ग्राउंड रिपोर्ट: किसे वोट देंगे पश्चिमी यूपी के मुसलमान

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सभी दल मुस्लिम वोटबैंक को साधने में लगे हैं, हालांकि वे किसे वोट करेंगे इसे लेकर भ्रम की स्थिति है.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सभी दल मुस्लिम वोटबैंक को साधने में लगे हैं, हालांकि वे किसे वोट करेंगे इसे लेकर भ्रम की स्थिति है.

Muslim Vote Bank Akhilesh

‘मुद्दों पर चुनाव कहीं और लड़ा जाता होगा. हमारे यहां जाति और धर्म के आधार पर वोट पड़ता है. जिस प्रत्याशी के साथ यह समीकरण बैठ जाता है, वो चुनाव जीत जाता है.’ ये कहना था पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली शहर में चाय की एक दुकान पर मिले शमशेर खान का.

60 वर्षीय शमशेर ने बताया कि उन्हें याद नहीं है कि कब उन्होंने अपनी मर्जी से वोट किया. उनका यह कहना चौंकाता है.

चेहरे पर चौंकने का भाव देखकर वो कहते हैं, ‘अरे ऐसा नहीं है कि हमसे वोट जबरदस्ती दिलाया जाता है. हम मर्जी से वोट डालते हैं लेकिन बाबरी मस्जिद वाली घटना के बाद से हम उसी प्रत्याशी को वोट देते हैं जो भाजपा को हरा पाने की स्थिति में होता है. ऐसे में अपनी मर्जी कहा चली. हम तो दूसरे को हराने के लिए वोट कर रहे हैं. कई बार सपा को वोट करते हैं.’

जब हमने उनसे पूछा कि समाजवादी पार्टी को वोट देने का क्या कारण है तो उनका जवाब था, ‘वही एक पार्टी है जो मुसलमानों की चिंता करती है. हमें पता है कि उसके राज में दंगे हुए हैं लेकिन एक वहीं पार्टी है जो हमें मारती है तो पुचकारती थी. बाकी तो कोई पूछता नहीं हैं.’

उन्हीं के साथ थानाभवन के 25 वर्षीय शब्बीर भी बैठे हुए थे. शमशेर की बात सुनकर वे भी एक किस्सा सुनाने लगे.

शब्बीर कहते हैं, ‘शमशेर सही कह रहे हैं. अभी ऐसी ही एक चाय की दुकान पर हमारे विधानसभा सीट के भाजपा प्रत्याशी वोट मांगने आए थे. उस दुकान पर 10 लोग बैठे थे. उनमें से वे नौ हिंदुओं से मिले और हमसे नहीं मिले. वैसे हमें उनकी जरूरत नहीं हैं, लेकिन थोड़ा बुरा लगा.’

वैसे राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को छोड़कर बाकी सभी पार्टियों का ध्यान खासतौर से लगभग 19% मुस्लिम वोट साधने पर लगा हुआ है.

बसपा प्रमुख मायावती पिछले पांच-छह महीने से मुसलमान-दलित गठजोड़ बनाने में लगी हैं तो दूसरी ओर सपा-कांग्रेस गठबंधन के पीछे भी यह कारण बताया गया कि ये उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों को बंटने से रोकने की कोशिश है.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इन दोनों दलों के अलावा रालोद ने भी मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए बड़ी संख्या में मुसलमान प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं. रालोद जाट और मुसलमान गठजोड़ की बात कर रहा है.

मुजफ्फरनगर के गिद्दारी गांव के मूसा कहते हैं, ‘हमारे यहां मुसलमान भ्रम की स्थिति में हैं. बहुत सारे विकल्प होने के बावजूद वह विकल्पहीन है. हमें भाजपा से कुछ नहीं मिलने वाला है. ये हमें पता है लेकिन बाकी सबसे भी सिर्फ बात के सिवा कुछ नहीं मिलने वाला है. हमारी सच्चाई यही है. कभी मुलायम से उम्मीद थी पर कुछ नहीं मिला अब अखिलेश से उम्मीद है देखते हैं क्या मिलता है.’

फिलहाल अलग-अलग विधानसभा सीटों पर यह समीकरण अलग है. शायद यही समीकरण ही यह तय करेंगे कि मुसलमान वोट किस तरफ जाएंगे.

इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए पश्चिमी यूपी की कुल 140 विधानसभा सीटों पर बसपा ने 50 उम्मीदवार उतारे हैं. तो सपा-कांग्रेस गठबंधन भी 42 मुस्लिम उम्मीदवारों के साथ यहां के चुनावी मैदान में है. इसके अलावा रालोद तो मैदान में है.

मजेदार बात ये है कि पश्चिमी यूपी की कुल 140 में से 26 सीटें ऐसी हैं, जहां सपा और बसपा दोनों की तरफ से ही मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है.

ऐसे में मुस्लिम वोट किस तरफ जाएंगे यह कह पाना कठिन है. हापुड़ में परचून की दुकान चलाने वाले नईम कहते हैं, ‘हम तो व्यापारी हैं लेकिन साथ में मुसलमान भी हैं तो दोनों ही समीकरणों से हम भाजपा को वोट नहीं देने वाले. पर हम स्कूल, सड़क या स्वास्थ्य सुविधाओं की बेहतरी के नाम पर भी वोट देने वाले नहीं हैं क्योंकि वोट मांगने वाला यह बात हमसे करता नहीं है. वो तो डराकर वोट मांगता है कि हम जीत रहे हैं हमें ही एकमुश्त वोट कर दो नहीं तो भाजपा जीत जाएगी.’

हालांकि मुजफ्फरनगर के गिद्दारी गांव में हमारी मुलाकात मोहम्मद इस्लाम से होती है. वे भाजपा के समर्थक निकले. गांव में घुसते ही सबने कहा कि आप कोई भी राय बनाने से पहले इस्लाम से जरूर मुलाकात कीजिए.

मुस्लिम राजपूतों के इस गांव में ज्यादातर लोग बसपा को वोट कर रहे थे. कुछ लोग सपा-कांग्रेस गठजोड़ को भी वोट करने वाले थे. हालांकि उनके बीच में इस्लाम भाजपा को वोट कर रहे थे.

इस्लाम ने कहा, ‘हमें भाजपा से परेशानी नहीं है. हमारे यहां सपा की सरकार है तब भी तो दंगे हो रहे हैं. भाजपा के राज में दंगें नहीं हुए थे. अब आप गुजरात और बाबरी जैसी घटनाएं याद दिलाएंगे तो हम कहेंगे कि हमें मुजफ्फरनगर में पिछले 45 साल में किसी ने मुसलमान होने की वजह से कुछ भी करने से नहीं रोका है. तो हम उसकी जिम्मेदारी क्यों ले जहां जाना नहीं है. वैसे भी अगर जिससे लोग आपको डराए आप उसी को अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी दे देंगे तो फायदे में रहेंगे.’