फ़ारूक़ अब्दुल्ला की रिहाई के लिए दाख़िल याचिका सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज की

राज्यसभा सदस्य और एमडीएमके नेता वाइको ने अपनी हैबियस कॉर्पस याचिका में पिछले चार दशकों से ख़ुद को जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला का क़रीबी दोस्त बताते हुए कहा था कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता को अवैध तरीके से हिरासत में रखकर उन्हें संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया गया है.

Srinagar: Jammu and Kashmir National Conference President Farooq Abdullah during an interview with PTI, in Srinagar, on Monday. (PTI Photo/S Irfan) (Story No DEL34) (PTI5_21_2018_000111B)
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला. (फोटो: पीटीआई)

राज्यसभा सदस्य और एमडीएमके नेता वाइको ने अपनी हैबियस कॉर्पस याचिका में पिछले चार दशकों से ख़ुद को जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला का क़रीबी दोस्त बताते हुए कहा था कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता को अवैध तरीके से हिरासत में रखकर उन्हें संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया गया है.

Srinagar: Jammu and Kashmir National Conference President Farooq Abdullah during an interview with PTI, in Srinagar, on Monday. (PTI Photo/S Irfan) (Story No DEL34) (PTI5_21_2018_000111B)
फ़ारूक़ अब्दुल्ला. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला की रिहाई की मांग को लेकर एमडीएमके नेता वाइको की हैबियस कॉर्पस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को खारिज कर दिया.

लाइव लॉ के अनुसार, सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि 16 सिंतबर को जनसुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत अब्दुल्ला को हिरासत में लिए जाने के आदेश के बाद याचिका में कुछ नहीं बचा है.

अदालत ने कहा कि हिरासत में लिए जाने के आदेश को निश्चित प्रक्रियाओं के तहत चुनौती देने के लिए याचिकाकर्ता स्वतंत्र हैं.

बता दें कि, अब्दुल्ला को हिरासत में लिए जाने का आदेश 16 सितंबर की तड़के तब जारी किया गया था जब अदालत ने वाइको की याचिका को सुनवाई के लिए विचाराधीन रखा था.

जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म किए जाने के साथ ही अब्दुल्ला को 5 अगस्त से ही नजरबंदी में रखा गया था.

16 सिंतबर की याचिका पर सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस एसएस बोबडे और जस्टिस अब्दुल नजीर ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था.

तमिलनाडु से राज्यसभा सांसद वाइको ने अपनी याचिका में मांग की थी वह डॉ फ़ारूक़ अब्दुल्ला को सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दे और चेन्नई में 15 सितंबर को होने वाले कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए आजादी दे.

वाइको ने अपनी याचिका में कहा था कि अधिकारियों को अब्दुल्ला को 15 सितंबर को चेन्नई में आयोजित होने वाले ‘शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक’ वार्षिक सम्मेलन में शामिल होने की अनुमति देनी चाहिए. यह कार्यक्रम तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री सीएन अन्नादुरई के जन्मदिन के अवसर पर आयोजित किया जाएगा.

राज्यसभा सदस्य ने पिछले चार दशकों से खुद को अब्दुल्ला का करीबी दोस्त बताते हुए कहा था कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता को अवैध तरीके से हिरासत में रखकर उन्हें संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया गया है.

याचिका में कहा गया था कि उत्तरदाताओं (केंद्र और जम्मू कश्मीर) की कार्रवाई पूरी तरह से अवैध और मनमानी है. जीवन की सुरक्षा तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों तथा गिरफ्तारी और हिरासत से सुरक्षा के अधिकारों का उल्लंघन है.

उन्होंने कहा था कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है जो लोकतांत्रिक देश की आधारशिला है.

इसमें कहा गया था, ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का लोकतंत्र में सर्वोपरि महत्व है क्योंकि यह अपने नागरिकों को प्रभावी ढंग से देश के शासन में भाग लेने की अनुमति देता है.’

वाइको ने कहा था कि उन्होंने 29 अगस्त को अधिकारियों को इस संबंध में पत्र लिखा है कि वह अब्दुल्ला को चेन्नई जा कर सम्मेलन में हिस्सा लेने की अनुमति दें लेकिन इसका उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया.

उन्होंने बताया था कि उन्होंने चार अगस्त को फोन पर अब्दुल्ला से बातचीत की थी और जम्मू कश्मीर के इस पूर्व मुख्यमंत्री को 15 सितंबर को आयोजित होने वाले कार्यक्रम में शामिल होने का न्यौता दिया था.

याचिका में कहा गया था कि बीते 5 अगस्त को केंद्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर के राजनीतिक नेताओं को हिरासत में लिए जाने के बाद से ही अब्दुल्ला से कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)