भारत 2030 तक 2.1 करोड़ हेक्टेयर के बजाय 2.6 करोड़ हेक्टेयर बंजर भूमि को दुरुस्त करेगा: नरेंद्र मोदी

मरुस्थलीकरण की रोकथाम पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लक्ष्य में इजाफे की घोषणा की. भारत ने पहले 2.1 करोड़ हेक्टेयर बंजर जमीन को दुरुस्त करने का लक्ष्य तय किया था.

मरुस्थलीकरण की रोकथाम पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लक्ष्य में इजाफे की घोषणा की. भारत ने पहले 2.1 करोड़ हेक्टेयर बंजर जमीन को दुरुस्त करने का लक्ष्य तय किया था.

Modi COP 14 speech PTI
मरुस्थलीकरण की रोकथाम पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित सम्मेलन (कॉप-14) की उच्चस्तरीय बैठक को संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो: पीटीआई)

ग्रेटर नोएडा: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते सोमवार को देश में बंजर जमीन को उपयोग में लाये जा सकने योग्य बनाने के लक्ष्य में इजाफे की घोषणा करते हुए कहा है कि भारत 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर बंजर जमीन को दुरुस्त करेगा.

भारत ने पहले 2.1 करोड़ हेक्टेयर बंजर जमीन को उपयोग में लाये जा सकने योग्य बनाने का लक्ष्य तय किया था. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की साल 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुल 9.6 करोड़ हेक्टेयर बंजर भूमि है.

प्रधानमंत्री मोदी ने ग्रेटर नोएडा में मरुस्थलीकरण की रोकथाम पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित सम्मेलन (कॉप-14) की उच्चस्तरीय बैठक के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा, ‘भारत अब 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर बंजर भूमि को दुरुस्त करने की महत्वाकांक्षा रखता है.’

इसके अंतर्गत जमीन की उत्पादकता और जैव प्रणाली को बहाल करने पर ध्यान दिया जाएगा. इसमें बंजर हो चुकी खेती की जमीन के अलावा वन क्षेत्र और अन्य परती जमीनों को केंद्र में रखा जाएगा.

सम्मेलन में सेंट विंसेंट एंड ग्रेनाडिनेस के प्रधानमंत्री राल्फ गोंजाल्विस, संयुक्त राष्ट्र की उपमहासचिव अमीना जेन मोहम्मद, यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव इब्राहीम थेव, लगभग 90 देशों के पर्यावरण मंत्रियों के अलावा लगभग 200 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं.

बैठक में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो भी मौजूद थे.

प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने पर्यावरण संरक्षण पर आयोजित रियो सम्मेलन के सभी तीन प्रमुख मुद्दों (जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और भूमि क्षरण) का समाधान निकालने के लिए भारत की प्रतिबद्धता दोहराई.

उन्होंने कहा कि इसके लिए ‘कॉप’ के जरिए भारत ने वैश्विक बैठकों की मेजबानी की है. प्रधानमंत्री ने कहा, ‘जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और भूमि क्षरण के मुद्दों के समाधान में सहयोग की पहल करना भारत के लिए खुशी की बात है.’

पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत उपग्रह और अंतरिक्ष विज्ञान से जुड़ी किफायती प्रौद्योगिकी के जरिए भूक्षरण के समाधान में मित्र देशों के लिए मददगार बन सकता है.

इस दौरान उन्होंने जल संरक्षण के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यूएनसीसीडी को वैश्विक जल एजेंडा बनाने पर विचार करन चाहिए जिससे कि भूक्षरण के नियंत्रण की कारगर रणनीति बनाई जा सके.

उन्होंने कहा, ‘जब हम बंजर भूमि की समस्या हल करते हैं, तब हम जल की कमी की समस्या भी हल करते हैं. जलआपूर्ति बढ़ाना, जल की पुनःपूर्ति करना, जल की बर्बादी को कम करना और मिट्टी की नमी को कायम रखना, भूमि तथा जल रणनीति का अहम हिस्सा हैं.’

इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार इस्तेमाल करने योग्य प्लास्टिक के खतरे को दूर करने की आवश्यकता पर भी बल देते हुए कहा कि उनकी सरकार ने आने वाले वर्षों में इस प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करने का लक्ष्य तय किया है. उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि समय आ गया है कि विश्व भी एक बार इस्तेमाल योग्य प्लास्टिक को अलविदा कह दे.’

बैठक में जावड़ेकर ने हरित गतिविधियों (ग्रीन डीड्स) के प्रति भारत सरकार के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने पेरिस शिखर वार्ता में अग्रणी भूमिका निभाई थी. वह 175 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन प्राप्त करने के भारत के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम की प्रेरक शक्ति हैं.

उन्होंने कहा कि ‘कॉप-14’ पर्यावरण संबंधी अति महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करने के लिए एक विश्व मंच के रूप में उभरा है. इसमें वैश्विक स्तर पर मरुस्थलीकरण के समाधान की दिशा में काम करने के लिए सभी देश एकजुट हुए हैं.

जावड़ेकर ने कहा कि बैठक के अंत में मंगलवार को दिल्ली घोषणा पत्र जारी किया जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘दिल्ली घोषणा पत्र का मसौदा तैयार है, इसमें सम्मेलन के दौरान पिछले एक सप्ताह से चल रही रचनात्मक चर्चा के आधार पर मरुस्थलीकरण के संकट से निपटने की कार्ययोजना को शामिल किया गया है.’

इस दौरान यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव थेव ने कहा कि सभी भागीदार देश अपनी बंजर जमीन को दुरुस्त करने और इनके प्रबंधन के जिस समझौते पर पहुंचेंगे, उसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी को भी संभव बनाने के पहलू पर विचार किया जाना चाहिए, जिससे सभी पक्षकारों को अपनी कार्ययोजनाएं पूरी करने में मदद मिलेगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)