ऐसा लग रहा है सरकार ख़ुद जाति के आधार पर विभाजन को बढ़ावा दे रही है: मद्रास हाईकोर्ट

तमिलनाडु के वेल्लोर ज़िले में दलितों के एक श्मशान घाट तक जाने वाले रास्ते को बाधित किए जाने के मामले का हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है. रास्ता बाधित किए जाने से समुदाय के लोग अपने संबंधियों के शव को एक नदी पर स्थित पुल से नीचे गिराने के लिए मजबूर हैं.

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मद्रास हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक/@Chennaiungalkaiyil)

तमिलनाडु के वेल्लोर ज़िले में दलितों के एक श्मशान घाट तक जाने वाले रास्ते को बाधित किए जाने के मामले का हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है. रास्ता बाधित किए जाने से समुदाय के लोग अपने संबंधियों के शव को एक नदी पर स्थित पुल से नीचे गिराने के लिए मजबूर हैं.

मद्रास हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक/@Chennaiungalkaiyil)
मद्रास हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक/@Chennaiungalkaiyil)

चेन्नईः मद्रास हाईकोर्ट ने दलितों के लिए अलग कब्रिस्तान आवंटित किए जाने की परंपरा की आलोचना करते हुए बीते सोमवार को कहा कि ऐसा लग रहा है कि सरकार खुद ही जाति के आधार पर विभाजन को बढ़ावा दे रही है.

तमिलनाडु के वेल्लोर जिले में दलितों के एक श्मशान घाट जाने वाले मार्ग को बाधित किए जाने के बाद अदालत ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया था.

गौरतलब है कि श्मशान घाट जाने वाले रास्ते को बाधित किए जाने के चलते समुदाय के सदस्य अपने सगे-संबंधियों के शव को एक नदी पर स्थित पुल से नीचे गिराने के लिए मजबूर हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि उच्च जाति के लोग कथित तौर पर उन्हें श्मशान घाट तक जाने का रास्ता नहीं दे रहे हैं. उस रास्ते पर कथित तौर अतिक्रमण किया गया है.

जस्टिस एस. मणिकुमार और जस्टिस सुब्रहमण्यम प्रसाद की पीठ ने अपनी मौखिक टिप्पणी में इस बात का जिक्र किया कि सभी लोग चाहे वे किसी भी जाति या धर्म के हों, उन्हें सभी सार्वजनिक स्थानों पर प्रवेश की इजाजत है.

हाईकोर्ट ने कहा कि ‘आदि द्रविड़ों’ (अनुसूचित जाति) को अलग कब्रिस्तान आवंटित कर सरकार खुद ही ऐसी परंपरा को बढ़ावा देती दिख रही है.

पीठ ने यह भी पूछा कि क्यों कुछ स्कूलों को आदि द्रविड़ों के लिए अलग स्कूल कहा जाना जारी है, जबकि राज्य सरकार ने सड़कों से जाति के नाम हटा दिए हैं.

इसके बाद अदालत ने वेल्लोर जिला कलेक्टर और वनियाम्बडी तहसीलदार को कब्रिस्तान के आसपास ग्रामीणों द्वारा इस्तेमाल की गई भूमि का ब्योरा सौंपने का निर्देश दिया.

खबरों के मुताबिक, चेन्नई से 213 किमी. पश्चिम की ओर वेल्लोर जिले के वनियाम्बडी कस्बे के पास स्थित नारायणपुरम गांव के दलित समुदाय के लोग अपने सगे-संबंधियों के शवों को नदी पर स्थित पुल से नीचे गिराने के लिए मजबूर हैं क्योंकि नदी तट पर स्थित कब्रिस्तान तक जाने का रास्ता दो लोगों के कथित अतिक्रमण के चलते बाधित हो गया है.

मद्रास हाईकोर्ट ने एक अंग्रेजी अखबार में इस बारे में एक खबर प्रकाशित होने पर पिछले हफ्ते इस मुद्दे का संज्ञान लिया.

पीठ ने पिछले हफ्ते तमिलनाडु के गृह सचिव, वेल्लोर जिला कलेक्टर और तहसीलदार को नोटिस जारी कर इस मुद्दे पर उनसे जवाब मांगे थे.

खबरों के मुताबिक, गांव के दलित बाशिंदे शवों को पिछले चार साल से पुल से नीचे नदी तट पर उतारते हैं.

हालांकि, दलितों का कहना है कि वे अन्य समुदायों से प्रत्यक्ष तौर पर जातीय भेदभाव या धमकियों का सामना नहीं कर रहे हैं. उन्होंने अतिक्रमण नहीं हटाने के लिए जिला प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया है.

गौरतलब है कि 17 अगस्त को तमिलनाडु में सवर्णों द्वारा दलितों को अपनी जमीन से गुजरने का रास्ता न देने के चलते दलितों को अपने परिजन के शव को 20 फीट ऊंचे पुल से नीचे गिराकर अंतिम संस्कार करना पड़ा था.

घटना वेल्लोर जिले के वनियमबाडी की थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)