हाशिमपुरा नरसंहार के समय जिन लोगों को पुलिस उठाकर ले गई थी, उनमें से कुछ ने अपनी आपबीती को नज़्म की शक्ल दी. इस ऑडियो में एक नज़्म है, जो जेल से लौटे नौजवानों ने लिखी थी.
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लगा दी आग मुसलमां के आशियाने में
लगा दी आग मुसलमां के आशियाने में
नमाज़-ए-अलविदा पढ़कर चुके थे घेर लिया
नमाज़-ए-अलविदा पढ़कर चुके थे घेर लिया
पकड़ के ले गए वो सबको सिविल थाने में
पकड़ के ले गए वो सबको सिविल थाने में
चलाई लाठियां सिर पे जो रोज़ेदारों के
चलाई लाठियां सिर पे जो रोज़ेदारों के
कुछ लोग मर गए वहीं जेलख़ाने में
कुछ लोग मर गए वहीं जेलख़ाने में
ज़मीं नहर की शहीदों के ख़ून से तर है
ज़मीं नहर की शहीदों के ख़ून से तर है
लुटा दी जान शहीदों की इस ज़माने में
लुटा दी जान शहीदों की इस ज़माने में’
जो जेल में थे न लड़के जो ज़मानत हो कर आए, उन्होंने ही जोड़ी थी यो. तो जैसे यहां जुम्मे का दिन था, अलविदा थी, रोज़े से थे सब, रमजान थे, नमाज़ पढ़ के आए और जब ही घेरा डल गया, जब ही घेर लिया सबने, फिर इन्हें पकड़ के ले गए सिविल थाने में, वहां उनसे मारपीट की. वहां दो-चार मर गए थे. ईद के दिन चार लाशें आई थीं हमारे पास, ईद का तोहफा. वहां मरे कुछ लोग जेलख़ाने में. तो जैसे इनके साथ, जो नक्शा इनके साथ गुजरा था, वैसे ही नज्म जोड़ी है इन्होंने ने जेल में पड़े-पड़ों ने.’
ये आवाज़ हाजिरा की है. हाजिरा के शौहर अब्दुल हामिद भी उन लोगों में थे, जिन्हें पुलिस ले गई थी. हामिद मिस्त्री का काम किया करते थे और पिछले साल उनका इंतक़ाल हो गया. हाजिरा याद करते हुए बताती हैं कि जब हामिद जेल से वापस लौटे तब उनके सिर पर एक खुला घाव था, जिसकी वजह से वे महीनों तक काम नहीं कर पाए थे. वे बताती हैं, ‘वो बहुत कमज़ोर हो गए थे, सही से बात नहीं कर पाते थे, हमें तो बाद में मालूम चला कि घाव का हाल इतना ख़राब था कि उनके सिर में कीड़े पड़ गए थे. हमारे पास इलाज के लिए पैसे भी नहीं थे. हम एक डॉक्टर के पास गए जो हमारे परिवार को जानता था मगर उसने इलाज करने से इनकार कर दिया. वो डॉक्टर किसी आदमी का इलाजनहीं कर रहा था जो जेल से वापस आया था.’
ख़राब सेहत के चलते बीते साल हामिद गुज़र गए. हाजिरा और उनके बच्चे कमीज़ों पर बटन टांककर और इस्त्री करके मामूली-सी कमाई पर गुज़ारा कर रहे हैं. उन्हें एक कमीज़ का एक रुपया मिलता है.