पाकिस्तान द्वारा अनुच्छेद 370 में हुए बदलावों के बाद भारत के साथ राजनयिक संबंध घटाने पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत का संविधान हमेशा से संप्रभु मामला रहा है और आगे भी रहेगा, पाकिस्तान को अपने कदमों की समीक्षा करनी चाहिए.
नई दिल्ली: विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान की ओर से भारत के राजनयिक स्तर में कटौती करने सहित अन्य कदमों को दुनिया के सामने द्विपक्षीय संबंधों की चिंताजनक तस्वीर पेश करने का प्रयास करार दिया.
साथ ही मंत्रालय ने कहा कि अनुच्छेद 370 से जुड़ा, हाल का संपूर्ण घटनाक्रम पूरी तरह से भारत का आतंरिक मामला है.
विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि भारत का संविधान हमेशा से संप्रभु मामला रहा है और आगे भी रहेगा. इस अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप कर क्षेत्र की चिंताजनक तस्वीर पेश करने की चाल कभी सफल नहीं होगी.
मंत्रालय ने कहा, ‘भारत सरकार कल पाकिस्तान द्वारा घोषित कदमों की निंदा करती है और उस देश से इसकी समीक्षा करने को कहती है ताकि सामान्य राजनयिक चैनल को बनाये रखा जा सके.’
विदेश मंत्रालय ने कहा कि हमने उन खबरों को देखा है जिनमें कहा गया है कि पाकिस्तान ने भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को लेकर कुछ एकतरफा फैसला किया है. इसमें हमारे राजनयिक संबंधों के स्तर में कटौती करना शामिल है.
मंत्रालय ने कहा कि पाकिस्तान की ओर से उठाए गए इन कदमों का मकसद स्पष्ट रूप से दुनिया के सामने हमारे द्विपक्षीय संबंधों के लेकर चिंताजनक तस्वीर पेश करना है. पाकिस्तान ने जो कारण बताए हैं, वे जमीनी हकीकत के साथ मेल नहीं खाते.
विदेश मंत्रालय ने कहा कि सरकार और देश की संसद द्वारा हाल में लिए गए फैसले जम्मू कश्मीर में विकास के लिए अवसर सृजित करने की प्रतिबद्धता से जुड़े हैं जिनमें पहले संविधान का एक अस्थायी प्रावधान आड़े आ रहा था.
बयान में कहा गया है कि इस फैसले के मद्देनजर लैंगिक, सामाजिक, आर्थिक भेदभाव को दूर किया जा सकेगा और जम्मू कश्मीर के सभी लोगों की आजीविका की संभावनाओं को बेहतर बनाया जा सकेगा.
मंत्रालय ने कहा कि इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि जम्मू कश्मीर से जुड़े ऐसे घटनाक्रम को पाकिस्तान में नकारात्मक नजरिये से देखा जाता है और इन भावनाओं का इस्तेमाल सीमापार से जारी आतंकवाद को उचित ठहराने के लिये किया जाता है.
गौरतलब है कि भारत के साथ द्विपक्षीय राजनयिक संबंधों को कमतर करने का फैसला करने के कुछ ही देर बाद बुधवार को पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे को लेकर भारतीय उच्चायुक्त अजय बिसारिया को निष्कासित कर दिया था.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा था कि हम भारतीय राजदूत को वापस भेज रहे हैं और अपने राजदूत को दिल्ली से वापस बुलाएंगे. साथ ही एक सरकारी बयान में कहा गया था कि पाक भारत के साथ राजनयिक संबंधों में बढ़ती कड़वाहट के बीच द्विपक्षीय व्यापार पर रोक लगाएगा.
पाकिस्तान ने यह कदम प्रधानमंत्री इमरान खान की अध्यक्षता में हुई राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (एनएससी) की बैठक के बाद उठाया है, जिसमें भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों को तोड़ने और ‘द्विपक्षीय संबंधों’ की समीक्षा का भी फैसला लिया गया था.
गौरतलब है कि भारत सरकार ने इस हफ्ते जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू कश्मीर और लद्दाख- के रूप में विभाजित करने का भी फैसला किया है. साथ ही जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को भी ख़त्म किया है.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत के इस निर्णय के बाद मंगलवार को संसद की संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए कहा था कि जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने पर पुलवामा जैसा हमला दोबारा हो सकता है.
अमेरिकी सांसदों ने पाकिस्तान से भारत के खिलाफ बदले की किसी कार्रवाई से बचने का आग्रह
वाशिंगटन: अमेरिका के दो प्रभावशाली डेमोक्रेटिक सांसदों ने पाकिस्तान से भारत के खिलाफ ‘बदले की कोई भी कार्रवाई’ करने से बचने और अपने देश में आतंकवादी समूहों के खिलाफ ‘ठोस कार्रवाई’ करने का अनुरोध किया है.
सीनेटर रॉबर्ट मेनेंदेज और कांग्रेस सदस्य इलियट एंजेल ने बुधवार को एक संयुक्त बयान में जम्मू कश्मीर में पाबंदियों पर चिंता भी जताई. मेनेंदेज सीनेट की विदेश संबंधों की समिति के शीर्ष सदस्य हैं जबकि एजेंल सदन की विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष हैं.
उन्होंने बयान में कहा, ‘पाकिस्तान को नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ कराने में मदद समेत किसी भी तरह की बदले की कार्रवाई से बचना चाहिए और पाकिस्तान की सरजमीं पर आतंकवादी ढांचे के खिलाफ ठोस कार्रवाई करनी चाहिए.’
जम्मू कश्मीर में नजरबंदी और प्रतिबंधों पर चिंता जताते हुए सांसदों ने कहा कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते भारत के पास अपने सभी नागरिकों को विधानसभा की आजादी, सूचना तक पहुंच और कानून के तहत समान संरक्षण समेत समान अधिकारों की रक्षा करना तथा उनका प्रचार करने की महत्ता को दिखाने का अवसर है.
उन्होंने कहा, ‘पारदर्शिता और राजनीतिक भागीदारी प्रतिनिधि लोकतंत्रों की आधारशिला हैं और हम उम्मीद करते हैं कि भारत सरकार जम्मू कश्मीर में इन सिद्धांतों का पालन करेगी.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)