बिहार के अनुदान आधारित विद्यालयों में नियुक्त शिक्षक लंबे समय से अनुदान के बदले सरकारी स्कूलों की तरह वेतनमान की मांग कर रहे हैं. इन शिक्षकों ने नई दिल्ली में धरना देकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से अपनी समस्याओं के समाधान की गुहार लगाई है.
नई दिल्ली: बीते पांच सितंबर को जब देशभर के स्कूलों में शिक्षक दिवस मनाया जा रहा था तब बिहार के शिक्षकों का एक समूह दिल्ली के जंतर मंतर पर अपनी मांगों को लेकर धरने पर बैठा हुआ था.
पांच सितंबर से 11 सितंबर तक जंतर मंतर पर धरने पर बैठे अनुदान आधारित विद्यालयों में पढ़ाने वाले इन शिक्षकों की मांग है कि उन्हें अनुदान के बजाय वेतनमान दिया जाए और बकाया अनुदान की राशि को तत्काल जारी किया जाए. इन शिक्षकों ने बिहार के माध्यमिक शिक्षक संघ के बैनर तले धरना दिया.
इस प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के महासचिव शम्भू कुमार सिंह ने कहा, ‘राज्य सरकार द्वारा निंबधित करवाई गई जमीन पर विद्यालयों को मान्यता दी गई थी और कहा गया था कि जैसे-जैसे राज्य सरकार के बजट की व्यवस्था होती जाएगी वैसे-वैसे विद्यालयों का सरकारीकरण किया जाएगा. इसी उम्मीद में हम बीते चार दशक से काम करते रहे.’
उन्होंने कहा, ‘2008 में मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने वित्तरहित शिक्षा नीति को समाप्त कर अनुदान का प्रावधान तो किया लेकिन वह भी नियमित नहीं रहा. जहां अधिकांश विद्यालयों को 2013 तक ही अनुदान मिला है वहीं अनेक विद्यालयों का 2010, 2011 और 2012 का भी अनुदान लंबित है. जो पैसा जारी भी होता है अधिकारी उस पर कुंडली मारकर बैठ जाते हैं.’
सिंह कहते हैं, ‘सबका साथ-सबका विकास की बात करने वाले प्रधानमंत्री के विकास के संकल्प में तो हम कहीं दिखाई नहीं देते. हमें वेतनमान नहीं मिल रहा, हमें पेंशन की सुविधा नहीं है. कई शिक्षक बीमार हैं, किसी की बेटी की शादी है, जिससे उन्हें आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. उनको अपने इलाज के लिए खेत बेचना पड़ता है.’
उन्होंने कहा कि बिहार सरकार से निराश होकर हम दिल्ली आए हैं. हम महामहिम राष्ट्रपति महोदय, माननीय प्रधानमंत्री जी को ज्ञापन सौंपकर यह अनुरोध किए हैं कि हमको वही सुविधा दीजिए जो बिहार के सरकारी स्कूल के शिक्षक को मिलता है. दूसरा अनुदान के बदले वेतनमान दीजिए. तीसरा हमको भी पेंशन का लाभ दीजिए.
जितने विद्यार्थी पास होते हैं, उसी आधार पर अनुदान मिलता है
दिल्ली में हुए प्रदर्शन में शामिल बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ की महिला सेल की अध्यक्ष पूनम सिन्हा ने कहा, ‘हम लोग 1996 से ही आंदोलन कर रहे हैं. संस्कृत शिक्षा बोर्ड या अल्पसंख्यक बोर्ड की तरह हम लोगों को भी सुविधा दी जाती, तब भी राहत मिलती है. लेकिन इन्होंने ऐसा रास्ता निकाला कि हम जितने विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं, उनमें से जितने पास होंगे उनके आधार पर अनुदान दिया जाएगा. अब हम तो विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं, पास कराने की जिम्मेदारी हमारी नहीं हैं.’
शम्भू कुमार सिंह कहते हैं, ‘बिहार में समान स्कूली प्रणाली आयोग बना तो आयोग ने बिहार सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी और प्रथम चरण में कहा कि इनको अनुदान दीजिए. उसमें कहा गया कि जब राज्य सरकार की आर्थिक स्थिति ठीक हो जाए और केंद्र सरकार और राज्य सरकार मिलकर हम जैसे शिक्षकों को वेतनमान दे. आयोग की सिफारिश का एक चरण तो लागू हुआ कि अनुदान मिला लेकिन विडंबना ये है कि हमारे यहां जितने बच्चे पढ़ते हैं, उनमें से जितने पास होते हैं उनके अनुपात में ही अनुदान मिलेगा.’
उन्होंने कहा, ‘पास होने वाले प्रति छात्र अनुदान की यह राशि प्रथम श्रेणी के लिए 3500, द्वितीय श्रेणी के लिए 3000 और तृतीय श्रेणी के लिए 2500 रुपये है. वहीं, पास होने वाली प्रति छात्रा के लिए अनुदान की यह राशि क्रमश 3700, 3200 और 2700 है. हमारे यहां भले ही 500 बच्चे पढ़ते हों लेकिन अगर 100 बच्चे पास हुए तो सिर्फ इन्हीं के लिए अनुदान की राशि मिलेगी.’
शम्भू सिंह की बातों को आगे बढ़ाते हुए बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के उपमहासचिव राजेंद्र प्रसाद बनफूल ने कहा कि हमारी मांग है कि 2012-13 की जिनकी भी राशि बकाया है उनको दे दिया जाए. 2014 की जो राशि स्वीकृत हुई है, उसे तत्काल उन विद्यालयों के खाते में स्थानांतरित कर दिया जाए.
बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ की भागलपुर इकाई के राज्य सचिव अजय कुमार सिंह कहते हैं, ‘यह सारी समस्या पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा की दी हुई है. 1980 में बहुत सारे प्राथमिक और उच्च मााध्यमिक विद्यालयों को अधिग्रहित कर लिया गया. उस समय हमें लगा कि सरकार कभी न कभी हम पर भी ध्यान देगी.’
वे कहते हैं, ‘लालू यादव ने मुख्यमंत्री बनने के बाद हमें दूसरे स्कूलों से संबद्ध कर दिया. वे स्कूल खुद से संबद्ध रखने के लिए हमारे स्कूल से पैसे की मांग करते थे. नीतीश कुमार ने हमारे सिर पर शिक्षक का ताज रखने का काम किया लेकिन आज भी हमारी समस्याएं पूरी तरह से खत्म नहीं हुई हैं.’
शिक्षक मंजू सिन्हा ने कहा, ‘हम लोगों के स्थापना अनुमति विद्यालय में देखा जाए तो 80 फीसदी बालिका विद्यालय ही हैं. मुख्यमंत्री जी का उद्देश्य है कि बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ तो इन बालिकाओं का क्या दोष है? क्या उनका यही दोष है कि वे स्थापना अनुमति विद्यालय में पढ़ती हैं.’
वे कहती हैं, ‘सरकारी और राजकीयकृत विद्यालयों के जैसी सुविधाएं हमारी बच्चियों को नहीं मिलती हैं, जबकि हमारे यहां पढ़ने वाली लड़कियों का रिजल्ट 100 फीसदी आता है. आखिर क्यों प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री उनके लिए व्यवस्थाएं नहीं करते हैं.’
बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ, भागलपुर के रंजन कुमार झा ने कहा, ‘प्रत्येक छात्र पर अनुदान की जो राशि 2008 में तय की गई थी आज इतनी महंगाई बढ़ जाने के बाद भी वही राशि दी जा रही है. माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और माननीय एचआरडी मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक जी से निवेदन है कि इस ओर ध्यान दें.’
बिहार माध्यमिक शिक्षा विभाग के निदेशक गिरिवर दयाल सिंह ने प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के महासचिव शम्भू कुमार सिंह और उप महासचिव राजेंद्र कुमार बनफूल के नाम से 10 मई 2019 को जारी एक पत्र में कहा था कि स्थापना के अनुमति प्राप्त उच्च विद्यालयों और स्थायी मान्यता प्राप्त उच्च विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों एवं कर्मचारियों को सरकारी माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत नियमित शिक्षकों की भांति वेतन एवं सुविधा देने का कोई प्रस्ताव सरकार के पास विचाराधीन नहीं है.
हालांकि, शम्भू कुमार सिंह का कहना है कि 10 मई 2019 को जारी यह पत्र उन्हें दिल्ली से वापस लौटने के बाद मिला है, जिससे प्रतीत होता है कि दिल्ली में धरने से हरकत में आए बिहार शिक्षा विभाग ने आनन-फानन में बैकडेट में यह पत्र जारी किया है.