केरल में दो धड़ों के बीच चर्चों में प्रार्थना करने को लेकर विवाद था. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में एक फैसला सुनाया था लेकिन केरल हाईकोर्ट ने बाद में इसमें बदलाव कर दिया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक अनुशासनहीनता की पराकाष्ठा बताया.
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने 2017 के अपने एक फैसले में केरल हाईकोर्ट द्वारा बदलाव किए जाने पर शुक्रवार को सख्त आपत्ति जताते हुए कहा कि केरल में जजों को बताइए कि वे भारत का हिस्सा हैं.
अदालत ने दो धड़ों के एक विवाद में चर्चों में प्रार्थनाओं और प्रशासन के संचालन के अधिकार के संबंध में फैसला दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के इस आदेश को खारिज कर दिया कि चर्चों में प्रार्थना मलंकारा चर्च के दो प्रतिद्वंद्वी गुटों द्वारा वैकल्पिक रूप से की जानी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में कहा था कि प्रार्थना सेवा 1934 के मलंकारा चर्च संविधान और दिशानिर्देशों के अनुरूप की जाएगी.
जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने शुक्रवार को हाईकोर्ट के आदेश के बारे में पता चलने के बाद नाराजगी जताते हुए कहा, ‘यह एक बहुत ही आपत्तिजनक आदेश है. यह न्यायाधीश कौन हैं? हाईकोर्ट को हमारे फैसले में फेरबदल करने का कोई अधिकार नहीं है. यह न्यायिक अनुशासनहीनता की पराकाष्ठा है. केरल में न्यायाधीशों को पता होना चाहिए कि वे भारत का हिस्सा हैं.’
जस्टिस मिश्रा ने यह टिप्पणी सेंट मैरीज़ ऑर्थोडॉक्स सीरियन चर्च के प्रतिनिधि फादर इसाक माटेमल्ल कोर इपिसकोपा की याचिका पर सुनवाई के दौरान की.
सुप्रीम कोर्ट जुलाई, 2017 में दिए गए अपने एक आदेश को लागू किए जाने के मामले की सुनवाई कर रहा था, जिसमें उसने मलंकारा चर्च के तहत आने वाले 1100 पेरिश (पादरियों का क्षेत्र) और चर्चों का नियंत्रण ऑर्थोडॉक्स गुट को दे दिया था.
फादर इसाक माटेमल्ल कोर इपिसकोपा ने इस साल आठ मार्च को केरल हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें कोर्ट ने जेकोबाइट गुट को चर्च के अंदर प्रार्थना करने की अनुमति दी थी.
याचिका में उन्होंने कहा था कि चर्च में समानांतर सेवा की अनुमति नहीं दी जा सकती. जेकोबाइट गुट या मलंकारा चर्च दिशानिर्देशों के तहत नियुक्त नहीं हुए पादरी को चर्च में किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधियों को अंजाम देने से रोका जाना चाहिए.
जेकोबाइट गुट पर आरोप है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद वह ऑर्थोडॉक्स चर्च के अनुयायियों को धार्मिक गतिविधियों की अनुमति नहीं दे रहा था.
जस्टिस मिश्रा ने कहा कि हाईकोर्ट के जज को हमारे आदेश से छेड़छाड़ करने का अधिकार नहीं है. इसके साथ ही पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को दरकिनार कर दिया.
गौरतलब है कि इससे पहले जुलाई में जस्टिस अरुण मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने पर केरल सरकार को फटकार लगाई थी.
बीते दो जुलाई को मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या केरल कानून के ऊपर उठा गया है. उन्होंने मुख्य सचिव को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर 2017 के फैसले को लागू नहीं किया गया तो उन्हें जेल भेज दिया जाएगा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)