एक ओर कमलनाथ सरकार विधानसभा चुनावों से पहले जारी किए अपने ‘वचन-पत्र’ को ही सरकार चलाने का रोडमैप और वचनों के पूरे होने के दावे कर रही है, तो दूसरी ओर उन वचनों से सरोकार रखने वाले वर्ग अब सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलने लगे हैं.
मध्य प्रदेश में बीते वर्ष कांग्रेस 15 सालों बाद सत्ता में वापस आई थी तो उसका एक बड़ा कारण विधानसभा चुनावों से पहले उसके द्वारा जारी किया गया वह ‘वचन-पत्र’ भी था जिसमें प्रदेश के लगभग सभी तबकों की मांगों, जरूरतों और समस्याओं के समाधान के संबंध में विभिन्न वचन दिए गए थे.
973 बिंदुओं वाले 112 पृष्ठीय इस दस्तावेज में किसान क़र्ज़ माफी तो मुख्य वचन था ही, साथ ही साथ प्रदेश की पूर्व भाजपा सरकार के घपलों-घोटालों की जांच, रोजगार, बेरोजगारी भत्ता, आदिवासी, वकील, पत्रकार, सरकारी कर्मचारियों के हितों की पूर्ति, हर पंचायत में गोशाला आदि जैसे अनेकों वचनों की भरमार थी.
सरकार गठन के तुरंत बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उक्त वचन-पत्र के प्रति प्रतिबद्धता जताते हुए किसान क़र्ज़ माफी की घोषणा भी कर दी.
उसके बाद मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक और पार्टी नेताओं ने विभिन्न मंचों से दावे किए कि सरकार अपने वचन-पत्र को ध्यान में रखकर ही काम करेगी. इसका एक कारण यह था कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार पर हमेशा घोषणावीर होने के आरोप लगते थे कि वे घोषणाएं तो करते हैं पर पूरी नहीं होतीं.
इसलिए मई में प्रस्तावित लोकसभा चुनावों से पहले कमलनाथ सरकार ने प्रयास किए कि वे जनता को संदेश दे सके कि कांग्रेस सरकार सिर्फ कहती ही नहीं, करके भी दिखाती है.
नतीजतन, चुनावी आचार संहिता लगने से पहले मुख्यमंत्री की ओर से विभिन्न विभागों को वचन-पत्र के मुताबिक काम करने के आदेश दिए.
करीब दो लाख करोड़ के कर्ज में डूबे प्रदेश के अफसर-अधिकारियों और मंत्रियों से उन वचनों की सूची बनवाई गई जिन्हें पूरा करने में सरकारी खजाने पर अधिक बोझ न पड़े.
लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगने से पहले पार्टी के दावेनुसार उसने 83 वचन पूरे कर दिए थे. हालांकि, सरकार के इन दावों पर विपक्षी भाजपा की ओर से लगातार सवाल उठाए जाते रहे.
जिस किसान क़र्ज़ माफी को पार्टी अपना तुरुप का इक्का मानकर चल रही थी, उसी क़र्ज़ माफी के वचन को पूरा न करने को भाजपा ने चुनावी मुद्दा बनाया.
जमीन पर कांग्रेस के दावों का असर होता नहीं दिखा. जबकि भाजपा की कैंपेन काम कर गई. कांग्रेस को प्रदेश के राजनीतिक इतिहास की लोकसभा चुनावों की सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा.
चुनावी हार के बाद भी कमलनाथ और उनके मंत्री-विधायकों का स्पष्ट कहना है कि वचन-पत्र ही उनका सरकार चलाने का रोडमैप है और पार्टी अपने सभी वादे पूरे करने की दिशा में काम कर रही है.
लेकिन, जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी कहती है. एक ओर सरकार वचन-पत्र को ही सरकार चलाने का रोडमैप और वचनों के पूरे होने के दावे कर रही है तो दूसरी ओर उन वचनों से सरोकार रखने वाले वर्ग अब सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने लगे हैं.
पिछले एक महीने से प्रदेश के वकील एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट लाने के वचन को पूरा करने की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं. दस दिनों में होने वाली किसानों की क़र्ज़ माफी अब तक हुई नहीं है, साथ ही मंदसौर गोलीकांड में किसानों पर लगे आपराधिक मुकदमे वापस न होने के चलते किसान और किसान नेता आक्रोशित हैं.
व्यापमं सहित अन्य घोटालों में जन आयोग का गठन भी नहीं हुआ है जिससे मामले के व्हिसल ब्लोअर्स ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है. गोशाला निर्माण के लिए सरकार फंड नहीं जुटा पा रही है. तो वहीं, बेरोजगारी भत्ता देने की बात से मुकर गई है.
सरकारी बाबुओं को शिक्षकों के समान ग्रेड पे देने का भी वादा था. जिसके चलते बाबू वर्ग प्रदर्शन कर रहा है. पुलिसकर्मियों का साप्ताहिक अवकाश भी कागजों में धूल खा रहा है. बात तो मादक पदार्थ मुक्त प्रदेश बनाने की थी, लेकिन अब राजस्व प्राप्ति के लिए शराब बेचा जाना आसान बनाया जा रहा है.
अध्यापक शिक्षा विभाग में संविलियन तो संविदाकर्मी नियमित पदों पर नियुक्ति वाले वचनों को पूरा करवाने को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं. तो बिजली विभाग के आउटसोर्स कर्मचारियों के अपनी मांगों के समर्थन में प्रदर्शन करने पर सरकार द्वारा लाठियां बरसाईं जा रही हैं.
इसलिए कह सकते हैं कि कमलनाथ सरकार के लिए सत्ता दिलाने वाला वरदान ‘वचन-पत्र’ ही अब अभिशाप बनता जा रहा है, गले में फंसी एक ऐसी हड्डी बन गया है जिसे न तो उगला जा सके और न ही निगला.
हालांकि, प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता रवि सक्सेना का मानना है कि सरकार बदलने के बाद से प्रदेश में खुशहाली का माहौल है और कहीं कोई प्रदर्शन नहीं हो रहा है.
वे कहते हैं, ‘यह बात झूठ है कि प्रदेश में प्रदर्शन हो रहे हैं. हमने जो वादे किए थे, उनमें से करीब 92 वादे पूरे कर दिए हैं. यह हमारी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है क्योंकि लोकसभा चुनाव आचार संहिता के चलते हमें मात्र तीन से चार महीने काम करने मिले हैं.’
रवि के दावों को प्रदेश भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल सिरे से खारिज करते हुए कहते हैं, ‘वचन पूरे करने का मतलब है कि वचन-पत्र में जैसा लिखा था, वैसा कर दिया हो. आदेश जारी कर देने मात्र से तो वचन पूरा होता नहीं है. उन्होंने कहा था कि दो लाख रुपये तक का किसानों का कर्ज दस दिन के भीतर माफ कर देंगे. लेकिन सरकार में आने के बाद कर्ज़ का वर्गीकरण करने लगे कि इसका माफ करेंगे, इसका नहीं. इसका अब करेंगे, इसका बाद में.’
वे कहते हैं, ‘किसानों का माफ करने योग्य कर्ज इनके मुताबिक ही करीब 50,000 करोड़ का है. बजट में इन्होंने 8,000 करोड़ का प्रावधान किया है. अब बताइए कि वचन कैसे पूरा हुआ?’
कर्ज़ माफी के वचन पर किसान नेता और राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शिवकुमार शर्मा (कक्का जी) द वायर से बातचीत में कहते हैं, ‘वचन-पत्र में सरकार ने जो कहा है, उस पर उसे जितना आगे बढ़ना था, अभी तक बढ़ नहीं पाई है. कर्ज़ माफी के मुद्दे को लेकर बहुत आंशिक काम हुआ है. सिर्फ 8000 करोड़ का प्रावधान रखा है. उससे काम नहीं चलेगा.’
कांग्रेस चाहे जितने भी दावे करे लेकिन यह बात सही है कि कर्ज़ माफी की प्रक्रिया काफी धीमी चल रही है. किसानों को बैंकों से नोटिस मिल रहे हैं. जिसके विरोध में बीते मई माह में भारतीय किसान यूनियन ने प्रदेश सरकार के खिलाफ प्रदर्शन का भी ऐलान किया था. जिस पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने यूनियन के नेताओं से मिलकर आश्वासन दिया था कि जल्द ही किसानों के कर्ज माफ होंगे और उन्हें बैंकों से नोटिस भी नहीं मिलेंगे.
कर्ज़माफी के वर्तमान हालात यह हैं कि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अब तक सरकार केवल 50,000 हजार रुपये तक के कर्ज़ वाले किसानों का कर्ज़ माफ कर पाई है. हाल ही में आदेश जारी हुए हैं कि अब एक लाख कर्ज सीमा वाले किसानों का कर्ज़ माफ होगा.
वहीं, मध्य प्रदेश तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के महासचिव लक्ष्मीकांत शर्मा बताते हैं, ‘सरकारी विभागों में कार्यरत कर्मचारी अलग-अलग टुकड़ों में प्रदर्शन कर रहे हैं. क्योंकि विधानसभा चुनावों से पहले मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष की हैसियत से कर्मचारी संगठनों के साथ एक बैठक करके हमारी मांगें सुनी थीं जिनका अपने वचन-पत्र में समावेश किया था. जब वे मुख्यमंत्री बने तो लगातार बयान दिए कि वचन-पत्र का हर वादा पूरा करेंगे. लेकिन अब सरकार को आठ महीने हो गये हैं, पर कुछ नहीं हुआ है. हमने सरकार को अल्टीमेटम भी दिए थे, जिसके बाद प्रदर्शन का दौर शुरू किया है.’
जिन वचनों को लेकर कर्मचारियों में रोष है उन पर बात करते हुए लक्ष्मीकांत कहते हैं, ‘लिपिकों को अन्य राज्यों की तुलना में बहुत कम वेतन मिलता है. उनकी संख्या प्रदेश में 65,000 है. कांग्रेस ने वचन-पत्र में इन वेतन विसंगतियों को दूर करने की बात कही थी.
वहीं, संविदाकर्मियों को लेकर पिछली सरकार ने एक नीति तय की थी. कांग्रेस ने भी वचन-पत्र में लगभग वही चीजें शामिल कीं. साथ ही संविदाकर्मियों की रिक्त पदों पर भी नियमित नियुक्ति का वचन था. कुछ नतीजा न निकलते देख हमें प्रदर्शन का रास्ता अपनाना पड़ा.’
प्रदर्शन तो पिछले दिनों भोपाल में बिजली विभाग के आउटसोर्स कर्मियों ने भी किया था. प्रदेश भर के करीब 15 हजार कर्मचारी राजधानी में जुटे थे. जिन पर कि पुलिस ने लाठियां बरसाईं.
इसके बचाव में रवि सक्सेना कहते हैं, ‘आउटसोर्स कर्मचारी बिजली विभाग द्वारा ठेके पर रखे गये वे कर्मचारी हैं जिनकी सारी जिम्मेदारी ठेकेदारों की है. वे सरकारी मुलाजिम नहीं हैं. अब वे चाहते हैं कि हम उन्हें अपना मुलाजिम बना लें. यह तो संभव नहीं है. उनकी मांगें गैरवाजिब हैं. सवाल ये भी है कि वे किस प्रक्रिया के तहत किसकी सिफारिश से आने वाले कौन लोग हैं? आरएसएस के लोग हैं या भाजपा के कार्यकर्ता हैं?’
उनके इस स्पष्टीकरण पर रजनीश सवाल उठाते हुए कहते हैं, ‘वे अब आउटसोर्सिंग की परिभाषा बता रहे हैं, कर्मचारियों का राजनीतिक वर्गीकरण कर रहे हैं. लेकिन पहले उन्होंने ही अपने वचन-पत्र में कहा लिखा था कि आउटसोर्स कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखकर 60 दिन में कमेटी बनाएंगे जो उनकी समस्याओं को सुलझाने का काम करेगी और खाली पद भरेगी. अब वे बताएं कि आज कितने दिन हो गए?’
आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे विधानसभा चुनावों तक कांग्रेस की आरटीआई सेल के प्रदेश अध्यक्ष थे. पार्टी का वचन-पत्र बनाने की प्रक्रिया से वे सक्रियता से जुड़े रहे थे. लेकिन सरकार में आने के बाद पार्टी द्वारा अपनाई गईं गलत नीति-रीतियों के विरोध में उन्होंने पार्टी से किनारा कर लिया.
वे बताते हैं, ‘इन्होंने वचन-पत्र के साथ-साथ पिछली सरकार के 15 साल के शासन के भ्रष्टाचार और अव्यवस्थाओं पर एक आरोप-पत्र भी जारी किया था. जिसके तहत वचन दिया था कि जनआयोग बनाकर भाजपा के 15 सालों के घोटालों की जांच कराएंगे. लेकिन जब से सत्ता संभाली है, जनआयोग का ‘ज’ भी नहीं बोला है.’
व्यापमं घोटाले का पर्दाफाश करने वाले व्हिसल ब्लोअर आनंद राय भी कांग्रेस की वचन-पत्र तैयार करने की प्रक्रिया का हिस्सा रहे थे. घोटालों, भ्रष्टाचार पर कांग्रेस के रुख और जनआयोग के वचन को लेकर कांग्रेस से वे भी खफा हैं.
वे कहते हैं, ‘सरकार को यह समझ नहीं आ रहा कि प्रदेश में हमने सत्ता इसलिए बदली थी कि आप कुछ नया करते. अगर पिछली सरकार के भ्रष्ट नौकरशाहों से ही आपको प्रदेश चलवाना है तो सवाल उठता है कि हमने क्यों सत्ता परिवर्तन के लिए जोर लगाया था?’
वचन-पत्र पर सरकार की प्रतिबद्धता को लेकर अब पार्टी के अंदर से भी विरोध के स्वर फूटने लगे हैं. मनावर से पार्टी विधायक और जयस (जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन) संरक्षक हीरालाल अलावा भी आदिवासी समुदाय संबंधित वचनों पर सरकार के सुस्त रवैये से खफा हैं.
वे कहते हैं, ‘वचन-पत्र में आदिवासियों से संबंधित कई वचन थे जिनमें अनुसूचित क्षेत्रों में पांचवी अनुसूची, पेसा कानून लागू करने और आदिवासियों को वनाधिकार पट्टे देने के वचन सबसे प्रमुख थे. लेकिन अब तक इस पर कोई काम शुरू नहीं किया है. यहां तक कि ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल (टीएसी) तक का गठन नहीं किया गया है जो राज्यपाल और राष्ट्रपति को आदिवासी क्षेत्रों की जरूरत के हिसाब से योजनाओं पर अमल करने की सलाह देती है. नतीजतन आदिवासी क्षेत्रों की खदानें निजी कंपनियों को दी जा रही हैं.’
वे आगे कहते हैं, ‘बात तो आदिवासियों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार देने की भी थी ताकि उनका पलायन रुके. लेकिन वह भी नहीं हुआ. हाल ही में झाबुआ के आठ आदिवासी मजदूरों की गुजरात में मौत हुई है. मैं इन सभी मांगों पर मुख्यमंत्री जी को तीन-चार बार पत्र लिख चुका हूं लेकिन अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
अजय दुबे का कहना है, ‘सरकारी खजाने खाली हैं इसलिए मुझे नहीं लगता कि वचन-पत्र पर सरकार आगे भी खरी उतर पाएगी. वहीं, बिजली विभाग के कर्मचारियों को मार-पीटकर सरकार ने यह भी साबित कर दिया है कि चुनावी घोषणाएं वोट बटोरने वाली राजनीतिक घोषणाएं होती हैं बस.’
खाली खजाने की बात बिल्कुल सही है. प्रदेश सरकार भी इसे स्वीकारती है. हाल ही में उसने सरकारी रिजर्व फंड खर्च करने के नियमों में बदलाव किया है ताकि वचनों के बोझ तले दबी सरकार आर्थिक तंगहाली से निपट सके.
सरकार गठन से अब तक आठ माह में बाजार से साढ़े 12 हजार करोड़ का कर्ज भी उठाया है. वहीं, शराब बिक्री आसान करना, पेट्रोल-डीजल पर अतिरिक्त कर लगाने जैसे अनेकों प्रयास किए जा रहे हैं जिससे कि राजस्व में वृद्धि की जा सके.
लेकिन प्रदेश में सत्ता वापसी की छटपटाहट में पार्टी ने ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं छोड़ा था कि जिससे संबंधित घोषणाएं वचन-पत्र में शामिल न की हों. इसलिए जब वह राजस्व वृद्धि के लिए शराब की बिक्री को आसान बनाने और पेट्रोल-डीजल पर अतिरिक्त कर लगाने का फैसला करती है तो ‘मादक पदार्थ मुक्त प्रदेश’ बनाने और ‘पेट्रोल-डीजल एवं रसोई गैस पर करों में छूट देने’ संबंधी अपने ही दो वचनों को भंग कर देती है.
हालात यह हैं कि देश भर में हिंदुत्ववादी ‘गो राजनीति’ के उफान के चलते हर पंचायत में गोशाला निर्माण की बात तो कर दी. लेकिन अब खाली खजाना देखकर इस वचन को पूरा करने के लिए सरकार निजी कंपनियों के सामने हाथ फैला रही है.
वहीं, पिछले दिनों विभिन्न कर्मचारी संगठनों के साथ मुलाकात में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने खस्ता आर्थिक हालातों का हवाला देते हुए कर्मचारियों से कहा कि सरकारी खजाना खाली है, इसलिए गैर आर्थिक वचनों को पूरा करने में हमें कोई परेशानी नहीं है.
उन्होंने सरकार की ओर से कर्मचारियों को लिखित बांड देने का विचार तक जाहिर किया जो वचन पूरा करने के संबंध में गारंटी होगा. लेकिन, देखा जाए तो गैर आर्थिक वचनों को लेकर भी सरकार का रुख अब तक उदासीन ही रहा है.
प्रदेश भर के वकील महीने भर से अधिक समय से एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट लाने का वचन पूरा करवाने के लिए आंदोलनरत हैं. प्रदेश बार काउंसिल के सदस्य मनीष दत्त कहते हैं, ‘सरकार बस आश्वासन दे रही है लेकिन नजीते नहीं दिख रहे हैं.’ इस दरमियान अभिभाषक वर्ग विरोध का लगभग हर पैंतरा आजमा चुका है.
इसी तरह पिछली सरकार के घोटालों पर जनआयोग बनाना, मंदसौर गोलीकांड में किसानों पर दर्ज आपराधिक मुकदमे वापस लेना जैसे अनेकों गैर आर्थिक वचनों पर भी सरकार कोई फैसला नहीं ले पा रही है. पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश देने की फाइल तो पास हो गई लेकिन बल की कमी इसकी राह में रोड़ा बन गई है.
कक्का जी कहते हैं, ‘मंदसौर किसान आंदोलन के मामले में अब फैसले की तारीखें लगने लगी हैं. सरकार को तेजी से किसानों पर दर्ज आपराधिक मामलों को वापस लेने की दिशा में काम करना चाहिए, पर वह कर नहीं रही. गृहमंत्री बाला बच्चन और विधि मंत्री पीसी शर्मा की दो सदस्यीय कमेटी जरूरी बनाई थी, लेकिन कोई वांछित कार्रवाई नहीं हुई है.’
लक्ष्मीकांत शर्मा कहते हैं, ‘सरकार ने वचन-पत्र संबंधी मांगों से निजात पाने के लिए एक नया फॉर्मूला ईजाद कर लिया है. जब भी कोई मुद्दा जोर पकड़ता है, वह उस पर एक कमेटी गठित करने की घोषणा कर देती है. पर सच तो यह है कि कमेटी गठन की यह प्रक्रिया वह बीच का रास्ता है जिसके सहारे सरकार हितधारकों को यह संदेश देकर टाल देती है कि उसने मांगों के संबंध में कदम आगे बढ़ाए हैं. पर वास्तव में होता कुछ नहीं है.’
स्पष्ट है कि इससे सरकार की नीयत पर भी संदेह होता है और संदेह तब और मजबूत हो जाता है जब स्वयं मुख्यमंत्री विधानसभा में अपनी ही पार्टी के विधायक द्वारा पूछे गये प्रश्न के जवाब में बेरोजगारी भत्ता देने की बात से मुकर जाते हैं.
सरकार के आर्थिक हालातों पर अजय दुबे कहते हैं, ‘विधानसभा चुनाव पूर्व इन्होंने एक बड़ी बात की थी कि सरकार में आने पर प्रदेश की आर्थिक स्थिति पर श्वेत-पत्र जारी करेंगे. लेकिन अब यह खाली खजाने पर रोते जरूर हैं कि पैसा नहीं है. पर श्वेत-पत्र पर मौन हैं.’
रवि सक्सेना सरकार के बचाव में दावे करते हैं, ‘27 फीसदी ओबीसी आरक्षण हमने दे दिया है. 41 हजार अध्यापक ट्रांसफर चाहते थे, 20000 के हमने कर दिए हैं. 20 लाख किसानों का कर्ज माफ किया है. बुजुर्गों की पेंशन 300 से बढ़ाकर 600 रुपये यानी दोगुनी कर दी है. नवंबर में इन्वेस्टर्स मीट है, जिससे उद्योग आने की संभावनाएं हैं जिनमें 70 फीसद स्थानीय युवाओं को रोजगार देने का प्रावधान हमने किया है. खाली खजाने के चलते मौजूदा संसाधनों से हम जितना कर सकते हैं, कर रहे हैं. हमारी नीयत, नीति और दिशा खराब नहीं है.’
सरकार की नीयत खराब न होने की बात से अजय दुबे और आनंद राय इत्तेफाक नहीं रखते. आनंद राय कहते हैं, ‘सरकार ने चुनावों के हिसाब से प्राथमिकताएं तय की हैं जिनसे वोट बैंक पर असर पड़ता हो. पहले लोकसभा चुनाव थे और अब निकाय चुनाव हैं. वोट के लिए किसान जरूरी है तो कर्ज माफी प्राथमिकता में रखी. सारा तंत्र वहीं झोंक दिया. आदिवासी और ओबीसी वर्ग को रिझाना जरूरी है तो बिना तैयारी के आदिवासियों द्वारा साहूकारों से लिया कर्ज माफ करने की घोषणा कर दी तथा ओबीसी को 27 फीसद आरक्षण दे दिया.’
वे आगे कहते हैं, ‘जहां तक भ्रष्टाचार और जनआयोग बनाने का मुद्दा है तो सरकार को अब तक नहीं लगता कि भ्रष्टाचार को हमें मुद्दा बनाना चाहिए. गुड गवर्नेंस के लिए कदम नहीं उठाए गए हैं. यह सब उनकी प्राथमिकता में नहीं है. व्यापमं घोटाले के संबंध में हमने विधानसभा में भी सवाल लगवाए, पर वहां गृहमंत्री ने आश्वासन दे दिया कि जांच शुरू कर रहे हैं. लेकिन अब तक कोई जांच शुरू नहीं हुई.’
अजय दुबे सरकार की नीयत को कटघरे में खड़ा करते हुए कहते हैं, ‘कांग्रेस के आरोपों के मुताबिक, भाजपा सरकार में अरबों-अरबों रुपये के कई घोटाले हुए. लेकिन सरकार में आकर उन घोटालों में लिप्त अधिकारियों को ही कांग्रेस उपकृत कर रही है. नवकरणीय ऊर्जा विभाग में इन्होंने बड़ा घोटाला अपने वचन और आरोप-पत्र में बताया था. उस घोटाले को लेकर जो अधिकारी मनु श्रीवास्तव कटघरे में खड़े हैं, उन्हें ही फिर से विभाग में बैठा दिया. एक अन्य अधिकारी मोहम्मद सुलेमान को पदोन्नत करके ऊर्जा विभाग में अपर मुख्य सचिव बना दिया जबकि इन्हीं के कार्यकाल के घोटाले पार्टी ने पहले उजागर किए थे.’
वे आगे और भी उदाहरण देते हैं, ‘इनका मुख्य सचिव भ्रष्टाचार की जांच झेल रहा है. वहीं, ई-टेंडर घोटाले में जिन बीपी सिंह की भूमिका संदिग्ध है उन्हें नियमों को ताक पर रखकर राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाया गया है. कहने का मतलब है कि आईएएस वर्ग जो एक सरकार की रीढ़ की हड्डी होता है. वहां वर्तमान सरकार ने ऐसे दागियों को बैठा दिया है जिन्होंने 15 सालों तक जनता का शोषण किया और अपने भ्रष्टाचार से कांग्रेस के ही आरोप-पत्र के हर बिंदु को सुसज्जित किया.’
अंत मे वे कहते हैं, ‘पिछले महीने से हर माध्यम, अखबार से लेकर सड़कों तक, में कमलनाथ विज्ञापनों में छाए हुए हैं. सरकार गठन के समय विज्ञापन के दिखावे से तौबा करने वाले कमलनाथ में अचानक यह परिवर्तन साबित करता है कि सरकार ने जनता के बीच कार्यों को लेकर कमी बरती है. इसलिए उसकी भरपाई पैसे से कमलनाथ का चेहरा लोकप्रिय बनाकर की जा रही है.’
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)