देशभर में मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं पर चिंता ज़ाहिर करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखने वाले विभिन्न क्षेत्रों की 49 हस्तियों के ख़िलाफ़ राजद्रोह, शांति भंग और उपद्रव के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई है.
मुंबई/तिरुवनंतपुरम: देशभर में मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जाहिर करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखने वाली विभिन्न क्षेत्रों की 49 हस्तियों के खिलाफ बीते तीन अक्टूबर को राजद्रोह, शांति भंग और उपद्रव के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई है.
एफआईआर दर्ज होने के बाद इन 49 लोगों में से कुछ ने असंतोष जताया है. एफआईआर दर्ज होने के बाद प्रसिद्ध फिल्मकार श्याम बेनेगल ने बीते शुक्रवार को कहा कि इस मामले (एफआईआर) का कोई मतलब नहीं बनता है, क्योंकि भीड़ की हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर चिंता प्रकट करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा गया खुला पत्र महज अपील था, न कि कोई धमकी.
बिहार के मुजफ्फरपुर में जिन लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, उनमें श्याम बेनेगल, निर्देशक अडूर गोपालकृष्णन, इतिहासकार रामचंद्र गुहा, फिल्म निर्देशक मणिरत्नम, शास्त्रीय गायिका शुभा मुद्गल, निर्देशक अनुराग कश्यप, सौमित्र चटर्जी और अपर्णा सेन आदि शामिल हैं.
यह मुकदमा मुख्य दंडाधिकारी के आदेश पर दर्ज किया गया है जो उन्होंने इन हस्तियों के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया.
बेनेगल ने कहा, ‘यह पत्र महज एक अपील था. लोगों का इरादा जो भी हो, जो एफआईआर स्वीकार कर रहे हैं और हम पर इन सभी तरह के आरोप लगा रहे हैं, इन बातों का कोई मतलब नहीं बनता है. यह प्रधानमंत्री से अपील करने वाला पत्र था. यह कोई धमकी या अन्य बात नहीं थी जो शांति बिगाड़ती या समुदायों के बीच वैमनस्य पैदा करती है.’
वैसे अपर्णा सेन ने प्राथमिकी पर कुछ कहने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि मामला अदालत के विचाराधीन है.
अडूर गोपालकृष्णन ने मुकदमा दर्ज होने पर चिंता जताई
श्याम बेनेगल के अलावा प्रतिष्ठित फिल्म निर्देशक अदूर गोपालकृष्णन ने अपने खिलाफ एफआईआर दर्ज होने को लेकर चिंता जताई है.
बीते शुक्रवार को गोपालकृष्णन ने तिरुवनंतपुरम में पत्रकारों से कहा, ‘अदालत के आदेश पर मुकदमा दर्ज करना चिंताजनक है. अगर यह सच है तो चिंता का विषय है.’
उन्होंने कहा, ‘यह अलोकतांत्रिक है और यह देश की कानून-व्यवस्था प्रणाली पर शंका पैदा करेगा.’
गोपालकृष्णन ने कहा कि एक महिला और उसके समर्थकों ने 30 जनवरी को महात्मा गांधी के पुतले पर गोली चलाई जैसा कि 1948 में नाथूराम गोडसे ने किया था. उन्होंने कहा, ‘किसी ने भी उन्हें देशद्रोही नहीं बताया, जबकि उनमें से कुछ सांसद बनने में भी कामयाब हुए हैं.’
मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बीते 23 जुलाई को लिखे गए पत्र में हस्तियों ने कहा है कि ऐसे मामलों में जल्द से जल्द और सख्त सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए.
पत्र में लिखा गया था, ‘मुस्लिमों, दलितों और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ हो रही लिंचिंग की घटनाएं तुरंत रुकनी चाहिए. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ें देखकर हम चौंक गए कि साल 2016 में देश में दलितों के साथ कम से कम 840 घटनाएं हुईं. इसके साथ ही हमने उन मामलों में सजा के घटते प्रतिशत को भी देखा.’
पत्र में कहा गया था कि इनमें से लगभग 90 फीसदी मामले मई 2014 के बाद सामने आए जब देश में आपकी सरकार आई. प्रधानमंत्री ने लिंचिंग की घटनाओं की संसद में निंदा की जो कि काफी नहीं था. सवाल यह है कि वास्तव में दोषियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई?
पत्र के अनुसार, ‘इन दिनों जय श्री राम का नारा जंग का हथियार बन गया है, जिससे कानून-व्यवस्था की समस्या खड़ी हो रही है. यह मध्य युग नहीं है. भारत में राम का नाम कई लोगों के लिए पवित्र है. राम के नाम को अपवित्र करने के प्रयास रुकना चाहिए.’
यह भी कहा गया था, ‘लोगों को अपने ही देश में देशद्रोही, अर्बन नक्सल कहा जा रहा है. लोकतंत्र में इस तरह की बढ़ती घटनाओं को रोकना चाहिए और सरकार के खिलाफ उठने वाले मुद्दों को देश विरोधी भावनाओं के साथ न जोड़ा जाए.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)