आयोग ने राज्य सरकार से लिव-इन रिलेशनशिप की बढ़ती हुई प्रवृत्ति को रोकने और समाज में महिलाओं के सम्मानपूर्वक जीवन के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए क़ानून बनाने की सिफ़ारिश की है.
जयपुर: राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग ने बुधवार को राज्य सरकार से लिव-इन रिलेशनशिप की बढ़ती हुई प्रवृत्ति को रोकने के लिए और समाज में महिलाओं के सम्मानपूर्वक जीवन के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए कानून बनाने की सिफारिश की है.
आयोग के अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश टाटिया और जस्टिस महेश चंद्र शर्मा की एक खंडपीठ ने बुधवार को राज्य के मुख्य सचिव और गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को एक पत्र लिखकर राज्य सरकार से सिफारिश की है कि इस मामले में कानून बनाएं.
आयोग ने केंद्र सरकार से भी कानून बनाने का आग्रह किया है. उल्लेखनीय है कि आयोग के समक्ष लिव-इन रिलेशनशिप के कुछ मामले सामने आने के बाद कुछ महीने पूर्व सभी पक्षों से लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहीं महिलाओं की सुरक्षा के संबंध में कानून बनाने के लिए सुझाव मांगे गए थे.
सभी हितधारकों के सुझावों और उनकी कानूनी राय के बाद आयोग ने पाया कि हर व्यक्ति को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार है, जो कि भारतीय संविधान में मूल अधिकारों में शामिल है.
Human Rights Commission of Rajasthan issues order stating "it is imperative to stop the practice of live-in relationships, and it is the responsibility of the state and Central government to prohibit it." pic.twitter.com/wgu1sX7CJ7
— ANI (@ANI) September 4, 2019
आज तक के मुताबिक राज्य मानवाधिकार आयोग ने कहा है कि अगर इस तरह के लिव-इन रिलेशनशिप के संबंध राज्य में हैं तो उसे जल्द से जल्द पंजीकृत करवाए जाएं.
मानवाधिकार आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए 27 पेज के अपने निर्देश में कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप को सर्वोच्च न्यायालय ने भी सही नहीं माना है.
आयोग की दलील है कि बिना शादी के कोई महिला किसी के साथ रहती है तो उसे रखैल कहा जाता है और रखैल कभी भी समाज में वह दर्जा नहीं पा सकती है जो एक शादीशुदा औरत पाती है. इसलिए किसी औरत का रखैल बनना महिला के स्वाभिमान और सुरक्षा पर हमला है. इसे रोकने के लिए प्रयास करने चाहिए.
खंडपीठ ने अपनी सिफारिश में कहा, ‘किसी महिला का रखैल जीवन किसी भी दृष्टि से महिला का सम्मानपूर्वक जीवन नहीं कहा जा सकता है. रखैल अपने आप में ही अत्यंत गंभीर चरित्र हनन करने वाला और घृणित संबोधन है.’
जनसत्ता के मुताबिक जस्टिस प्रकाश टांटिया ने 2017 में लिव-इन रिलेशनशिप को ‘सोशल टेररिज्म’ कहा था. उन्होंने कहा था कि यह समाज को संक्रमित कर रहा है. लिव-इन रिलेशनशिप में छोड़ी गई महिला की स्थिति तलाकशुदा महिला से भी बदतर हो जाती है.
गौरतलब है कि जस्टिस महेश चंद्र शर्मा ने भी इससे पहले 2017 में एक विवादित बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि मोर ब्रह्मचारी है इसलिए राष्ट्रीय पक्षी है.
शर्मा ने कहा था, ‘हमने मोर को राष्ट्रीय पक्षी इसलिए घोषित किया क्योंकि मोर आजीवन ब्रह्मचारी रहता है. इसके जो आंसू आते हैं, मोरनी उसे चुग कर गर्भवती होती है. मोर कभी भी मोरनी के साथ सेक्स नहीं करता. मोर पंख को भगवान कृष्ण ने इसलिए लगाया क्योंकि वह ब्रह्मचारी है. साधु संत भी इसलिए मोर पंख का इस्तेमाल करते हैं. मंदिरों में इसलिए मोर पंख लगाया जाता है. ठीक इसी तरह गाय के अंदर भी इतने गुण हैं कि उसे राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाना चाहिए.’
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)