राज्य की कमलनाथ सरकार के मंत्री-विधायक एक-दूसरे पर अवैध खनन, अवैध शराब और रिश्वत लेने जैसे संगीन आरोप लगा रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर आरोप है कि वे सरकार को पर्दे के पीछे से चला रहे हैं, वहीं नये प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव को लेकर भी खींचतान की स्थिति बनी हुई है.
मध्य प्रदेश की राजनीति में घमासान मचा हुआ है. खास बात यह है कि घमासान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच नहीं मचा. घमासान के केंद्र में सत्ता पक्ष यानी प्रदेश में कांग्रेसी संगठन की वह आंतरिक कलह या गुटबाजी है जिसके बारे में हमेशा गाहे-बगाहे चर्चा होती रहती थी, सत्ता में आने से पहले भी और सत्ता में आने के बाद भी.
तब पार्टी और नेता या तो उसे स्वीकारते नहीं थे या फिर यह कहकर दबा देते थे कि यह पार्टी का आंतरिक मसला है जिसे मिल-बैठकर सुलझा लेंगे. लेकिन, अब वह कलह खुलकर सामने आ गई है. अलग-अलग गुटों में बंटे पार्टी के बड़े नेता, विधायक, मंत्री खुलकर मीडिया में और सार्वजनिक मंचों पर एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं, आरोप- प्रत्यारोप लगा रहे हैं.
हालांकि, इस गुटबाजी की खबरें मीडिया में छन-छनकर पहले भी आती रहती थीं. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने द वायर से बातचीत में गुटबाजी की बात स्वीकारी भी थी. लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ था कि पार्टी के नेता एक-दूसरे के खिलाफ सार्वजनिक बयानबाजी करें.
खास बात यह है कि वर्तमान के घमासान की शुरुआत का कोई एक छोर नहीं है, कई अलग-अलग मोर्चों से इसकी शुरुआत हुई है लेकिन घमासान का केंद्र एक ही है कि सत्ता में भागीदारी किसकी अधिक हो?
घमासान की पहली चिंगारी तब निकली जब पिछले दिनों प्रदेश के सहकारिता और सामान्य प्रशासन विभाग मंत्री डॉ. गोविंद सिंह ने भिंड प्रवास के दौरान अपनी ही सरकार द्वारा अवैध खनन न रोक पाने की बात स्वीकारी और खुद की विवशता जाहिर की.
प्रतिक्रिया में पार्टी के ही दो क्षेत्रीय विधायकों (गोहद विधायक ओपीएस भदौरिया और मेहगांव विधायक रणवीर जाटव) ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया. जिस पर गोविंद सिंह ने दोनों ही विधायकों को क्षेत्र में हो रहे रेत के अवैध कारोबार का सरगना ठहरा दिया.
ये मामला शांत भी नहीं हुआ था कि इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के प्रदेश सरकार के सभी मंत्रियों को लिखे एक पत्र ने एक नया घमासान छेड़ दिया. उक्त पत्र में दिग्विजय ने मंत्रियों से 31 अगस्त तक इस संबंध में मिलने का समय मांगा कि उनके द्वारा मंत्रियों को की गई शिकायतें और काम की सिफारिशों पर मंत्रियों ने क्या कदम उठाए हैं?
दिग्विजय द्वारा इस तरह कामकाज का हिसाब मांगने पर वन मंत्री उमंग सिंघार ने उन पर पर्दे के पीछे से सरकार चलाने का आरोप लगा दिया. उन्होंने कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी को भी एक पत्र लिखा.
इस शिकायती पत्र में दिग्विजय पर आरोप लगाते हुए उन्होंने लिखा कि दिग्विजय सिंह कमलनाथ सरकार को अस्थिर करके खुद पावर सेंटर बनना चाहते हैं. वे मुख्यमंत्री और मंत्रियों को पत्र लिखकर वायरल करते हैं और विपक्ष को मुद्दा देते हैं.
साथ ही उन्होंने लिखा कि दिग्विजय सिंह अपने बेटे नगरीय प्रशासन मंत्री जयवर्द्धन सिंह के विभाग से संबंधित सवालों पर चुप्पी साथ जाते हैं जबकि अन्य मंत्रियों से जवाब तलब करते हैं. सिंघार यहीं नहीं रुके. उन्होंने दिग्विजय पर रेत और शराब के धंधे में भी लिप्त होने के आरोप लगाए. साथ ही प्रदेश में हो रहे आईएएस और आईपीएस अफसरों की पोस्टिंग में दिग्विजय के हस्तक्षेप के दावे करते हुए उन्हें उल्टे-सीधे धंधों में लिप्त बताया.
प्रतिक्रिया में दिग्विजय समर्थक उग्र हो गए और उन्होंने सिंघार के घर के बाहर उनका पुतला फूंक दिया. वहीं, वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व राज्यपाल अजीज कुरैशी एवं वरिष्ठ कांग्रेसी मानक अग्रवाल ने उन्हें भाजपा का एजेंट बता दिया.
सिंधिया गुट के मंत्री-विधायकों ने भी मौके पर चौका मार दिया और कहा कि चूंकि विधानसभा चुनाव में सिंधिया ही भाजपा के निशाने पर प्रमुख तौर पर थे. उन्हें महाराज कहकर भाजपा ने टारगेट किया तो जनता ने हमारी सरकार बनवाकर जवाब दिया. इसलिए केवल सिंधिया ही सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप के अधिकारी हैं.
बहरहाल, इसी घटनाक्रम के बीच प्रदेश के ग्वालिर-चंबल संभाग में एक और कहानी शुरू हो गई. दतिया में कांग्रेस के जिला कार्यकारी अध्यक्ष अशोक दांगी पार्टी के खिलाफ ही अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए. उनकी मांग है कि पार्टी आलाकमान 15 दिनों के अंदर पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करे. वरना उसके बाद वे दिल्ली में कांग्रेस के राष्ट्रीय कार्यालय पर प्रदर्शन करेंगे.
इसी संबंध में भिंड जिले के कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने ऐलान कर दिया कि सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाया तो इस्तीफा देकर पार्टी के खिलाफ आंदोलन करेंगे. शिवपुरी में भी धरना प्रदर्शन हुआ और कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी कि अगर सिंधिया अध्यक्ष नहीं बने तो मुख्यमंत्री कमलनाथ और अन्य मंत्रियों को शिवपुरी में घुसने नहीं देंगे.
वहीं, पोहरी से पार्टी विधायक सुरेश राठखेड़ा ने पद से इस्तीफा देने की धमकी दे दी. गोहद विधायक रणवीर जाटव ने प्रदेश में हालात खराब होने की चेतावनी दी. सिंधिया के गढ़ ग्वालियर में उनके आगमन पर सड़कों-चौराहों पर पार्टी विरोधी होर्डिंग्स लगाए गए, जिनमें कांग्रेस आलाकमान को चुनौती दी गई.
क्षेत्र की आठ जिला इकाइयों ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को इस संबंध में प्रस्ताव भेजा है, जबकि सिंधिया गुट के सभी मंत्री और विधायक खुलकर मांग के समर्थन में सामने आ गए हैं. गौरतलब है कि प्रदेश में नये कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर बैठकों का दौर जारी है और सिंधिया गुट के मंत्री, विधायकों से लेकर कार्यकर्ता तक सिंधिया को अध्यक्ष बनाए जाने की मांग लंबे समय से कर रहे हैं.
जब पार्टी इन मोर्चों से निपटने की रूपरेखा तैयार कर रही थी, उसी बीच व्यापमं घोटाले के व्हिसल ब्लोअर डॉ. आनंद राय और धार के आबकारी आयुक्त संजीव दुबे के बीच बातचीत का एक ऑडियो वायरल हो गया जिसमें दुबे डॉ. राय को बता रहे हैं कि मंत्री उमंग सिंघार, विधायक राज्यवर्द्धन सिंह दत्तीगांव और हीरालाल अलावा शराब ठेकेदार से लाखों की वसूली करते हैं.
इससे भी पार्टी की फजीहत हुई. आनन-फानन में आरोप झेल रहे मंत्री-विधायक मुख्यमंत्री से मिले और दबाव बनाकर अधिकारी को अपने पद से हटवा दिया.
इसी सारे घटनाक्रम के बीच पार्टी के महाराजपुर विधायक नीरज दीक्षित सरकार के खिलाफ भूख हड़ताल की धमकी देते नजर आए क्योंकि उनके क्षेत्र में विकास कार्य नहीं हो रहे. तो सरकार को समर्थन दे रहे समाजवादी पार्टी विधायक राजेश शुक्ला ने आरोप लगाया कि मंत्री खुद को भगवान समझते हैं, काम करते नहीं, मिलने तक का समय नहीं देते हैं. जिस पर महिला एवं बाल विकास मंत्री इमरती देवी ने बयान दिया कि वे कमलनाथ की गुलाम नहीं हैं.
एक साथ इतने मोर्चों पर अपनों के ही कारण घिरी सरकार में अब घमासान इस कदर मचा है कि हर नेता एक-दूसरे के खिलाफ बयान दे रहा है. सभी गुटों के चेहरे खुलकर सामने आ गए हैं. कोई उमंग सिंघार के साथ खड़ा है तो कोई दिग्विजय के साथ. कोई गोविंद सिंह के समर्थन में खड़ा है तो कोई विरोध में.
सिंधिया खेमा अपनी अलग ही राजनीति कर रहा है और उसके केंद्र में सिंधिया के कद का सम्मान है. वहीं, कमलनाथ मध्यस्थ की भूमिका में पार्टी में समन्वय के प्रयास कर रहे हैं. वे उमंग सिंघार, डॉ. गोविंद सिंह, राज्यवर्द्धन सिंह दत्तीगांव और हीरालाल अलावा से बीते दिनों मुलाकात कर चुके हैं.
पार्टी में उठा यह तूफान उन पार्टी नेताओं के लिए आहत करने वाला है जो कि इन सारे विवादों से दूर हैं. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव भी उनमें से एक हैं. उन्होंने अपने ट्वीट में इन सारे घटनाक्रमों पर निराशा जताई है. उन्होंने लिखा है कि यदि इन दिनों का आभास पहले ही हो जाता तो शायद जान हथेली पर रखकर जहरीली और भ्रष्ट विचारधारा के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ता.
मप्र मे 15 सालों तक ईमानदार पार्टीजनों के साथ किये गए संघर्ष के बाद 8 महीनों मे जो स्थितियां सामने आ रही हैं,उसे देखते हुए बहुत व्यथित हूँ,यदि इतनी जल्दी इन दिनों का आभास पहले ही हो जाता तो शायद जान हथेली पर रखकर जहरीली और भ्रष्ट विचारधारा के ख़िलाफ़ लड़ाई नही लड़ता,बहुत आहत हूँ। pic.twitter.com/TFMqwK64kO
— Arun Subhash Yadav 🇮🇳 (@MPArunYadav) September 3, 2019
इसी कड़ी में निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा ने सरकार की खींचतान पर निराशा जताई और कहा कि हमारा भविष्य इस सरकार में अंधकार में दिख रहा है. वे सरकार को समर्थन दे रहे सभी निर्दलीय, सपा और बसपा विधायकों के साथ मुख्यमंत्री से बैठक की योजना बना रहे हैं.
वहीं, भिंड के बसपा विधायक संजीव कुशवाह ने कहा है कि आपस में ही लड़े जा रहे हैं. भाजपा से क्या लड़ेंगे. पहले अपने ही विधायकों को संतुष्ट करना होगा.
इस पूरे घमासान पर प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता रवि सक्सेना पार्टी के बचाव में कहते हैं, ‘पूरा घटनाक्रम बहुत ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर प्रदर्शित किया जा रहा है. उमंग सिंघार का मामला यह था कि उनके क्षेत्र में कुछ अधिकारियों की भाजपा के जमाने से पोस्टिंग थी जिनका उन्होंने ट्रांसफर कराया था, वे वापस वहां काबिज हो गए थे. उनसे सिंघार को शिकायत थी, वे कई बार कह चुके थे कि उनका ट्रांसफर होना चाहिए, जो हो नहीं रहा था. उन्हें लगता था कि ऐसा दिग्विजय सिंह के कारण है. यह उसी का गुस्से का प्रस्फुटन था. मुख्यमंत्री ने उक्त अधिकारी को हटा दिया, मामला समाप्त हो चुका है.’
हालांकि, प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार राकेश दीक्षित इस प्रकरण पर रवि से अलग मत रखते हैं. वे बताते हैं, ‘प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए उमंग सिंघार का नाम आगे चल रहा था, वे इतने करीब थे कि बन भी सकते थे. लेकिन दिग्विजय सिंह ने अड़ंगा लगा दिया. वही भड़ास सिंघार ने निकाली है.’
वहीं, रवि सक्सेना मंत्री डॉ. गोविंद सिंह वाले मसले को भी भाजपा से जोड़ते हुए कहते हैं, ‘भिंड में भाजपा काल से अवैध रेत खनन जारी है. एक आईपीएस अधिकारी और एक पत्रकार की भी जान गई. वहां जंगलराज था. हमारी सरकार ने उसका अंत करने बहुत कोशिश की लेकिन पुलिस और खनन अधिकारियों की सांठ-गांठ से फिर भी चलता रहा तो गोविंद सिंह ने बस इशारा किया था जिस पर हमने संज्ञान लिया, अब खनन बंद हो गया है.’
जब उनसे पूछा गया कि गोविंद सिंह ने तो अपनी ही पार्टी के विधायकों को रेत खनन का सरगना ठहराया है तो उनका जवाब था, ‘गोविंद सिंह बहुत वरिष्ठ मंत्री हैं. उन्होंने अगर किसी बात को कहा है तो मुख्यमंत्री ने उसे गंभीरता से लिया है. उस पर जो कार्रवाई होनी चाहिए तत्काल कार्रवाई कर दी गई है और उस मामले का भी पटाक्षेप हो गया है.’
हालांकि, दोनों विधायकों पर क्या कार्रवाई हुई, यह उन्होंने नहीं बताया. ऑडियो प्रकरण पर रवि आनंद राय की प्रासंगिकता पर ही सवाल उठाते हुए कहते हैं, ‘यह हमारी सरकार को बदनाम करने की उनकी साजिश है. आनंद राय को किसी सरकारी अधिकारी से इस तरह बात का अधिकार नहीं है, वे किस ओहदे से बात कर रहे थे.’
सिंधिया को प्रदेशाध्यक्ष बनाने के विवाद पर रवि इसे पार्टी के कुछ ऐसे अतिउत्साही नेताओं और कार्यकर्ताओं की करतूत बताते हैं जो सिंधिया के प्रति अपनी निष्ठा साबित करना चाहते हैं, अपनी राजनीति चमकाना चाहते हैं, अपना कद बढ़ाना चाहते हैं.
बहरहाल, रवि के मुताबिक सभी विवादों का पटाक्षेप हो गया है लेकिन इसके उलट प्रदेश की कांग्रेस सरकार मे जो आग लगी है, वे आसानी से बुझती दिख नहीं रही है.
5 सितंबर को जिस वक्त हम रवि सक्सेना से बात कर रहे थे, उसी दौरान सपा विधायक राजेश शुक्ला सरकार के मंत्रियों पर लिफाफा लेकर काम करने का आरोप लगाकर एक और नये विवाद को जन्म दे चुके थे.
खबरों के मुताबिक, उन्होंने सरकार के करीब दर्जन भर मंत्रियों पर आरोप लगाए कि बिना लिफाफा लिए वे कोई काम नहीं करते. जिनमें गृह मंत्री बाला बच्चन, स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट और पंचायत मंत्री कमलेश्वर पटेल जैसे बड़े नाम शामिल थे.
उनकी बात को बल तब मिला जब कांग्रेस के तीन विधायक गिर्राज दंडौतिया, बैजनाथ कुशवाह और बाबूलाल जंडेल ने भी मंत्रियों के कामकाज को कठघरे में खड़ा कर दिया. इन्होंने ऊर्जा मंत्री प्रियव्रत सिंह, परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत, स्कूल शिक्षा मंत्री प्रभुराम चौधरी और वन मंत्री उमंग सिंघार के कामकाज पर सवाल खड़े कर दिए.
गौरतलब है कि इससे एक दिन पहले ही विधायक रणवीर जाटव और ओपीएस भदौरिया ने भी स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट पर बेटे के जरिए काम के बदले पैसे मांगने का आरोप लगाया था. जाटव ने तो यहां तक कह दिया था कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो इस्तीफा देकर भाजपा में चला जाऊंगा.
यहां चौंकाने वाली बात यह थी कि जाटव, भदौरिया और सिलावट तीनों ही प्रदेश की राजनीति में सिंधिया गुट का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि पिछली घटनाओं में खास यह था कि जितने भी विवाद खड़े हुए वे विरोधी गुट के नेताओं और मंत्रियों के बीच थे.
जैसे कि रेत खनन के मुद्दे पर दिग्विजय गुट के डॉ. गोविंद सिंह और सिंधिया गुट के जाटव-भदौरिया आमने-सामने थे. दिग्विजय के पत्र मामले में स्वयं दिग्विजय के सामने वे उमंग सिंघार खड़े थे जो कि कांग्रेस की पूर्व नेता प्रतिपक्ष स्वर्गीय जमुना देवी के भतीजे हैं. जमुना देवी और दिग्विजय एक-दूसरे के कट्टर विरोधी माने जाते थे. वहीं, कमलनाथ पर हमलावर इमरती देवी सिंधिया गुट की मंत्री हैं.
खींचतान केवल सिंधिया गुट के अंदर ही नहीं मची. दिग्विजय गुट से विधायक और पूर्व मंत्री ऐंदल सिंह कंसाना ने एक विज्ञप्ति जारी करके पार्टी विरोधी बयान देने वाले मंत्रियों को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग की है. इसमें दिग्विजय गुट के ही डॉ. गोविंद सिंह का भी नाम शामिल है.
अब तक तो पार्टी में विभिन्न गुटों के बीच की खींचतान पार्टी आलाकमान के लिए चिंता का विषय थी. लेकिन अब गुटों के अंदर मची खींचतान ने क्षेत्रीय क्षत्रपों के माथे पर भी बल डालना शुरू कर दिया है.
वहीं, कमलनाथ से मुलाकात के बावजूद उमंग सिंघार द्वारा वसीम बरेलवी का शेर, ‘उसूलों पर जहां आंच आए टकराना जरूरी है…..’, ट्वीट करना रवि सक्सेना के विवाद के पटाक्षेप वाले दावों से उलट ही कहानी कह रहा है.
कांग्रेस में मचे इस घमासान पर भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं, ‘मंत्री, सत्तापक्ष के विधायक और नेता ही एक-दूसरे पर अवैध खनन, अवैध शराब, ब्लैकमेलिंग और अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग जैसे गंभीर आरोप लगा रहे हैं. सरकारी अधिकारी मंत्री और विधायकों पर लाखों के अवैध लेन-देन के आरोप लगा रहे हैं. इसे महज किसी राजनीतिक दल की बयानबाजी नहीं कह सकते, जिसका पार्टी के अंदर आपस में बातचीत हो जाने से पटाक्षेप हो जाएगा.
अग्रवाल का कहना है कि यह अब कांग्रेस का अंदरूनी मामला नहीं रह गया है. उन्होंने आगे कहा, ‘यह जांच और कार्रवाई का मसला है, उच्चस्तरीय जांच की जरूरत है. आरोपों की न्यायिक या सीबीआई जांच हो. मुख्यमंत्री ने बुला लिया और समझा दिया, इतना पर्याप्त नहीं है. उदाहरण के लिए, वायरल ऑडियो के कारण एक सरकारी अधिकारी पर तो कार्रवाई हो गई लेकिन जिन मंत्री और विधायकों का उसमें नाम आया, उन पर कार्रवाई नहीं हुई है.’
बहरहाल, राकेश दीक्षित का कहना है, ‘दिग्विजय सिंह काफी समय से सरकार की बैकसीट ड्राइविंग कर रहे थे, जिससे उनके गुट के अलावा सबमें असंतोष था. उनके पत्र ने उस असंतोष को भड़का दिया. ऐसा कभी नहीं सुना कि एक नेता सारे मंत्रियों को पत्र लिख कर कहे कि मुझे बताओ कि मेरी सिफारिशों का क्या हुआ? वो भी निजी सिफारिशों का, न कि कोई विकास संबंधी.’
वहीं, विशेषज्ञ मानते हैं कि सिंघार का कद इतना नहीं कि वे दिग्विजय के बारे में इतना बोल जाएं. कहीं न कहीं कमलनाथ की शह पर ही सब हुआ है. साथ ही उनके मुताबिक, आनंद राय के वायरल ऑडियो में सिंघार का नाम खींचा जाना दिग्विजय के इशारे पर हुआ लगता है. गौरतलब है कि डॉ. राय दिग्विजय के करीबी माने जाते हैं.
राकेश कहते हैं, ‘इन सारे झंझावतों से कमलनाथ मजबूत हुए हैं. उन्हें सबको लगाम लगाकर रखने का एक मौका मिल गया. मध्यस्थ बनकर वो अब सभी पक्षों को साधेंगे और यह कहकर दिग्विजय के भी पर कतर देंगे कि उनके कारण कितना बवाल होता है. वहीं, प्रदेश अध्यक्ष फिलहाल अब वे ही बने रहेंगे क्योंकि अब निकाय चुनाव होने हैं जिसे कांग्रेस अप्रत्यक्ष प्रणाली से दलरहित कराने जा रही है. जहां खरीद-फरोख्त के लिए कमलनाथ का कॉरपोरेट मैनेजमेंट काम आएगा. इस तरह सिंधिया से जुड़ा प्रदेश अध्यक्ष विवाद भी थम जाएगा.’
बहरहाल, इस बीच एक और घटनाक्रम हुआ है. अब तक उपजे सभी विवादों में पार्टी के क्षेत्रीय क्षत्रप (कमलनाथ, दिग्विजय, सिंधिया) चुप्पी साधे थे. दिग्विजय पर भले ही आरोप लगे लेकिन उन्होंने कोई बयान नहीं दिया था.
लेकिन, इसी हफ्ते सिंधिया ग्वालियर प्रवास के दौरान सरकार को चुनौती देने की मुद्रा में नजर आए. उन्होंने विधानसभा चुनाव के वचन-पत्र के संबंध में कहा कि वादे पूरे नहीं हुए तो सरकार को चैन की सांस नहीं लेने दूंगा.
वहीं, दिग्विजय पर सिंघार के आरोपों पर खुलकर सिंघार के समर्थन में कहा कि सरकार में बाहरी हस्तक्षेप न हो. इसके अलावा प्रदेश में सरकार की नाक के नीचे अवैध खनन की बात भी की.
इन पूरे घटनाक्रमों के बीच गौर करने वाली बात यह भी है कि कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी ने प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया के माध्यम से प्रदेश कांग्रेस के सभी नेताओं को सार्वजनिक बयानबाजी न करने की हिदायत दी थी.
बावजूद इसके यह सारी बयानबाजी जारी है, यहां तक कि सिंधिया और दिग्वजिय तक ने उस हिदायत का पालन नहीं किया है. जो प्रदेश में पार्टी नेताओं के निरंकुश होने की कहानी बयां करता है.
निरंकुशता का एक और उदाहरण यह है कि फरवरी माह में ही मुख्यमंत्री ने सभी विधायकों और मंत्रियों के लिए एक आचार संहिता जारी की थी, जिसमें इस तरह की सार्वजनिक बयानबाजी न करने की बात कही थी. लेकिन कोई भी उस आचार संहिता का पालन करता नहीं दिखता है, यहां तक कि वे डॉ. गोविंद सिंह भी नहीं जिन्होंने वह आचार संहिता तैयार की थी.
हालांकि, सोनिया गांधी ने फिर से पार्टी को अनुशासन में रहने की नसीहत जारी की है जिससे बयानबाजी पर कुछ लगाम कसी है. लेकिन यह पूरी तरह नहीं थमी है.
बीते शनिवार को दिग्विजय ने मामले में अपनी चुप्पी तोड़ी और पूरे विवाद की जड़ अपने उस बयान को बताया जहां कि उन्होंने भाजपा पर पाकिस्तान से पैसे लेने का आरोप लगाया था. इस तरह अप्रत्यक्ष तौर पर वे भी उमंग सिंघार पर भाजपा के लिए काम करने का आरोप लगा रहे थे.
बहरहाल, रवि सक्सेना का कहना है कि ये सारे घटनाक्रम ही कांग्रेस पार्टी की ताकत हैं. इसमें लोकतंत्र है, सबको अपनी बात कहने का अधिकार है वरना भाजपा और हम में क्या अंतर रह जाएगा.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)