पर्यावरण की दृष्टि से बेहद नाजुक पश्चिमी घाटों में परमाणु परियोजना के विस्तार को मंजूरी

पिछले साल दिसंबर में आयोजित सार्वजनिक बैठक में स्थानीय लोगों और पर्यावरणविदों ने कैगा परमाणु संयंत्र के प्रस्तावित विस्तार का गंभीर विरोध किया था.

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पिछले साल दिसंबर में आयोजित सार्वजनिक बैठक में स्थानीय लोगों और पर्यावरणविदों ने कैगा परमाणु संयंत्र के प्रस्तावित विस्तार का गंभीर विरोध किया था.

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परमाणु संयंत्र. (प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केंद्र ने पर्यावरण की दृष्टि से बेहद नाजुक पश्चिमी घाटों में कैगा परमाणु ऊर्जा परियोजना की दो इकाइयों के क्षमता विस्तार के लिए पर्यावरणीय मंजूरी दी है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक इसी क्षेत्र में कर्नाटक के करवार तालुका में मौजूदा टाउनशिप में अतिरिक्त आवास के निर्माण को भी मंजूरी दी गई है.

प्रसिद्ध इकोलॉजिस्ट माधव गाडगिल की अध्यक्षता वाले एक पैनल ने 2011 में करवार को पारिस्थितिकीय रूप से यानी इकोलॉजिकली संवेदनशील क्षेत्र-1 (ईएसजे-1) के रूप में वर्गीकृत किया था क्योंकि यहां कि प्राकृतिक जैव विविधता काफी समृद्ध है और यह क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं को लेकर अतिसंवेदनशील है.

वेस्टर्न घाट इकोलॉजी एक्सपर्ट पैनल (डब्ल्यूजीईईपी) ने सिफारिश की थी कि ईएसजेड-1 के रूप में वर्गीकृत क्षेत्रों में किसी भी तरह के खनन और थर्मल पावर प्लांट को अनुमति नहीं दी जाएगी.

इस परमाणु प्रोजेक्ट को लेकर पिछले साल 15 दिसंबर 2018 को हुई ‘पर्यावरणीय जन सुनवाई’ के दौरान स्थानीय लोगों ने कड़ा विरोध किया था. गांववाले और पर्यावरणविद् इस परियोजना के विस्तार को लेकर सहमत नहीं थे.

हालांकि केंद्र सरकार ने इन असहमतियों को दरकिनार करते हुए कैगा परमाणु परियोजना के विस्तार को मंजूरी दे दी. पर्यावरण मंत्रालय की आर्थिक सलाहकार परिषद ने बीते 24 मई को 17 विशेष और 19 सामान्य शर्तों के साथ इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी.

डेक्कन हेराल्ड के मुताबिक पर्यावरण मंत्रालय के अतिरिक्त निदेशक श्रुति राय भारद्वाज ने पांच सितंबर को भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (एनपीसीआईएल) के निदेशक को पत्र लिखकर पर्यावरण मंजूरी के बारे में बताया. एनपीसीआईएल कैगा परमाणु प्लांट का संचालन करता है.

उन्होंने पत्र में लिखा, ‘अधिकांश ग्रामीण विस्तार के पक्ष में हैं क्योंकि उनका मानना है कि नई इकाइयां अधिक रोजगार उत्पन्न करेंगी और स्थानीय बुनियादी ढांचे में वृद्धि करेंगी जबकि कुछ ने आशंका व्यक्त की है कि विस्तार से प्रदूषण बढ़ेगा और इससे कृषि उत्पाद में कमी आएगी. आर्थिक सलाहकार परिषद ने इन मुद्दों पर ध्यान दिया है.’

हालांकि पर्यावरण कार्यकर्ताओं का आरोप है कि केंद्र सरकार ने कैगा विस्तार योजनाओं के लिए अपनी मंजूरी देते समय जनता की राय पर विचार नहीं किया है.

इसके अलावा पर्यावरण मंत्रालय ने इस संबंध में हुई मीटिंग के मिनट्स को यह कहते हुए सार्वजनिक नहीं किया कि इसमें संवेदनशील जानकारियां हैं.

इस परियोजना विस्तार की वजह से 120 हेक्टेयर क्षेत्र में 8,700 पेड़ काटे जाएंगे. परिषद ने एनपीसीआईएल को भेजे पत्र में कहा कि पेड़ों की कटाई की भरपाई के रूप में वे मांड्या और चामाराजनगर जिले में 732 हेक्टेयर क्षेत्र में पेड़ लगाएंगे.

परिषद ने यह भी शर्त रखी है कि नए संयंत्रों से जितनी बिजली उत्पादन होगी उसका आधा कर्नाटक को दिया जाएगा.

वृक्षलक्ष आंदोलन के अनंत हेगड़े आशिसरा ने डेक्कन हेराल्ड से कहा, ’15 दिसंबर, 2018 को आयोजित सार्वजनिक बैठक में स्थानीय लोगों और पर्यावरणविदों ने कैगा परमाणु संयंत्र के प्रस्तावित विस्तार का गंभीर विरोध किया था. बैठक में पेड़ की कटाई का मुद्दा सामने नहीं आया था.’