायर करें.
पीठ ने कहा, ‘नौ राज्यों ने कहा है कि उन्होंने प्रक्रिया का पालन नहीं किया है. हम पहले इन पर विचार करेंगे. यह महत्वपूर्ण मामला है.’ पीठ ने इसके साथ ही इस मामले को 12 सितंबर के लिए सूचीबद्ध कर दिया.
इस मामले की सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने इस मामले में पहले पारित किए गए आदेशों का जिक्र किया और कहा कि शीर्ष अदालत ने भारत के वन सर्वेक्षण विभाग को उपग्रह से सर्वे करके अतिक्रमण की स्थिति को सामने रखे.
अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल एएनएस नाडकर्णी ने कहा कि वन सर्वेक्षण विभाग को अभी तक सिर्फ चार राज्यों से ऐसा विवरण प्राप्त हुआ है.
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि कुछ राज्यों ने अभी तक हलफनामा दाखिल नहीं किया है, जिसमें आदिवासियों के दावों को खारिज करने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया भी शामिल है.
पीठ ने कहा कि वन भूमि पर वनवासियों के दावों के मामलों के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के बारे में वह विस्तार से सुनवाई करेगा.
पीठ ने कहा कि प्रत्येक राज्य से जानकारी प्राप्त की जाए क्योंकि हम अगले महीने सुनवाई शुरू करने से पहले अपने सामने इस मामले में स्पष्ट तस्वीर रखना चाहते हैं.
एनडीटीवी खबर के मुताबिक अदालत ने कहा, ‘हमने मीडिया के जरिए जाना कि नौ राज्यों ने दावों की जांच करने की प्रक्रिया का पालन नहीं किया. जब चुनाव थे तो सभी को वनवासियों की चिंता थी. कोर्ट ने केंद्र से कहा कि पहले सो रहे थे और अब अंतिम अवस्था में जाग गए हैं.’
दैनिक भास्कर के मुताबिक झारखंड समेत कई राज्यों ने खारिज किए गए दावों के विवरण का हलफनामा शीर्ष कोर्ट में दायर किया है. हालांकि मंगलवार की सुनवाई के दौरान ये स्पष्ट नहीं हुआ कि वे नौ राज्य कौन से हैं, जिन्होंने तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया.
झारखंड में अब तक वन अधिकार अधिनियम-2006 के तहत वन पट्टा के लिए अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के कुल 1,07,187 आवेदन आए. इनमें से 27,809 आवेदन रद्द हुए हैं. यानी 79,378 जनजातीय लोगों को वन पट्टा जारी हुआ है. वहीं, गैर आदिवासियों के कुल 3569 आवेदन में से 298 रद्द किए गए हैं. हलफनामा के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी झारखंड सरकार ने दी है.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 28 फरवरी को केंद्र सरकार के अनुरोध पर 13 फरवरी के अपने उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें उसने देश के करीब 21 राज्यों के 11.8 लाख से अधिक आदिवासियों और जंगल में रहने वाले अन्य लोगों को जंगल की जमीन से बेदखल करने का आदेश दिया था.
दरअसल, ये लोग अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) कानून, 2006 के तहत वनवासी के रूप में अपने दावे को साबित नहीं कर पाए थे.
अदालत ने राज्यों को निर्देश दिया था कि वे वन अधिकार अधिनियम के तहत खारिज किए गए दावों के लिए अपनाई गई प्रक्रिया और आदेशों को पास करने वाले अधिकारियों की जानकारी दें. इसके साथ ही यह जानकारी भी मांगी थी कि क्या अधिनियम के तहत राज्य स्तरीय निगरानी समिति ने प्रक्रिया की निगरानी की.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)