एनजीटी के कहा कि खराब टायरों के आयात पर रोक लगाया जाए ताकि भारत दूसरे देशों के खतरनाक कचरे का घर नहीं बन पाए.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को निर्देश दिया है कि पायरोलिसिस (किसी सामग्री को उच्च तापमान पर ऑक्सीजन के बिना विघटित करना) उद्योग में इस्तेमाल के लिए आयातित खराब टायरों पर अंकुश लगाया जाए ताकि भारत दूसरे देशों के खतरनाक कचरे का घर नहीं बन पाए.
एनजीटी ने इस संबंध में सीपीसीबी को निर्देश दिया है कि वे खराब टायरों के प्रबंधन और इसके आयात पर अंकुश लगाने के संबंध में निर्देश जारी करें.
एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि पायरोलिसिस की प्रक्रिया में उच्च स्तर का प्रदूषण होता है और इस प्रक्रिया में शामिल कामगारों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर होता है.
पीठ ने कहा, ‘यह मामला खतरनाक कचरा प्रबंधन नियमों के तहत आता है इसलिए इसके आयात पर प्रतिबंध और इस तरह की इकाइयों के स्थान के नियमन की जरूरत है.’
पीठ ने कहा, ‘सीपीसीबी इस मुद्दे पर विचार-विमर्श के बाद उचित निर्देश जारी कर सकता है. आयात पर प्रतिबंध को लेकर भी निर्देश होना चाहिए ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि भारत दूसरे देशों के अति प्रदूषित खतरनाक कचरों का घर नहीं बन जाए. इसमें यह भी सुनिश्चित किया जाए कि इस प्रक्रिया में संलिप्त कामगारों के स्वास्थ्य की भी रक्षा हो सके.’
अधिकरण गैर सरकारी संगठन ‘सोशल एक्शन फार फारेस्ट एंड एनवायरमेंट (सेफ)’ की याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें पायरोलिसिस उद्योग में ऐसे टायरों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया गया है जिनका जीवन चक्र पूरा हो गया है या जो टायर खराब हो चुका है.
सेफ नोएडा स्थित एक एनजीओ है जो कि पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में काम कर रहा है. साल 2013 पर्यावरण कार्यकर्ता विक्रांत तोंगड़ ने इसका गठन किया था. सेफ का मुख्य उद्देश्य कानूनी पहल के जरिए पर्यावरण को बचाना है.
एनजीओ ने अपनी याचिका में कहा कि पायरोलिसिस उद्योग द्वारा खराब टायरों के इस्तेमाल पर रोक लगनी चाहिए क्योंकि इसकी वजह से गंभीर कैंसरकारी प्रदूषक और अन्य प्रदूषक जैसे कि पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन्स (पीएएच), डाईऑक्सिन, फ्यूरान्स निकलते हैं जो कि स्वास के लिए बेहद हानिकारक है.
लाइव लॉ के मुताबिक सेफ ने दावा किया कि पाइरोलिसिस उद्योग पायरोलिसिस प्रक्रिया के माध्यम से कम गुणवत्ता वाले ‘पायरोलिसिस ऑइल’, पाइरोलिसिस गैस (पाइरो गैस), ठोस अवशेष, कार्बन ब्लैक और स्टील बनाने में लगा हुआ है.
इस पर एनजीटी ने सीपीसीबी से इस विषय पर नियमों के अनुपालन की स्थिति और आवश्यक उपायों के बारे में रिपोर्ट मांगी थी. एनजीटी के निर्देश के अनुसार, 31 जुलाई 2019 को सीपीसीबी द्वारा एक रिपोर्ट दायर की गई थी.
रिपोर्ट के मुताबिक देश में 637 टायर पायरोलिसिस इकाइयों में से 251 इकाइयां ही नियमों का अनुपालन कर रही हैं. बाकी के 270 इकाइयां अनुपालन नहीं कर रही हैं और 116 इकाइयां बंद हैं. ज्यादातर मामलों में, गैर-अनुपालन का कारण पर्यावरण मंत्रालय के मानदंडों और राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड द्वारा जारी सहमति शर्तों को पूरा नहीं कर रहा है.
इस काम में शामिल मजदूरों के स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण पर पायरोलिसिस प्रक्रिया के प्रतिकूल प्रभाव को ध्यान में रखते हुए एनजीटी की पीठ ने सीपीसीबी को इस मुद्दे पर विचार करने के बाद उचित निर्देश जारी करने का निर्देश दिया है.
पीठ ने साफ-साफ कहा कि सीपीसीबी को निर्देश ऐसे टायरों के आयात पर प्रतिबंध से संबंधित होना चाहिए ताकि भारत दूसरे देशों के खतरनाक कचरे का घर नहीं बन पाए.
इस अलावा 270 इकाइयों द्वारा अनुपालन न करने के संबंध में राज्यों को निर्देश दिया गया है कि वे प्रभावी कदम उठाएं ताकि ऐसी इकाईयां हवा, जल और खतरानक कचड़ा प्रदूषण संबंधी नियमों का अनुपालन करें.
इस मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी 2020 को होगी.