आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का दावा- भारत एक हिंदू राष्ट्र और यह नहीं बदल सकता

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने दावा किया कि संगठन में एक ही विचारधारा सतत रूप से चलती चली आई है कि जो भारत भूमि की भक्ति' करता है, वही हिंदु है.

Nagpur: RSS Chief Mohan Bhagwat addresses after a book release during an event organised by Shree Narkesari Prakashan, in Nagpur, Monday, Oct 15, 2018. (PTI Photo) (PTI10_15_2018_000166B)
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत. (फोटो: पीटीआई)

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने दावा किया कि संगठन में एक ही विचारधारा सतत रूप से चलती चली आई है कि जो भारत भूमि की भक्ति’ करता है, वही हिंदु है.

Nagpur: RSS Chief Mohan Bhagwat addresses after a book release during an event organised by Shree Narkesari Prakashan, in Nagpur, Monday, Oct 15, 2018. (PTI Photo) (PTI10_15_2018_000166B)
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयं सेवक प्रमुख (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार को दिल्ली में एक किताब के विमोचन के दौरान भारत के एक हिंदू राष्ट्र होने का दावा किया.

एनडीटीवी के अनुसार, भागवत ने कहा, ‘हम सबकुछ बदल सकते हैं. सभी विचारधाराएं बदली जा सकती हैं, लेकिन सिर्फ एक चीज नहीं बदली जा सकती, वह यह कि ‘भारत एक हिंदू राष्ट्र है.’

हिंदुत्व का जिक्र करते हुए आरएसएस प्रमुख ने हनुमान, शिवाजी और आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के नाम एक सांस में लिए.

आरएसएस के सरसंघ चालक ने ये बातें एबीवीपी से जुड़े वरिष्ठ प्रचारक सुनील आम्बेकर की पुस्तक ‘द आरएसएस: रोडमैप फार 21 सेंचुरी’ के लोकापर्ण समारोह में कही.

समलैंगिकों पर आरएसएस के रूख पर सफाई देते हुए भागवत ने कहा कि इस मुद्दे को चर्चा के जरिए सुलझाया जा सकता है. उन्होंने कहा, “महाभारत, प्राचीन सेनाओं में उदाहरण रहे हैं, वेदों में नहीं.’

हालांकि, यह पहला मौका नहीं है, जब भागवत ने समलैंगिता पर संघ के रुख में बदलाव के संकेत दिए हैं. उन्होंने 2018 में तीन दिवसीय महा आयोजन ‘भारत का भविष्य- आरएसएस का दृष्टिकोण’ के दौरान कहा था कि समलैंगिक हैं और समाज को समय के साथ बदलने की जरूरत है.

भागवत ने असहमति के महत्व पर जोर देते हुए कहा, ‘हमारे यहां मतभेद हो सकता है, मनभेद नहीं.’

आरएसएस द्वारा किसी ‘वाद’ पर चलने की बात से साफ इनकार करते हुए भागवत ने दावा किया कि संगठन में एक ही विचारधारा सतत रूप से चलती चली आई है कि जो ‘भारत भूमि की भक्ति’ करता है, वही ‘हिंदु’ है.

संघ द्वारा मात्र हिंदुओं की बात करने के दावों की ओर परोक्ष करते हुए उन्होंने ने कहा, ‘हमने हिंदु नहीं बनाए. ये हजारों वर्षो से चले आ रहे हैं. देश, काल, परिस्थिति के साथ चले आ रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि भारत को अपनी मातृभूमि मानने वाला और उससे प्रेम करने वाला एक भी व्यक्ति अगर जीवित है, तब तक हिंदु जीवित है.

भागवत ने कहा कि भाषा, पंथ, प्रांत पहले से ही हैं. अगर बाहर से भी कोई आए हैं, तब भी कोई बात नहीं है. हमने बाहर से आए लोगों को भी अपनाया है. हम सभी को अपना ही मानते हैं.

उन्होंने कहा, ‘हम देश, काल, परिस्थिति के अनुरूप अपने में बदलाव लाए हैं लेकिन जो भारत भूमि की भक्ति करता है, भरतीयता पूर्ण रूप में उसे विरासत में मिली है, वह हिंदु है..यह विचारधारा संघ में सतत रूप से बनी हुई है. इसमें कोई भ्रम नहीं है.’

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