असम एनआरसी की अंतिम सूची में वर्तमान विधायक, पूर्व विधायक का भी नाम शामिल नहीं है.
गुवाहाटी: बीते शनिवार को असम में जारी की गई राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) की अंतिम सूची में जगह नहीं पाने वालों में करगिल युद्ध में भाग लेने वाले के एक पूर्व सैन्यकर्मी मोहम्मद सनाउल्लाह, एआईयूडीएफ के एक वर्तमान विधायक और पूर्व विधायक के नाम भी शामिल हैं.
यही हाल कांग्रेस विधायक इलियास अली की बेटी का भी है. हालांकि अली और उनके परिवार के अन्य सदस्यों के नाम इस अपडेटेड एनआरसी सूची में शामिल हैं.
करगिल युद्ध में भाग लेने वाले और सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी मोहम्मद सनाउल्लाह को इस सूची में जगह नहीं मिली है, जिन्हें विदेशी न्यायाधिकरण (फॉरेन ट्रिब्यूनल) द्वारा ‘विदेशी’ घोषित किए जाने के बाद इस वर्ष मई में कुछ दिनों तक हिरासत में रखा गया था.
Retired Army Officer Mohammad Sanaullah on his name missing from #NRCFinalList: I was not expecting my name to be in the list as my case is still pending in the High Court, I have full faith in the judiciary and I'm confident that I will get justice. #Assam pic.twitter.com/tdnxJoQbg3
— ANI (@ANI) August 31, 2019
इसके अलावा सनाउल्लाह की दो बेटियों और एक बेटे का नाम भी कथित तौर पर एनआरसी में शामिल नहीं किया गया है, जबकि उनकी पत्नी का नाम सूची में शामिल है.
एनआरसी की यह सूची असम में भारतीय नागरिकों को वैधता प्रदान करता है.
एआईयूडीएफ के विधायक अनंत कुमार मालो, जो बोंगईगांव जिले के अभयपुरी दक्षिण विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, ने कहा कि वह अंतिम एनआरसी सूची में अपना नाम नहीं खोज पाए. विधायक ने कहा, ‘मेरे बेटे का नाम भी एनआरसी की अंतिम सूची में नहीं है.’
एआईयूडीएफ के ही पूर्व विधायक अताउर रहमान मजरभुइयां का नाम भी इस सूची में शामिल नहीं है.
मजरभुइयां ने कहा, ‘संविधान यह निर्धारित करता है कि कौन भारत का नागरिक है और मेरे पास इसे साबित करने के लिए सभी आवश्यक दस्तावेज हैं. मैं कटिगोरा से दो बार विधायक रह चुका हूं. यह उत्पीड़न है और यह एनआरसी त्रुटिपूर्ण है.’
पूर्व विधायक ने कहा कि वह कानूनी विकल्प का मदद लेंगे और विदेशी न्यायाधिकरण में जाकर अपना नाम एनआरसी में शामिल करवाएंगे.
एनआरसी की अपडेटेड अंतिम सूची से 19 लाख से अधिक आवेदकों को बाहर रखा गया है, जिनका भविष्य अब अधर में लटक गया है.
यहां एनआरसी के राज्य समन्वयक कार्यालय के एक बयान में कहा गया कि एनआरसी में शामिल होने के लिए कुल 3,30,27,661 लोगों ने आवेदन किया था. उनमें से 3,11,21,004 लोगों को सूची में शामिल किया गया है, जबकि 19,06,657 लोगों का नाम सूची में शामिल नहीं किया गया है.
ममता ने एनआरसी की अंतिम सूची को एक विफलता बताया
वहीं एनआरसी में बड़ी संख्या में लोगों के नाम शामिल नहीं किए जाने की वजह से विपक्ष इस समय भाजपा पर हमलावर है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एनआरसी को एक विफलता बताया और कहा कि इसने उन सभी को उजागर कर दिया है जो इसे लेकर राजनीतिक लाभ हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं.
बनर्जी ने बड़ी संख्या में बंगालियों को एनआरसी की अंतिम सूची से बाहर’’ रखे जाने पर भी चिंता जताई.
उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ‘एनआरसी की विफलता ने उन सभी लोगों को उजागर कर दिया है जो इससे राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास कर रहे हैं. उन्हें देश को बहुत जवाब देने हैं.’
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘ऐसा तब होता है जब कोई कार्य समाज की भलाई और देश के व्यापक हित के बजाय गलत उद्देश्य के लिए किया जाए.’
बता दें कि जिन लोगों के नाम एनआरसी से बाहर रखे गए हैं, वे इसके खिलाफ 120 दिन के भीतर विदेशी न्यायाधिकरण में अपील दर्ज करा सकते हैं. यदि वे न्यायाधिकरण के फैसलों से संतुष्ट नहीं होते हैं तो वे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का रूख कर सकते हैं.
एआईयूडीएफ ने एनआरसी पर अपना रुख बदला
असम की एक प्रमुख पार्टी आल इंडिया युनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) ने अपना रुख बदलते हुए शनिवार को देश के वास्तविक नागरिकों का पता लगाने के मामले में पहल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद किया.
एआईयूडीएफ के प्रवक्ता एवं विधायक अमिनुल इस्लाम ने कहा कि विदेशियों का मामला राज्य में पिछले 40 साल से है लेकिन कोई सरकार इसे हल करने की इच्छुक नहीं थी. यह सुप्रीम कोर्ट ही है जिसने वास्तविक नागरिकों का पता लगाने के लिए एनआरसी को अपडेट करने की पहल की.
प्रवक्ता ने कहा कि अब तक असम में मुसलमानों को गलत तरीके से बांग्लादेशी कहा जाता था. उन्होंने कहा, ‘लेकिन कम से कम एनआरसी से यह पता लगाने में मदद मिली है कि कौन भारतीय है और कौन विदेशी.’
उन्होंने कहा, ‘यह कहना जल्दबाजी होगी कि एनआरसी की अंतिम सूची से हम संतुष्ट अथवा असंतुष्ट हैं. लेकिन यह असम में विदेशी नागरिकों के मसले को सुलझाने की दिशा में बढ़ाया गया एक कदम है और यह सुप्रीम कोर्ट की पहल के कारण ही संभव हो सका है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)