न्याय व्यवस्था के लिए नियुक्तियां-तबादले अहम, इनमें हस्तक्षेप ठीक नहीं होता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने जस्टिस अकील कुरैशी की पदोन्नति के मामले में कॉलेजियम की सिफ़ारिश लागू करने का केंद्र को निर्देश देने के लिए गुजरात उच्च न्यायालय अधिवक्ता संघ की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: द वायर)

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने जस्टिस अकील कुरैशी की पदोन्नति के मामले में कॉलेजियम की सिफ़ारिश लागू करने का केंद्र को निर्देश देने के लिए गुजरात उच्च न्यायालय अधिवक्ता संघ की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: द वायर)
सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण न्याय प्रशासन के लिए अहम होते हैं और इसमें किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप इस संस्था के लिए अच्छा नहीं है.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबड़े और जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर की पीठ ने जस्टिस अकील कुरैशी की पदोन्नति के मामले में कॉलेजियम की सिफारिश लागू करने का केंद्र को निर्देश देने के लिए गुजरात उच्च न्यायालय अधिवक्ता संघ की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम ने 10 मई को जस्टिस कुरैशी को पदोन्नति देकर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाने की सिफारिश की थी. हालांकि बाद में कॉलेजियम ने जस्टिस कुरैशी को त्रिपुरा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाने की सिफारिश की.

पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय अधिवक्ता संघ (जीएचसीएए) की याचिका लंबित रखते हुए कहा, ‘नियुक्तियां और तबादले न्याय प्रशासन की तह तक जाते हैं और जहां न्यायिक समीक्षा प्रतिबंधित है. न्याय प्रशासन की व्यवस्था में हस्तक्षेप संस्थान के लिए अच्छा नहीं होता.’

याचिकाकर्ता संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने पीठ से कहा कि जस्टिस कुरैशी को त्रिपुरा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की कॉलेजियम की सिफारिश पर केंद्र द्वारा अमल किए जाने तक इस याचिका को लंबित रखा जाए.

पीठ ने जीएचसीएए के इस कथन से सहमति व्यक्त की और कहा कि इस मामले को केंद्र के निर्णय के बाद सूचीबद्ध किया जाए.

जस्टिस कुरैशी को त्रिपुरा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश करने के लिए कॉलेजियम ने पांच सितंबर को हुई बैठक में निर्णय लिया था. कॉलेजियम के इस प्रस्ताव को शुक्रवार को न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड किया गया था.

इस संगठन के अध्यक्ष यतीन ओजा ने कथित रूप से कहा था कि जस्टिस कुरैशी को सिर्फ इसलिए नजरअंदाज किया जा रहा है क्योंकि उन्होंने ही 2010 में वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह को पुलिस हिरासत में भेजने का आदेश दिया था.

मालूम हो कि जस्टिस कुरैशी ने ही सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में कथित तौर पर भूमिका के कारण वर्तमान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को दो दिन की पुलिस हिरासत में भेजा था.

बीते पांच सितंबर को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा पारित किए गए फैसले में लिखा है कि केंद्र सरकार ने जस्टिस कुरैशी को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में नियुक्त करने की सिफारिश को दो बार वापस भेज दिया था.

केंद्र द्वारा 23 अगस्त और 27 अगस्त को इस संबंध में कॉलेजियम को कुल दो पत्राचार भेजे गए. केंद्र के पत्रों को ध्यान में रखते हुए कॉलेजियम ने अपने निर्णय को संशोधित करने का फैसला किया और जस्टिस कुरैशी को त्रिपुरा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद पर नियुक्त करने की सिफारिश की.

जस्टिस कुरैशी वर्तमान में बॉम्बे हाईकोर्ट के जज हैं. इसी साल 10 मई को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस कुरैशी मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की थी. केंद्र ने सिर्फ इसी सिफारिश को छोड़कर कॉलेजियम द्वारा कई अन्य सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था.

जस्टिस कुरैशी की नियुक्ति में देरी की वजह से गुजरात हाईकोर्ट अधिवक्ता संघ (जीएचसीएए) की जनहित याचिका दायर की और केंद्र के रवैये पर निराशा जताते हुए इस संबंध में जल्द कार्रवाई करने का अनुरोध किया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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