राजद्रोह का गंभीर आरोप यह बताता है कि सरकार ट्रोल्स से सहमत है कि शेहला एक ख़तरनाक इंसान हैं.
शेहला राशिद युवा हैं, स्मार्ट हैं, शिक्षित हैं, अपनी बात कहने का हुनर रखती हैं और सार्वजनिक मसलों से पूरा वास्ता रखती हैं. भारत को ऐसे ही युवाओं की जरूरत हैं. कोई और वक्त होता, तो उनका जिक्र पत्रिकाओं की पसंदीदा ‘यंग इंडियंस टू लुक फॉर’ या ‘30 अंडर 30’ जैसी सूचियों में होता.
लेकिन आज वे राजद्रोह के आरोपों का सामना कर रही हैं, और भारत की ऑनलाइन (और निश्चित तौर पर ऑफलाइन) आबादी का एक बड़ा मुखर हिस्सा उनसे नफरत करता है और उन्हें गालियां देता है. उन्हें राजद्रोही बताकर उन्हें ट्रोल किया जाता और उनको लेकर सैकड़ों तरह के अभद्र मीम साझा किए जाते हैं.
राजद्रोह का गंभीर आरोप यह बताता है कि सत्ता इंटरनेट के फब्तीबाजों से सहमति रखती है कि वे एक खतरनाक इंसान हैं. फिलहाल के लिए उन्हें कोर्ट से अंतरिम राहत मिल गई है, लेकिन यह बदल सकता है और ऐसी स्थिति में वे लंबे समय के लिए जेल जा सकती हैं.
ऊपर उनके जिन गुणों का जिक्र किया गया, शायद वे ही दक्षिणपंथी हिंदुत्व के लठैतों और सत्ता को नाराज़ करते हैं. वे न केवल उन्हें परेशान करती हैं, बल्कि दुनिया को लेकर उनके नजरिये को खतरे में डालती हैं. इसमें अगर यह और जोड़ दिया जाए कि वे एक वामपंथी हैं, एक महिला हैं, एक मुस्लिम हैं, एक कश्मीरी हैं- तब वे उनके लिए और घृणास्पद बन जाती हैं.
महिलाओं से अपने हद में रहने की उम्मीद की जाती हैं और मुसलमानों की भलाई इसी में है कि वे सिर झुकाकर अपनी जिंदगी गुजारें, न कि सबका ध्यान अपनी ओर खींचें. कश्मीरियों को, जो हिंदुत्ववादियों की नजर में तब तक आतंकवादी हैं, जब तक कि इसके उलट साबित न हो जाए, ज़बान पर ताला लगाकर रखना चाहिए.
राशिद न सिर्फ बोलती हैं, बल्कि बुलंद आवाज में, स्पष्टता और पूरे दमखम के साथ बोलती हैं. यह रेखांकित करना भी महत्वपूर्ण है कि वे कभी आपा नहीं खोती हैं- उनकी आवाज हमेशा संयत होती है और वे काफी सोच-विचार कर बोलती हैं.
लेकिन वे अपना नजरिया स्पष्ट रखती हैं. वे उन बड़े नाम वालों जैसी नहीं हैं, जो अपने विचारों को छिपा लेते हैं और निष्पक्षता दिखाने के लिए झूठे समानता के पाखंड के पीछे छिप जाते हैं.
सेना द्वारा मानवाधिकारों के हनन को लेकर उनकी हालिया ट्विटर टिप्पणियों ने न सिर्फ इंटरनेट के फब्तीबाजों और भाजपा समर्थकों को, बल्कि सुरक्षा बलों को भी क्रोधित कर दिया. उन्होंने गुस्से में भरकर फौरन इससे इनकार किया. इसके बाद उन पर राजद्रोह का मामला जड़ दिया गया.
हाल के वर्षों में सरकार खुले हाथ से राजद्रोह के आरोप लगाती रही है. निश्चित तौर पर इसका सबसे कुख्यात उदाहरण तब देखने को मिला जब जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में छात्रों के जमावड़े के दौरान कथित ‘भारत विरोधी’ नारे सुनाई देने के बाद कन्हैया कुमार और अन्य कई पर राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था.
इसका वीडियो जितनी तेजी से सरकार के मित्र चैनलों तक पहुंचा और जितनी तेजी से भाजपा नेताओं ने इसकी निंदा की (टुकड़े-टुकड़े गैंग अभियक्ति का ईजाद तभी किया गया था)- वह प्रभावशाली था. हालांकि इस बात के विश्वसनीय सबूत सामने आए हैं कि यह एक छेड़छाड़ किया गया वीडियो था और कुमार और दूसरों ने वे नारे नहीं लगाए थे, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है.
दिल्ली सरकार ने हाल ही में कन्हैया कुमार और उनके साथी छात्रों के खिलाफ राजद्रोह के आरोपों को ‘कमजोर’ करार दिया है. लेकिन इस तथ्य के बावजूद कि शायद ही राजद्रोह के मामले में कोई दोषी सबित हुआ है और देश के नागरिकों ने इस कानून के खिलाफ आवाज उठाई है, सरकार इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रही है.
शेहला राशिद के मामले में, सेना और सरकार द्वारा कड़े शब्दों में आरोपों से इनकार कर देना काफी होना चाहिए था. साथ में शेहला को या किसी और को मानवाधिकार हनन के आरोपों को साबित करने की खुली चुनौती दी जा सकती थी. सेना जैसे पेशेवर संगठन को ऐसे आरोपों का जवाब देने में सक्षम होना चाहिए.
लेकिन सुरक्षाबलों के इर्द-गिर्द एक आभामंडल का निर्माण करने और इसे चालाकी से भारत के प्रति प्रेम से नत्थी कर देने ने सेना से सवाल पूछने को राजद्रोह की श्रेणी में ला खड़ा किया है.
भारत, हिंदू धर्म, सत्ता और सरकार सबको एक एक में मिलाकर एक साथ खड़ा कर दिया गया है, जो आरोपों और आलोचनाओं से परे हैं. विरोध में आवाज उठाने वालों को नियमित तरीके से ‘देश विरोधी’ या विदेशी एजेंट करार दिया जाता है, जो अपने देश से प्रेम नहीं करते हैं. इस संदेश को वयस्क आबादी में ही नहीं, बल्कि स्कूलों और कॉलेजों के स्तर तक प्रसारित किया जा रहा है.
इसके अंतरराष्ट्रीयकरण का मतलब है कि अब अनौपचारिक बातचीत मे भी ऐसा कुछ कहना मुश्किल हो गया है, जिसकी व्याख्या किसी व्यक्ति के द्वारा देश विरोधी के तौर पर की जा सकती है. पसंद न आने वाली बातों पर नजर रखने लिए रक्षक गिरोहों या मोहल्ला देशभक्त समितियों का गठन कितनी जल्दी किया जाता है, यह देखने वाली बात होगी.
शेहला एक कदम आगे चली गईं. उन्होंने कश्मीर (वे जहां की रहने वाली हैं) में जो रहा है, उसको लेकर सिर्फ दुख प्रकट नहीं किया, बल्कि एक दावा भी कर दिया. शायद उनके पास अपने दावे के समर्थन में सबूत है, लेकिन अगर उनके पास ऐसा कोई सबूत नहीं भी है और वे अफवाहों पर भी निर्भर हैं, तो भी उन्हें अपनी बात कहने की इजाजत दी जानी चाहिए.
उनके दावों का खंडन किया जा सकता है या उन पर मानहानि का मुकदमा चलाया जा सकता है, लेकिन उन पर कानून की धाराएं जड़ना और उन्हें भारत का दुश्मन करार देना सरासर गलत है. यह कश्मीरियों के जन्मजात तौर पर भारत विरोधी होने की धारणा को मजबूत करता है और यह वैसे लोगों के लिए एक चेतावनी की तरह है, जिनके विचार ‘मुख्यधारा’ के खिलाफ जाते हैं.
इन दिनों ऐसे लोगों से मिलना बेहद आम बात हो गई है, जो अपनी बात रखते हुए काफी सतर्क रहते हैं, या निजी संवादों के दौरान भी खुलते नहीं हैं. ऐसी कठोर कार्रवाई के बाद वे और भी फूंक-फूंककर कदम रखेंगे. सरकारी मंशा आलोचना का मुंह बंद करने की हो सकती है, लेकिन यह भारत जैसे लोकतंत्र के हित में नहीं है.
कश्मीर से टुकड़ों में आवाजें बाहर आ रही हैं. अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने आम कश्मीरियों की परेशानियों, यहां तक कि स्थानीय लोगों द्वारा विरोध प्रदर्शनों के बारे में लिखा है, लेकिन भारत के मुट्ठीभर मीडिया संस्थान ही कश्मीर के हालातों पर विश्वसनीय और तथ्यपूर्ण ढंग से रिपोर्टिंग कर रहे हैं.
खबरों के लिए मुख्यधारा के प्रेस पर निर्भर व्यक्ति शायद यही सोचेगा कि वहां सब कुछ ठीक है और स्थानीय लोग अपनी कैद और बड़े भारतीय उद्योगपतियों द्वारा नये होटलों और नई रिहाइशों के निर्माण से नौकरी की संभावना का जश्न मना रहे हैं. लेकिन सच्चाई को दबाया नहीं जा सकता है.
शेहला राशिद, जिनका परिवार कश्मीर में हैं, उन अनेक लोगों में से हैं और वही बोल रही हैं, जो उनके कानों तक पहुंच रहा है. सरकार और मुख्यधारा के मीडिया के दावों का एक प्रतिपक्ष उभरा है. आज या कल और ज्यादा लोग आवाज उठाएंगे और जब भी वहां संचार के साधन बहाल होंगे, वहां के लोगों की निजी कहानियां बाहर आएंगी. क्या हर किसी पर राजद्रोह का आरोप लगाया जाएगा?
इस पूरे प्रकरण का दुखद भाग यह है कि राशिद के खिलाफ राजद्रोह के आरोपों की व्यापक निंदा देखने को नहीं मिली है. संस्थागत मदद को तो भूल ही जाइए – भारतीय मानवाधिकार संगठन, वे चाहे जैसे भी हों, को प्रभावशाली ढंग से चुप करा दिया गया है- प्रमुख लोगों की चुप्पी भी शोर कर रही है. लेकिन प्रमुख लोगों की भी इस मसले पर चुप्पी हैरान करने वाली है.
हालांकि खुद राशिद ने स्वाभाविक तौर पर साहसी और मुखर नज़र आयी हैं और अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों को ‘ओछा, राजनीति से प्रेरित और उन्हें चुप कराने की कोशिश कहा है.’ यह उन्हें औरों से अलग करता है और यही वह वजह है, जिसके कारण वे उनसे नफरत करते हैं.
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