सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में खुद के खिलाफ दर्ज एफआईआर निरस्त करने के लिए याचिका दायर की है. सीजेआई रंजन गोगोई सहित अब तक कुल चार जज इस मामले की सुनवाई करने से खुद को अलग कर चुके हैं.
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एस. रविंद्र भट्ट ने नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा की याचिका पर सुनवाई से बृहस्पतिवार को खुद को अलग कर लिया. नवलखा की याचिका सुनवाई के लिए उस पीठ के सामने आई जिसमें न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट्ट शामिल थे.
नवलखा ने कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार करने वाले बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी है.
इससे पहले प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई सहित कुल चार जज नवलखा की याचिका पर सुनवाई से अलग हो गए हैं.
सुनवाई शुरू होते ही न्यायमूर्ति भट्ट ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया जिसके बाद पीठ ने कहा कि इस याचिका पर अन्य पीठ शुक्रवार को सुनवाई करेगी.
बीते 1 अक्टूबर को जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई की पीठ के समक्ष नवलखा की अपील सुनवाई के लिए आई थी. इस पर तीनों जजों ने नवलखा की अपील पर सुनवाई करने से खुद को अलग कर लिया.
कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा, ‘इस मामले को 03.10.2019 को उस पीठ के सामने सूचीबद्ध करें जिसमें हममें (जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई) से कोई भी सदस्य न हो.’
इससे पहले, 30 सितंबर को गौतम नवलखा की याचिका मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध हुई थी, लेकिन जस्टिस गोगोई ने इसकी सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था.
चीफ जस्टिस गोगोई ने कहा था, ‘मामले को उस पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करें, जिसमें मैं नहीं हूं.’ इसके बाद मामले को जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था.
इस मामले में महाराष्ट्र सरकार ने कैविएट दाखिल कर रखी है ताकि उनका पक्ष सुने बगैर कोई आदेश पारित नहीं किया जाए.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2017 में कोरेगांव-भीमा हिंसा और माओवादियों से कथित संबंधों के मामले में दर्ज प्राथमिकी निरस्त करने से 13 सितंबर को इंकार कर दिया था.
हाईकोर्ट ने कहा था कि इस मामले में प्रथम दृष्टया (पहली नजर में) ठोस सामग्री है. उच्च न्यायालय ने कहा था कि इस मामले की गंभीरता को देखते हुए इसकी गहराई से जांच की आवश्यकता है.
हाईकोर्ट ने कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए हमें लगता है कि विस्तृत जांच की जरूरत है. पुणे पुलिस ने 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद के बाद जनवरी 2018 में नवलखा और अन्यों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी.
पुलिस ने यह भी आरोप लगाया कि इस मामले में नवलखा और अन्य आरोपियों के माओवादियों से संबंध हैं और वे सरकार को गिराने का काम कर रहे हैं.
हालांकि, हाईकोर्ट ने नवलखा की गिरफ्तारी पर संरक्षण तीन सप्ताह की अवधि के लिए बढ़ा दी थी ताकि वह उसके फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकें.
नवलखा और अन्य आरोपियों पर गैरकानूनी गतिविधियां निवारण कानून (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया.
नवलखा के अलावा वरवरा राव, अरुण फरेरा, वर्नोन गोन्साल्विस और सुधा भारद्वाज मामले में अन्य आरोपी हैं.
एल्गार परिषद आयोजित करने के एक दिन बाद पुणे जिले के कोरेगांव भीमा में हिंसा भड़क गई थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)